गांधी और गांधीवाद
गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अर्थों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। - महात्मा गांधी
63. बम्बई (मुम्बई) में सभा
सितम्बर 1896
प्रवेश
बहनोई के निधन के शोक से उबरे
भी न थे कि दूसरे दिन उन्हें बम्बई जाना पड़ा। वहां उन्हें दक्षिण अफ़्रीका में भारतीयों की स्थिति पर आयोजित सभा
में भाग लेना था। सभा में उनका भाषण देना लोकप्रिय सहानुभूति के महान प्रदर्शन का
संकेत था। इसका प्रभाव गहरा और व्यापक होने वाला था। गांधीजी कहते थे, अपनी सीमाओं के
प्रति मैं सजग हूं। यह सजगता ही मेरी एकमात्र शक्ति है। मैं अपने जीवन में जो कुछ
कर पाया हूं, वह किसी अन्य बात की अपेक्षा अपनी सीमाओं को पहचानने की मेरी
क्षमता के कारण ही है। और इसी क्षमता का प्रदर्शन बॉम्बे की सभा में हुआ।
फीरोज़शाह मेहता से मिले
सार्वजनिक सभा के लिए भाषण की
बात सोचने का समय भी वे निकाल न पाए। बिना किसी आराम के वे लगातार एक महीने से
अधिक खटे जा रहे थे। लम्बे जागरण की थकावट असर करने लगी। आवाज़ भारी हो गई और उनका
गला बैठ चुका था। सभा की तारीख से एक दिन पहले गांधीजी शाम को पांच बजे फीरोज़शाह
मेहता से मिलने उनके दफ़्तर पहुंचे। फिरोजशाह मेहता एक बहुत ही साहसी और मौलिक वकील
थे तथा भारतीयों द्वारा उनका सम्मान किया जाता था क्योंकि वे राष्ट्रवादी
उद्देश्यों के लिए समर्पित थे। सर मेहता ने गांधीजी से पूछा, “क्या तुम्हारा भाषण तैयार है?” गांधीजी ने डरते-डरते जवाब
दिया, “जी, नहीं सर मैं तो जबानी ही बोलने की बात सोच रखी है।” सर मेहता ने समझाया, “ऐसा यहां बम्बई में नहीं चलेगा। यहां की रिपोर्टिंग ख़राब है। यहां का
प्रेस बात का बतंगड़ निकाल देता है। अगर हमें इस सभा से कुछ फ़ायदा उठाना है तो
बेहतर तो यही होगा कि तुम अपना भाषण लिख लो। साथ ही कल सुबह तक इसकी कुछ प्रतियां
भी प्रिंट करवाकर रख लेना। भाषण रात में ही लिख लोगे न?” घबराते हुए भी गांधीजी ने हामी भरी। सर मेहता बोले, “तो मुंशी
तुम्हारे पास भाषण लेने कब पहुंचे?” गांधीजी ने जवाब दिया, “ग्यारह बजे।” गांधीजी के लिए यह बहुत बड़ी सबक थी। अब तक वे अक्सर जबानी ही भाषण
दिया करते थे। शाम के 5 बज रहे थे। गांधीजी के पास सिर्फ़ छह घंटे बचे थे, जिसमें उन्हें अपना भाषण तैयार करना
था। रात के ग्यारह बजे सर मेहता के मुंशी आकर भाषण की प्रति ले गए। रात में उसकी
छपाई भी हो गई।
गांधीजी का भाषण देने का पहला अनुभव
26 सितम्बर, 1896 को सर फरामजी
कावसजी जहांगीर इंस्टीच्यूट के सभागार में सभा हुई। सर फीरोज़शाह मेहता ने बैठक की
अध्यक्षता की। जिस सभा में सर फीरोज़शाह मेहता बोलने वाले होते थे उस सभा में खड़े
होने की जगह भी नहीं मिलती थी। उनकी सभाओं में विद्यार्थी समाज खास रस लेता था। ऐसी
सभा का गांधीजी का यह पहला अनुभव था। वह एक भावुक वक्ता नहीं थे। उनका भाषण शांत और
धीमा होता था, जो मुख्यतः बुद्धिजीवियों को आकर्षित करता था। लेकिन इस शांत तरीके
से,
उनके
पास किसी विषय को स्पष्ट तरीक़े से, सरलता से, और बड़ी ताकत के
साथ रखने का विशिष्ट कला थी। खचाखच भरे
सभा-भवन में जब गांधीजी लिखित भाषण बोलने को खड़े हुए तो बैठे हुए गले से निकली
उनकी धीमी आवाज़ लोगों तक पहुंच ही नहीं रही थी। गांधीजी कांपते-कांपते भाषण पढ़ रहे
थे। अध्यक्ष सर मेहता
ने उनसे ज़ोर से बोलने को कहा। इससे उनकी घबराहट और भी बढ़ गई। उन्हें लगा कि उनका गला सूख
रहा और अब तो आवाज़ भी नहीं निकल रही है। वे भारत में पहली बार किसी सार्वजनिक सभा
को संबोधित कर रहे थे। उन्हें लगा कि सभा-भवन आंखों के आगे नाच रहा है। उनके ऊपर भारी आफ़त आ गई है।
दिनशॉवाचा ने भाषण पढ़ा
गांधीजी के पुराने मित्र
केशवराव देशपाण्डे, जिनसे गांधीजी का लन्दन के दिनों से परिचय था, उनकी मदद के लिए आगे बढ़े। गांधीजी
ने भाषण उनके हाथ में दे दिया। उनकी आवाज़ अच्छी थी,
पर श्रोता उन्हें सुनने को तैयार न थे। “वाचा – वाचा’’ की पुकार से हॉल गूंजने लगा। दिनशॉवाचा, उन दिनों बम्बई के प्रसिद्ध
