बच्चन जी
परशुराम राय
जी हाँ, इसी नाम से बचपन में हरिवंश राय को पहले माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्य और फिर पड़ोसी तथा मित्र सम्बोधित करते थे। बाद में इन्होंने इसी को अपना पेन-नेम बनाकर साहित्य-सृजन किया और आज साहित्यिक जगत ही नहीं, बल्कि सभी उनके इसी नाम से परिचित हैं। उनकी संतानों ने भी अपने पारम्परिक वंशधरों के कुलनाम को छोड़कर इसी नाम को अपने लिए कुलनाम के रूप में व्यवहृत कर लिया।
आज हरिवंश राय बच्चन का 104थी वर्ष-गाँठ है। इनका जन्म आज ही के दिन 104 वर्ष पूर्व 1907 में इलाहाबाद में हुआ था। इनकी माँ सरस्वती देवी और पिता श्री प्रताप नारायण श्रीवास्तव थे। सम्भवतः इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से प्रव्रजित होकर इलाहाबाद में बस गए थे। 19 वर्ष की आयु में इनका विवाह श्यामा जी से हुआ, जिनका 1936 में यक्ष्मा से देहान्त हो गया। बाद में फिर इन्होंने तेजी सूरी से विवाह किया। इनसे इनको दो सन्तानें- अमिताभ और अजिताभ हुईँ।
इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.। अपने कैरियर का प्रारम्भ इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन से किया। फिर स्वतंत्रता मिलने के बाद विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में काम किया। बाद में ये राज्य-सभा के मनोनीत सदस्य हुए। 18 जनवरी 2003 में मुम्बई में इनका देहावसान हुआ।
बच्चन जी उपर्युक्त उपलब्धियों के लिए कम और अपनी साहित्यिक कृतियों के लिए अधिक जाने जाते हैं। विशेषकर उनकी कालजयी कृति मधुशाला के साथ उनका नाम सबसे अधिक जुड़ा है। उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखी हैं और इन्हें दो चट्टानें के लिए 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त इन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और बिड़ला फाउंडेशन से सरस्वती सम्मान प्रदान किए गए। 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
बच्चन जी ने वैसे तो अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें गद्य, कविता, अनूदित रचनाएँ हैं। लेकिन वे मधुशाला से जितना जाने जाते हैं, उतना अन्य के लिए नहीं। इनकी प्रमुख रचनाएँ- मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशानिमन्त्रण, दो चट्टानें आदि हैं।
आज का उद्देश्य उनका परिचय देना नहीं बल्कि उन्हें याद करना है। बच्चन जी को बड़ी लम्बी आयु मिली थी। अपने अन्तिम दिनों में काफी लम्बे समय तक वे अस्वस्थ रहे। जब 2003 में उनका देहावसान हुआ था, उस समय मैं आन्ध्र प्रदेश स्थित आर्डनेन्स फैक्टरी, मेदक में था। उस दिन टी.वी. पर प्रायः सभी चैनल सूनी मधुशाला के नाम से उस घटना का प्रसारण कर रहे थे। इन दो शब्दों सूनी मधुशाला ने मुझे कब प्रेरित कर दिया श्रद्धा की मधुशाला लिखने के लिए, पता ही न चला।
उस दिन मुझे अपने एक मित्र के विरुद्ध चल रही अनुशासनिक कार्यवाही में बचाव अधिकारी के रूप में दिल्ली जाना था। शाम को ट्रेन में बैठा तो कोई गप-शप के लिए उपयुक्त सहयात्री नहीं मिला। अब मन में श्रद्धा की मधुशाला की पंक्तियाँ फड़कने लगीं। सोचा क्यों न मधुशाला में बच्चन जी द्वारा प्रयुक्त छंद में ही इसे लिखा जाय। अतएव दिल्ली पहुँचते ही पहले मधुशाला की एक प्रति खरीदी, उसे पढ़ा और मनन किया। वापसी में ट्रेन में ही श्रद्धा की मधुशाला लिख डाली। घर पहुँच कर मात्रा आदि ठीक कर इसका संस्कार किया। यह दस पंखुड़ियों की बच्चन जी को श्रद्धांजलि है। कई बार कवि-गोष्ठियों में इसे सुनाया, मित्रों ने काफी पसंद किया। बाद में आर्डनेन्स फैक्टरी मेदक की गृह-पत्रिका सारथ में इसका प्रकाशन हुआ और 18 जनवरी, 2010 को बच्चन जी की सातवीं पुण्यतिथि पर इसी ब्लॉग पर भी प्रकाशन हुआ। आदरणीय मनोज कुमार जी ने इच्छा व्यक्त की कि आज बच्चन जी को स्मरण करते हुए श्रद्धा की मधुशाला को पुनः आज पोस्ट किया जाए। इसी के अनुसरण में आज प्रस्तुत है श्रद्धा की मधुशाला।
