गांधी और गांधीवाद
64. बम्बई
से पूना आगमन
अक्तूबर, 1896
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से मुलाक़ात
11 अक्तूबर, 1896 को गांधी जी बम्बई (मुम्बई) से पूना (पुणे) होते हुए
मद्रास (चेन्नई) के लिए रवाना हुए। पूना में उन्हें तत्कालीन भारत की गुटबाजी से भरी
राजनीति का पहली बार दर्शन हुआ। पूना में उन
दिनों भारतीय राजनीति के दो शिखर पुरुष गोखले और तिलक रहते थे। पूना में दो दल थे।
पर गांधी जी को तो सबसे मदद लेनी थी। 12 अक्तूबर को वे असाधारण मेधावी, प्रख्यात पत्रकार, सुधारक, विधिवेत्ता और गणितज्ञ
तथा “प्रत्यक्ष कार्रवाई” के दृढ़ प्रतिपादक और महान राजनैतिक नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से मिले। लोकमान्य
दिसम्बर 1889 में पहली बार बम्बई (मुंबई) सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के
मंच पर आए। वे क्रांतिकारी नेता थे। “स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे” उनका नारा था। सामाजिक
कार्यों में अग्रणी रहे तिलक ने कई समाज सुधार आंदोलन भी चलाए। ‘सार्वजनिक सभा’ का संचालन करते थे। वे लाल पगड़ी
पहनते थे और छाता लेकर चलते थे, और नम्र और सौम्य दिखते
थे। हाल ही में उन्होंने गीता का अनुवाद
किया था। उन्होंने गांधी जी से गीता पर चर्चा की।
लोकमान्य ने गांधी जी को
देखते ही ताड़ लिया कि इस युवा बैरिस्टर को भारतीय राजनीति का रंचमात्र भी ज्ञान
नहीं है। ‘दक्षिण अफ़्रीका के सत्याग्रह का इतिहास’ में गांधी जी इस मिलन का रोचक
विवरण प्रस्तुत करते हैं।
मिलते ही उन्होंने गांधी जी
से पूछा, “आप गोपालराव से मिल चुके हैं?”
गांधी जी को लोकमान्य के कथन
का आशय समझ नहीं आया। लोकमान्य ने यह भांप लिया,
इसलिए उन्होंने पूछा, “श्री गोखले से आप मिल चुके हैं? उन्हें जानते हैं?”
गांधी जी ने बताया, “अभी मिला नहीं। उन्हें नाम से जानता
हूं। पर मिलने का इरादा है।”
लोकमान्य ने कहा, “आप हिंदुस्तान की राजनीति से परिचित
नहीं जान पड़ते।”
गांधी जी ने कहा, “विलायत पढ़कर लौटने के बाद मैं हिन्दुस्तान में थोड़े ही दिन रहा और उस
समय राजनैतिक मामले में ज़रा भी दखल नहीं दिया।”
लोकमान्य ने कहा, “तब मुझे आपको कुछ परिचय देना पड़ेगा।
पूना में दो पक्ष हैं – एक सार्वजनिक सभा का, दूसरा दक्खिन सभा का।”
गांधी जी बोले, “इसके बारे में कुछ-कुछ जानता हूं।”
लोकमान्य तिलक ने गांधी जी से
कहा, “सब दलों की मदद लेने का आपका विचार बिलकुल ठीक है। आपके प्रश्न के
सम्बन्ध में कोई मतभेद हो ही नहीं सकता। परन्तु आपके काम के लिए आपकी सभा का
सभापति हममें में से कोई हो तो दक्खिन सभा वाले नहीं आएंगे और दक्खिन सभा का कोई
आदमी सभापति बने तो हममें से कोई नहीं जाएगा। अतः आपको तटस्थ सभापति ढूंढ़ना चाहिए। आप प्रो.
