मंगलवार, 15 नवंबर 2011

भगवान परशुराम-2


भगवान परशुराम-2

आचार्य परशुराम राय

पिछले अंक में भगवान परशुराम के विषय में सामान्य जानकारी दी गयी थी। इस अंक में उन घटनाओं का उल्लेख किया जाएगा, जिनसे उनके जग-विश्रुत चरित्र ने अपना स्वरूप धारण किया। कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं दुष्ट क्षत्रियों के विनाश के लिए परशुराम के रूप में अवतरित हुए थे। जहाँ कहीं भी कमजोर वर्ग का दबंग लोगों द्वारा दमन होता है, वहाँ परशुराम-चेतना सक्रिय होती है। इसका माध्यम चाहे कोई हो। पुराणेतिहास में प्राप्त तथ्यों के अनुसार इन्हें सर्वप्रथम युद्ध चन्द्रवंशीय राजा सहस्रार्जुन से करना पड़ा।

भागवत महापुराण के अनुसार हैहयवंश का राजा अर्जुन बड़ा ही प्रतापी राजा था। उसने भगवान दत्तात्रेय की कृपा से एक हजार भुजाएँ और सभी यौगिक सिद्धियाँ प्राप्त कर ली थीं। इसीलिए यह सहस्रबाहु अर्जुन के नाम से जाना जाता था। इसका दिव्यास्त्रों पर भी समान अधिकार था। इसमें इतना अकूत बल था कि एक बार इसने अपनी भुजाओं से नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया था जिससे पास में चल रहे रावण का शिविर नर्मदा के जल में डूबने लगा। वह क्रोध में आकर रावण को बन्दी बनाकर अपनी राजधानी माहिष्मती लेकर चला गया। अन्त में महर्षि पुलस्त्य के कहने पर उसे छोड़ दिया। सुना जाता है कि उसके दस हजार पुत्र थे।

कहा जाता है कि एक बार सहस्रबाहु अर्जुन अपनी सेना के साथ शिकार खेलने के अभियान में घोर वन से होते हुए महर्षि जमदग्नि के आश्रम में पहुँचा। महर्षि जमदग्नि ने पूरी सेना सहित राजा का स्वागत सत्कार एक राजा की तरह किया। सहस्रार्जुन को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पराश्रित आश्रम का अधिपति इतने कम समय में इस प्रकार की भव्य व्यवस्था कैसे कर सका। राजा से रहा न गया और उसने महर्षि जमदग्नि से इसका रहस्य पूछा। महर्षि ने राजा को बताया कि उनके आश्रम में कामधेनु है जिसकी सहायता से उस प्रकार की व्यवस्था करने में वे सक्षम हो सके। सहस्रार्जुन का लोभ जागा और उसने उस गाय को महर्षि जमदग्नि से उसे सौंपने को कहा। महर्षि ने राजा को समझाया कि उनकी माँग राजधर्म के विरुद्ध है। क्योंकि राजा दान देता है, लेता नहीं। साथ ही उस गाय से आश्रमवासी ऋषियों और छात्रों का हित सिद्ध होता है। अतएव उनकी माँग अनुचित है। इसके बाद राजा ने अपने सैनिकों को बलात् उस गाय को अपनी राजधानी माहिष्मती ले चलने का निर्देश दिया और राजा के सैनिक बछड़े सहित कामधेनु को लेकर अपने नगर की ओर चल पड़े। उस समय भगवान परशुराम आश्रम से कहीं बाहर गए हुए थे।

जब भगवान परशुराम आश्रम लौटे और राजा के दुराचार सुनकर बिना रुके अपने सभी शस्त्रास्त्र लेकर राजा को दण्ड देने के लिए चल दिए। सहस्रबाहु अपने नगर में प्रवेश करने ही वाला था कि उसने परशुराम जी को उधर ही बड़े बेग से आते हुए देखा। उसने सत्रह अक्षौहिणी सेना उनसे लड़ने के लिए भेजी, जिसे देखते-देखते भगवान परशुराम ने अकेले विनष्ट कर दिया। यह देखकर सहस्रबाहु क्रोधाभिभूत होकर स्वयं युद्धभूमि में उतर पड़ा और पाँच सौ धनुषों पर एक साथ वाण चढ़ाकर भगवान परशुराम छोड़ दिए। लेकिन उसके सारे अस्त्र-शस्त्र भगवान परशुराम ने व्यर्थ कर दिए। इसके बाद सहस्रबाहु पर्वतों और वृक्षों को उखाड़-उखाड़कर फेंकने लगा, किन्तु उसकी एक न चली और भगवान परशुराम ने उसकी सभी भुजाओं को सर्प के समान अपने परशु से काट डाला तथा अन्त में उसके सिर को। पिता के मरने के बाद उसके दस हजार पुत्र भाग गए।

भगवान परशुराम कामधेनु और उसके बछड़े को लेकर अपने आश्रम वापस लौट आए। युद्ध में जो कुछ घटा था उन्होंने सबकुछ अपने पिता और भाइयों को बताया। सारा विवरण सुनने के बाद महर्षि जमदग्नि ने कहा- वत्स, हमलोग ब्राह्मण है, हम लोगों की शोभा क्षमा है, यही हमें समाज में पूजनीय बनाती है। राजा का इतना बड़ा अपराध नहीं था कि उसका वध किया जाता। सार्वभौम राजा का वध ब्राह्मण की हत्या से भी बड़ा अपराध होता है। अतएव हे वत्स, जाओ और भगवान का स्मरण करते हुए तीर्थाटन करो, जिससे तुम पाप-मुक्त हो सको।

पिता की आज्ञा का अनुसरण करते हुए भगवान परशुराम तीर्थयात्रा पर निकल गए और एक वर्ष बाद पुनः अपने आश्रम लौटे। कुछ वर्ष यों ही बीते।

नोट - एक अक्षौहिणी सेना में 21870 रथी, 21870 हाथी सवार, 65610 घुड़सवार और 109350 पैदल सेना होती है।

इस अंक में बस इतना ही। अगले अंक में भगवान परशुराम के जीवन की कुछ अन्य घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया जाएगा।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. परशुराम जी के बारे में नई जानकारी.आभार.

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  2. बहुत अच्छी कथा !
    परशुराम जी को तो भगवान् के एक अवतारों में से भी माना गया है ।
    उपयोगी प्रस्तुति के लिए आभार !

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  3. बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण प्रस्तुति आज परशुराम चेतना ही नारी को बचा सकती है .सरकारें तो दीठ और नपुंसक हो चुकीं हैं .

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  4. परशुराम जी का व्यक्तित्व मुझे सबसे हटकर लगता है।

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  5. भगवान परशुराम के विषय में रोचक जानकारियां देने के लिए धन्यवाद...

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  6. kitnee ही नयी बातें जानने को मिली इस पोस्ट के द्वारा...साथ ही इतने विस्तृत रूप से कथा भी ज्ञात न था...

    सो bahut bahut आभार आपका...इस ज्ञानवर्धन के लिए...

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  7. वत्स, हमलोग ब्राह्मण है, हम लोगों की शोभा क्षमा है, यही हमें समाज में पूजनीय बनाती है ।
    कितना सत्य परंतु क्रोध को वश में करना किसको आया है ।
    रोचक विवरण ।

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