श्रद्धा की मधुशाला
साकी बाला के हाथों में
भरा पात्र सुरभित हाला
पीने वालों के सम्मुख था
भरा हुआ मधु का प्याला।
मतवालों के मुख पर फिर क्यों
दिखी नहीं थी जिज्ञासा
पीने वाले मतवाले थे
फिर भी सूनी मधुशाला ।। 1 ।।
मधु का कलश भावना का था
नाम आपका था हाला
पीने वाले प्रियजन तेरे
कान कान था मधुप्याला।
तेरी चर्चा की सुगंध सी
आती थी उनके मुख से
यहाँ बसी थीं तेरी यादें
और सिसकती मधुशाला ।। 2 ।।
छूट गए सब जग के साकी
छूट गई जग की हाला
छूट गए हैं पीने वाले
छूट गया जग का प्याला।
बचा न कुछ भी, सब कुछ छूटा
जग की मधुबाला छूटी
छोड़ गए तुम अपनी यादें
प्यारी सी यह मधुशाला ।। 3 ।।
मृत्यु खड़ी साकी बाला थी
हाथ लिए गम का हाला
जन-जन था बस पीनेवाला
लेकर साँसों का प्याला।
किंकर्तव्यमूढ़ सी महफिल
मुख पर कोई बोल न थे
चेहरों पर थे गम के मेघ
आँखों में थी मधुशाला ।। 4 ।।
पंचतत्व के इस मधुघट को
छोड़ चले पीकर हाला
कूच कर गए इस जगती से
लोगों को पकड़ा प्याला।
बड़ी अजब माया है जग की
यह तो तुम भी जान चुके
पर चिंतित तू कभी न होना
वहाँ मिलेगी मधुशाला ।। 5 ।।
वहाँ मिलेंगे साकी तुमको
स्वर्ण कलश में ले हाला
इच्छा की ज्वाला उठते ही
छलकेगा स्वर्णिम प्याला।
करें वहाँ स्वागत बालाएँ
होठों का चुम्बन देकर
होगे तुम बस पीने वाले
स्वर्ग बनेगा मधुशाला ।। 6 ।।
मन बोझिल था, तन बोझिल था
कंधों पर था तन-प्याला
डगमग-डगमग पग करते थे
पिए विरह का गम हाला।
राम नाम है सत्य न बोला
रट थी सबकी जिह्वा पर
अमर रहें बच्चन जी जग में,
अमर रहे यह मधुशाला ।। 7 ।।
दुखी न होना ऐ साकी तू
छलकेगी फिर से हाला
मुखरित होंगे पीने वाले
छलकेगा मधु का प्याला।
नृत्य करेंगी मधुबालाएँ
हाथों में मधुकलश लिए
सोच रहा हूँ कहीं बुला ले
फिर से तुमको मधुशाला ।। 8 ।।
क्रूर काल-साकी कितना हूँ
भर दे विस्मृति का हाला
खाली कर न सकेगा फिर भी
लोगों की स्मृति का प्याला।
इस जगती पर परिवर्तन के
आएँ झंझावात भले,
अमर रहेंगे साकी बच्चन,
अमर रहेगी मधुशाला ।। 9 ।।
अंजलि का प्याला लाया हूँ
श्रद्धा की भरकर हाला
भारी मन है मुझ साकी का
आँखों में ऑसू-हाला।
मदपायी का मतवालापन
ठहर गया क्यों पता नहीं
अंजलि में लेकर बैठा हूँ
श्रद्धा की यह मधुशाला ।। 10 ।।
******
सहजता और संवेदनशीलता हरिवंश राय बच्चन जी की कविता का एक विशेष गुण है। यह सहजता और सरल संवेदना कवि की अनुभूतिमूलक सत्यता के कारण उपलब्ध हो सकी । बच्चन जी ने बडे साहस, धैर्य और सच्चाई के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और जीवन्त बिम्बों से सजाकर सँवारकर अनूठे गीत हिन्दी को दिए 1 “आज उनका जन्म दिन है एवं उनको याद करने के बहाने ही सही एक उनकी एक कविता “दिन जल्दी –जन्दी ढलता है” ,प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंदिन जल्दी-जल्दी ढलता है - हरिवंशराय बच्चन
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं -
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे -
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? -
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मेरे पोस्ट पर आपकी उपस्थिति मेरे लिए प्रेरणा स्रोत होगी । बच्चन जी पर मेरा पोस्ट है । धन्यवाद ।
अंजलि में लेकर बैठा हूँ
जवाब देंहटाएंश्रद्धा की यह मधुशाला ....
bachchan ji ko yaaad karti sundar rachna..