भण्डारकर से मिलिए। यों तो वे आजकल किसी आन्दोलन में सम्मिलित नहीं होते। संभव है
कि इस काम के लिए आगे आ जायें। उनसे मिलकर नतीजे की खबर मुझे कीजिएगा। मैं आपको
पूरी-पूरी सहायता देना चाहता हूं। आप प्रोफेसर गोखले से भी अवश्य मिलिएगा। मुझसे
जब कभी मिलने की इच्छा हो ज़रूर आइएगा।”
गोपाल कृष्ण गोखले से भेंट
वहां से उसी दिन वे ‘भारत सेवक समिति’ (Servants of India Society) के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने गए। गोखले अपना सारा जीवन
सार्वजनिक कार्यों के लिए समर्पित कर चुके थे। ‘देक्कन एजुकेशन सोसाइटी’ फ़र्ग्यूसन कॉलेज का संचालन करती थी। गोखले जी फ़र्ग्यूसन कॉलेज में
अर्थशास्त्र और इतिहास पढ़ाते थे। गांधीजी गोपाल कृष्ण
गोखले की ओर काफी आकर्षित हुए, जो शांत और अधिक गंभीर
विद्वान थे, उनका मानना था कि
संवैधानिक तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। वे सदैव देशभक्त युवकों को खोजने-परखने में लगे रहते थे। गोखले ने उन्हें
एक स्कूल मास्टर की तरह परखा, जो एक स्कूली छात्र की
शिक्षा की सीमा जानने के लिए उत्सुक था। वह दक्षिण
अफ़्रीका के युवा बैरिस्टर के उत्साह और कार्य-निष्ठा से बहुत प्रभावित थे। वह आकर्षक और
मिलनसार थे, अपने शिष्य को सहज महसूस
कराने के लिए उत्सुक थे, लेकिन उनमें इस्पात की
चमक थी। गांधी जी से बड़े प्रेम से मिले। शुरुआती
दिनों की यह पहली भेंट धीरे-धीरे गहरे संबंध में तबदील होती गई। हालाकि गांधी जी
सिर्फ़ 27 वर्ष के थे, जब वे गोखले जी से मिले थे, और गोखले जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक
थे। वे राजनीतिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर भी ज़ोर देते थे।
राजनीति में वे उदार दल के सदस्य थे और संवैधानिक तरीक़े से विरोध के पक्षधर थे। गोखले गांधी जी के द्वारा दाक्षिण
अफ़्रीका में किए जा रहे कार्यों के प्रति उत्साह और कार्यनिष्ठा से बहुत प्रभावित
हुए। गांधी जी तो उनके मुरीद थे ही।
गोखले और तिलक की सार्वजनिक
और राजनैतिक मामले में कभी पटरी नहीं बैठती थी। उनके विचार नहीं मेल खाते थे। तिलक और गोखले के बीच चाहे जो भी
वैचारिक मतभेद रहे हों दोनों ही गांधी जी के लिए मददगार साबित हुए। दक्षिण अफ़्रीका
में प्रवासी भारतीयों की समस्या के लिए दोनों पहली बार एक सार्वजनिक सभा का
संयुक्त रूप से आयोजन करने को तैयार हुए। यह तो एक तरह से अनहोनी बात थी। गांधी जी
विशेष रूप से गोखले से अधिक निकटता महसूस किए। उनके व्यक्तित्व में कुछ खास बात थी
कि उनके पास जाते ही गांधी जी मंत्रमुग्ध हो जाते थे। गोखले ने पुत्र की भांति
उनका स्वागत किया। हर दृष्टि से गोखले एक असाधारण व्यक्ति के धनी थे। 6 अक्टूबर 1921
के यंग इंडिया में गांधी ने गुरु को 'पूर्ण शुद्धता
और पूर्ण ज्ञान' का दुर्लभ संयोजन बताया
था। इन दोनों व्यक्तियों में उम्र का अंतर अधिक न होने (1866 में जन्मे गोखले गांधी जी से सिर्फ़ तीन साल बड़े थे) के बावज़ूद भी
गांधी जी गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते रहे। समाज सेवा से संबंधित सभी कामों में अपना मार्गदर्शक समझते रहे। इस
यात्रा में जिन तीन महापुरुषों से वे मिले उनकी तुलना करते हुए गांधी जी लिखते हैं सर फिरोज़शाह मेहता हिमालय की
तरह ऊंचे और दुर्लघ्य थे, तिलक सागर की तरह विशाल और अगाध और गोखले गंगा मां की तरह सबको अपने
हृदय में बसा लेने वाले। गंगा में मैं नहा सकता था। हिमालय पर चढा नही जा सकता था। समुद्र में डूबने का डर
था। गंगा की गोद में तो खेला जा सकता था। उसमें डोंगियां लेकर सैर की जा सकती
थी।
गांधी जी ने उन्हें लोकमान्य
तिलक से हुई बात और भंडारकर जी के सभाध्यक्ष होने वाली बात बताई। गोखले जी ने भी
सभा के अध्यक्ष के रूप में भंडारकर जी के नाम का समर्थन किया। गोखले ने एक शिक्षक
