शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

शिवस्वरोदय – 69


शिवस्वरोदय – 69

आचार्य परशुराम राय

इस अंक को प्रारम्भ करने के पहले यह बता देना आवश्यक है कि निम्नलिखित श्लोकों में प्राणायाम की प्रक्रिया और उससे होनेवाले लाभ की चर्चा की गयी है। पर, पाठकों से अनुरोध है कि वे प्राणायाम किसी सक्षम व्यक्ति से सीखकर ही अभ्यास करें, विशेषकर जिनमें कुम्भक प्राणायाम को सम्मिलित करना हो। प्राणायाम की अनगिनत प्रक्रियाएँ हैं और उनके प्रयोजन भी भिन्न हैं। विषय पर आने के पहले एकबार फिर पाठकों से अनुरोध है कि कुम्भक युक्त प्राणायाम एक सक्षम साधक के सान्निध्य और मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

पूरकः कुम्भकश्चैव रेचकश्च तृतीयकः।

ज्ञातव्यो योगिभिर्नित्यं देहसंशुद्धिहेतवे।।376।।

भावार्थ – इस श्लोक में प्राणायाम के अंगों और उससे होनेवाले लाभ की ओर संकेत किया गया है। प्राणायाम में पूरक, कुम्भक और रेचक तीन क्रियाएँ होती हैं। योगी लोग इसे शरीर के विकारों को दूर करने के कारण के रूप में जानते हैं। अतएव इसका प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। पूरक का अर्थ साँस को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार अन्दर लेना है। रेचक का अर्थ है साँस को पूर्णरूपेण बाहर छोड़ना। तथा कुम्भक का अर्थ है पूरक करने के बाद साँस को यथाशक्ति अन्दर या रेचक क्रिया के बाद साँस को बाहर रोकना। इसीलिए यह (कुम्भक) दो प्रकार का होता है- अन्तः कुम्भक और बाह्य कुम्भक।

English Translation – In this verse steps of breathing exercise and its benefits have been stated. There are three steps of breathing exercise- inhaling the breath with full capacity is called Purak, exhaling it fully is called Rechak and holding the breath inside after inhaling and outside after exhaling, as much as someone can do, is called Kumbhak (Antah and Bahya Kumbhak respectively). This exercise is known to Yogis for purification the body.

पूरकः कुरुते वृद्धिं धातुसाम्यं तथैव च।

कुम्भके स्तम्भनं कुर्याज्जीवरक्षाविवर्द्धनम्।।377।।

भावार्थ – पूरक से शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषण मिलता है और शरीर की रक्त, वीर्य आदि सप्त धातुओं में सन्तुलन आता है। कुम्भक से उचित प्राण-संचार होता है और जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है।

English Translation – Inhalation nourishes and develops the body; and maintains balance in seven primary substances, i.e. blood, fat, seminal fluid etc. Holding of the breath regulates and increases vital energy in our body.

रेचको हरते पापं कुर्याद्योगपदं व्रजेत्।

पश्चातसंग्रामवत्तिष्ठेल्लयबन्धं च कारयेत्।।378।।

भावार्थ – रेचक करने से शरीर का पाप मिटता है, अर्थात् शरीर और मन के विकार दूर होते हैं। इसके अभ्यास से साधक योगपद प्राप्त करता है (अर्थात् योगी हो जाता है) और शरीर में सर्वांगीण सन्तुलन स्थापित होता है तथा साधक मृत्युजयी बनता है।

English Translation – Exhalation removes sins from the body, it means it removes impurities from the body and mind. Its practitioner attains enlightenment and gets his body balanced in all respect and thus overcomes death.

कुम्भयेत्सहजं वायुं यथाशक्ति प्रकल्पयेत्।

रेचयेच्चन्द्रमार्गेण सूर्येणापूरयेत्सुधीः।।379।।

भावार्थ – सुधी व्यक्ति को दाहिने नासिका रन्ध्र से साँस को अन्दर लेना चाहिए, फिर यथाशक्ति सहज ढंग से कुम्भक करना चाहिए और इसके बाद साँस को बाँए नासिका रन्ध्र से छोड़ना चाहिए।

English Translation – A wise person should therefore inhale the breath through right nostril, hold it as long as he can do easily and thereafter exhale it through left nostril.

चन्द्रं पिबति सूर्यश्च सूर्यं पिबति चन्द्रमाः।

अन्योन्यकालभावेन जीवेदाचन्द्रतारकम्।।380।।

भावार्थ – जो लोग चन्द्र नाड़ी से साँस अन्दर लेकर सूर्य नाड़ी से रेचन करते हैं और फिर सूर्य नाड़ी से साँस अन्दर लेकर चन्द्र नाड़ी से उसका रेचन करते हैं, वे जब तक चन्द्रमा और तारे रहते हैं तब तक जीवित रहते हैं (अर्थात् दीर्घजीवी होते हैं)। यह अनुलोम-विलोम या नाड़ी-शोधक प्राणायाम की विधि है।

English Translation – The person, who inhales the breath through left nostril and exhales through right nostril; and again inhales through right nostril and exhales through left nostril, remains alive till the moon and stars exist. In other words his longevity goes up like anything.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  2. बहुत बढ़िया और ज्ञानवर्धक पोस्ट!

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  3. बेहद ज्ञानवर्धक और उपयोगी पोस्ट. आभार.

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  4. हां,शरीर शुद्ध हो,तभी प्राण-ऊर्जा को जगाकर मूलाधार चक्र से ऊपर उठना संभव।

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