मधुशाला के सृजनकर्ता को नमन।
जवाब देंहटाएंमेरा पसंदीदा रचनाकार ! आत्मकथा पढ़ने की शुरुआत उन्हीं से की थी,बहुत ही आकर्षक लेखन था उनका,वैसी ही उनकी मधुशाला !
जवाब देंहटाएंउन्हें नमन !
इस महान सम्वेदना के धनी कवि की स्मृति को नमन
जवाब देंहटाएंहोगे तुम बस पीने वाले
जवाब देंहटाएंआपकी यह श्रद्धा की मधुशाला भी बहुत ज़बरदस्त है
प्रभावी रचना, उपयुक्त श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंआचार्य जी,
जवाब देंहटाएंबच्चन जी का संक्षिप्त परिचय और उनकी रचनाओं का परिचय अत्यंत सुखद अनुभव रहा.. बच्चन जी की काव्य रचनाओं के अतिरिक्त उनके द्वारा शेक्स्पियेर के नाटकों हैमलेट, ऑथेलो और मैकबेथ का गद्य-पद्यानुवाद अब तक के किसी भी अनुवाद में अद्वितीय है... पढते हुए ऐसा लगता है मानो शेक्स्पियेर ने यह नाटक हिन्दी में लिखे हैं..
मधुशाला एक कालजयी रचना है... और हर व्यक्ति ने जीवन के हर मोड़ पर इसे अपने साथ पाया है... और अभिव्यक्त किया है.. जैसे अंत में आपकी रचना एक महान रचनाकार को एक उपयुक्त श्रद्धांजलि है!!!!
आचार्य परशुराम राय जी ,
जवाब देंहटाएंहरिवंश राय बच्चन से परिचय तो था ही ...और उनकी मधुशाला से भी ..मेरी प्रिय पुस्तक है ..
पर जो आपने श्रद्धा मधुशाला लिखी है वो अत्यंत मन को मोहने वाली है .. इतनी सुन्दर प्रस्तुति मैंने कहीं नहीं देखी ..बहुत सुन्दर .. जिसे बार बार पढने का मन होगा .. आभार
श्रद्धा की मधुशाला... बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबच्चन जी को कभी भी बुला पाना मुश्किल है ! उनकी रचनाएँ पढ़ कर एक जोश सा आ जाता है !
जवाब देंहटाएंअच्छी रही श्रद्धा की मधुशाला !!
बच्चन जी की मधुशाला तो हम टी-टोटलर को मदहोश कर देती है!
जवाब देंहटाएंबच्चन मेरे पसंदीदा कवि हैं आज उनकी याद में यह पोस्ट स्मरणीय रही.और श्रद्धा की मधुशाला लाजबाब.
जवाब देंहटाएंहरिवंषराय बच्चन को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंहरिवंषराय बच्चन जी को नमन..श्रद्धा की मधुशाला लाजबाब...
जवाब देंहटाएंआपका ये फॉर्म पहले देखने को नहीं मिला था...बच्चन जी की यादों को जीवंत कर दिया...सहज-सरल भाषा में अपनी बात कहने में उनका कोई सानी नहीं था...
जवाब देंहटाएंइस जगती पर परिवर्तन के
जवाब देंहटाएंआएँ झंझावात भले,
अमर रहेंगे साकी बच्चन,
अमर रहेगी मधुशाला
आनंद आ गया जितना पढो उतना कम है ..... ....
शुभकामनायें आपको !
इसे बिग-बी के ब्लॉग पर पोस्ट किया जाए।
जवाब देंहटाएंराधारमण जी!
जवाब देंहटाएंउसका कोई लाभ नहीं.. उन्हीं के कारण मैं ब्लॉग-जगत में हूँ...
@ चला बिहारी & राधारमण जी,
जवाब देंहटाएंहाँ, चचा जी ठीके कह रहे हैं। मैं ने कोई साल-दो साल पहले आचर्यजी के आदेश से उनकी ’श्रद्धा की मधुशाला’अमीताभ बच्च्नजी के ब्लाग पर पोस्ट किया था। किन्तु न तो वे कभी प्रकाशित हुई न ही कोई प्रतिक्रिया।
आदरणीय आचार्यजी,
फिर से मधुशाला का मधुरस पान करवाने के लिये शुक्रिया।
श्रद्धा की मधुशाला के रचनाकार को मेरा सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंआज भी याद है साठ के दशक में,श्रद्धेय,बच्चन जी की इस कलजई
जवाब देंहटाएंरचना ने जन्मानस को जीवन की मधुशाला से सरोबार कर दिया था,
आज भी सिलसिला जरी है.मेरी ओर से भी,भावभीनी श्रद्धांजलि.
मिटटी का तन मस्ती का मन
जवाब देंहटाएंक्षण भर जीवन मेरा परिचय....
कवि श्रेष्ठ को सादर नमन...