की भांति पहले तो उनकी जांच की। फिर बताया कि वे किस-किस से मिलें और कैसे मिलें।
फिर उनसे उनका भाषण देखने के लिए मांगे। गोखले ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया और
बोले, “जब मिलना हो, ख़ुशी से मिलना और डॉक्टर भण्डारकर का उत्तर मुझे जताना।” बदले में गांधी जी ने उन्हें
जीवन भर के लिए उनके प्रति अपनी निष्ठा समर्पित की।
यह तो अच्छा हुआ कि गांधी जी
ने अपनी राजनैतिक गतिविधियां दक्षिण अफ़्रीका में शुरु की। यदि भारत में शुरु की
होती तो शायद उन्हें हर क़दम पर मुसीबतें हीं मिलतीं। भारत की राजनीति भी उनकी
रचनात्मक प्रतिभा के उपयुक्त नहीं थी। सभी क्षेत्रों में दल बंदियों और वैयक्तिक
उखाड़-पछाड़ का ज़ोर था। इस सब के बावज़ूद भी उन्हें सभी प्रमुख नेताओं का स्नेह, सहयोग और समर्थन मिला, क्योंकि भारत के सभी पक्षों और दलों
के नेता दक्षिण अफ़्रीका के प्रवासी भारतीयों के मसले पर प्रायः एकमत थे।
डॉ. रामकृष्ण भंडारकर से मिले
डॉ. रामकृष्ण भंडारकर से भी
गांधी जी मिले। उन्होंने भी गर्मजोशी से गांधी जी का स्वागत किया। दोपहर हो चुकी
थी। इस दोपहरी में भी गांधी जी काम कर रहे हैं यह उस उद्यम शास्त्रज्ञ को प्यारी
लगी। और तटस्थ सभापति की बात सुनकर ‘देट्स इट, देट्स इट’ के उद्गार उनके मुंह से निकले। बोले, ‘‘यों तो मैं आजकल
किसी राजनीतिक काम में हिस्सा नहीं लेता,
अब तो बूढ़ा भी हुआ, पर तुमको मैं खाली हाथ नहीं
लौटा सकता। तुम्हारा मामला इतना मज़बूत है कि मैं तुम्हारी सभा में आने से और
सभापति पद स्वीकार करने से इंकार कर ही नहीं सकता।”
बिना किसी हो-हल्ले और आडम्बर
के एक सादे मकान में पूना के इन विद्वानों की मंडली ने सभा की और गांधी जी को
प्रोत्साहित किया।
उपसंहार
उस समय की भारतीय राजनीति गांधीजी की रचनात्मक प्रतिभा के उपयुक्त
नहीं थी। सभी क्षेत्रों में दलबंदियों
और वैयक्तिक उखाड-पछाड का ज़ोर हो चला था। लेकिन इतना सब
होते हुए भी गांधीजी को सभी प्रमुख नेताओं का स्नेह, सहयोग और समर्थन मिला, क्योंकि भारत के सभी पक्षों
और दलों के नेता दक्षिण अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों के हितों और अधिकारों के प्रश्न पर प्रायः एकमत थे। इस प्रवास में
गांधीजी जितने भी भारतीयों से मिले, उनमें से गोखले
का उन पर सबसे अधिक प्रभाव था, इतना नहीं कि उनकी
बौद्धिक श्रेष्ठता के कारण - ऐसे भारतीय भी थे जिनकी बौद्धिक उपलब्धियाँ उनसे कहीं
अधिक थीं - बल्कि इसलिए कि उनके पास अनुभव का खजाना था जिसके कारण गांधीजी ने उनकी
तुलना गंगा से की।
*** *** ***
मनोज कुमार
पिछली
कड़ियां- गांधी और गांधीवाद
संदर्भ :
1 |
सत्य के प्रयोग – मो.क. गाँधी |
2 |
बापू के साथ – कनु गांधी और आभा
गांधी |
3 |
Gandhi Ordained in South
Afrika – J.N. Uppal |
4 |
गांधीजी एक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन |
5 |
महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां |
6 |
M. K. GANDHI AN INDIAN
PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE |
7 |
गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी |
8 |
गाांधी जीवन और विचार - आर.के . पालीवाल |
9 |
दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास,
मो.क. गाँधी |
10 |
The Life and Death
of MAHATMA GANDHI by Robert
Payne |
11 |
गांधी की कहानी - लुई फिशर |
12 |
महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा |
13 |
Mahatma
Gandhi – His Life & Times by:
Louis Fischer |
14 |
MAHATMA Life of
Mohandas Karamchand Gandhi By:
D. G. Tendulkar |
15 |
MAHATMA GANDHI
By PYARELAL |
16 |
Mohandas A True
Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi |
17 |
Catching
up with Gandhi – Graham Turner |
18 |
Satyagraha – Savita Singh |
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