व्यक्तियों में से एक थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कान्ग्रेस के संस्थापक सदस्यों में
से एक थे। कई वर्षों तक वे इसके सचिव भी रह चुके थे। बाद में 1901 में इसके अध्यक्ष
भी चुने गए। उन्होंने स्थिति को नियंत्रण में लिया और देशपाण्डे के हाथ से भाषण की
लिखी प्रति लेकर पढ़ना शुरु किया। दिन्शॉवाचा की वाक्पटुता और गांधीजी के लेखन का
कौशल ने ऐसा समां बांधा कि दर्शक और श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। दक्षिण
अफ़्रीका में भारतीयों के ऊपर हो रहे जुल्म और गांधीजी द्वारा नस्लभेद के विरुद्ध
किए गए प्रयासों का ऐसा लेखा-जोखा था कि सबकी सहानुभूति उमड़ पड़ी। जहां ज़रूरी था वहां ‘शेम-शेम’ की
और तालियों की आवाज़ भी होती रही। एक अपील के रूप में जिस टिप्पणी के साथ भाषण समाप्त हुआ उसे सुन कर
भारतीय नेता उसे हलके में नहीं ले सके, “हमने आपके सामने स्थिति रखा। अगर जुल्मों की तलवार हमारी गर्दन से न
हटाई गई तो उसकी एक हद तक जिम्मेदारी आपके कंधों पर भी आ जाएगी। इसके अंदर रह कर
हम तो सिर्फ़ दुख और कष्ट से रो और चिल्ला ही सकते हैं। हमारे अग्रज होने के नाते
अब यह आप पर है कि हमें इससे मुक्ति दिलाएं। हमें विश्वास है कि हमारी आवाज़ बेकार
नहीं जाएगी।’’
शानदार भाषण की प्रशंसा
भाषण समाप्त होते ही पूरा हॉल
तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इस शानदार रचित भाषण पर सर फीरोज़शाह मेहता ने दिल
से प्रशंसा की। गांधीजी को गंगा नहाने का-सा सन्तोष हुआ। यह भारत में
उनका पहला महत्वपूर्ण सार्वजनिक भाषण था। इस सभा के परिणाम-स्वरूप देशपाण्डे और एक पारसी सज्जन तलयार खान ने गांधीजी
के प्रयासों में हाथ बंटाने का अपना इरादा ज़ाहिर किया और दक्षिण अफ़्रीका भी जाने
का अपना निश्चय प्रकट किया। पर कुछ कारणों से दोनों ही न जा सके। सभा के समापन से
पूर्व एक प्रस्ताव पारित किया गया। समाचारपत्रों ने भी इस सभा को न सिर्फ़ समुचित
महत्व दिया बल्कि उसका विस्तृत प्रचार भी किया।
उपसंहार
गांधीजी किसी अन्य व्यक्ति की
अपेक्षा लोगों को अधिक अच्छी तरह समझते थे। अपनी सच्चाई और अपने तरीकों में
विश्वास रखने के कारण उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के संघर्ष में शीर्ष स्थान ग्रहण किया।
जहां तक उनके नेतृत्व का प्रश्न है, उन्हें यह पद मांगने से नहीं बल्कि निष्ठापूर्वक सेवा करने के फलस्वरूप
प्राप्त हुआ। जिस तरह व्यक्ति अपनी त्वचा के रंग को नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार ऐसे नेतृत्व का त्याग भी गांधीजी
नहीं कर सकते थे। साथ ही दक्षिण अफ़्रीकी भारतीयों ने गांधीजी को सभी खामियों और
सीमाओं के साथ अंगीकार किया। इनमें से बहुत सी खामियों और सीमाओं का गांधीजी को बोध
था।
*** *** ***
मनोज
कुमार
संदर्भ :
1 |
सत्य के प्रयोग – मो.क. गाँधी |
2 |
बापू के साथ – कनु गांधी और आभा
गांधी |
3 |
Gandhi Ordained in South
Afrika – J.N. Uppal |
4 |
गांधीजी एक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन |
5 |
महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां |
6 |
M. K. GANDHI AN INDIAN
PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE |
7 |
गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी |
8 |
गाांधी जीवन और विचार - आर.के . पालीवाल |
9 |
दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास,
मो.क. गाँधी |
10 |
The Life and Death
of MAHATMA GANDHI by Robert
Payne |
11 |
गांधी की कहानी - लुई फिशर |
12 |
महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा |
13 |
Mahatma
Gandhi – His Life & Times by:
Louis Fischer |
14 |
MAHATMA Life of
Mohandas Karamchand Gandhi By:
D. G. Tendulkar |
15 |
MAHATMA GANDHI
By PYARELAL |
16 |
Mohandas A True
Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi |
17 |
Catching
up with Gandhi – Graham Turner |
18 |
Satyagraha – Savita Singh |
पिछली
कड़ियां- गांधी और गांधीवाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।