सोमवार, 7 नवंबर 2011

रेशमी सपने सुवासित, धवल तन मन बस गए

नवगीत

रेशमी सपने सुवासित, धवल तन मन बस गए

clip_image002हरीश प्रकाश गुप्त

 

रेशमी सपने

सुवासित

दूध धुलकर

धवल,

तन मन बस गए।

 

नेह लिख

आवेग पाती

प्रीत मंत्रों से,

शब्द स्वर भींगे

सलिल मन

गीत अंतरों से,

संगीत बन

हिय में लगे बजने

प्रेयसी के छन्द

ढूँढकर मनमीत देने

खत पँडूके ले गए।

 

कुमुद रंगत सी चढ़ी

कोमल

कपोलों पर,

शुभ्र स्मित झर पड़ी

मधुसिक्त

किसलय पर,

सारंग-तृष

उपशमन करने

सप्तलहरी तान में

मद कुरंगम

उर कुलांचे भर गए।

29 टिप्‍पणियां:

  1. सब कुछ धुल गया,जब कोई अपना मिल गया !

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  2. "रेशमी सपने सुवासित, धवल तन मन बस गए" पढा, अच्छा लगा । कभी -कभी हमको भी इसी बहाने याद कर लिय़ा कीजिए । मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ ।
    धन्यवाद ।

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  3. बहुत सुंदर भाव भरे है रचना में,
    बहुत बढ़िया !

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  4. बेहतरीन शब्द सामर्थ्य युक्त अनूठी रचना ....
    शुभकामनायें आपको !

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  5. प्रेम-पत्राचार की पुरानी रीति आज भी इस नवगीत में नयी सी लग रही है। हृदय को स्पर्श करता अच्छा नवगीत।

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  6. सुन्दर भावों का सम्प्रेषण सुन्दर शब्द संयोजन .. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  7. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  8. बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  9. सुन्दर भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति !

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  10. बहुत सुंदर भावमयी रचना....

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  11. बहुत सुंदर भाव ...कुछ शब्द भी नए थे मेरे लिए । आभार ।

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  12. सुन्दर गीत... गुप्त जी को एक आलोचक के रूप में देखा था... किन्तु उनकी कवितायेँ भी ह्रदय को छू रही हैं... बहुत बढ़िया....

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  13. कुमुद रंगत सी चढ़ी

    कोमल

    कपोलों पर,

    शुभ्र स्मित झर पड़ी

    मधुसिक्त

    किसलय पर,

    ....बहुत सुंदर...भावों और शब्दों का उत्कृष्ट संगम..

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  14. बेहद सुन्दर शब्द रचना ..
    आप मेरे ब्लॉग पर आये एवं टिप्पणी रुपी पुरस्कार प्रदान किया आपका आभार .......

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  15. बहुत अच्छा नवगीत है। शब्द तो जैसे मन में उतर गए। आभार,

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  16. सुन्दर शब्द्संयोजन ... भाव मय रचना ... लाजवाब ...

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  17. रेशमी शब्द-शृंखला और मखमली भाव-योजना....! अल्लाह करे जोर-ए-कलम और ज्यादा.......!!

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  18. रेशमी सपने सुवासित,
    धवल तन मन बस गए....
    सुन्दर गीत...
    सादर...

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  19. तन मन प्रसन्न हो गया यह गीत पढ़ कर।

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  20. शब्द योजना और प्रवाह का आकर्षण बरबस मन मोहता है। सुन्दर भाव से सम्पन्न नवगीत।

    शुभकामनाएँ,

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