सोमवार, 2 सितंबर 2024

62. बीमार बहनोई की तीमारदारी

 गांधी और गांधीवाद

 


सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। - महात्मा गांधी

62. बीमार बहनोई की तीमारदारी

अगस्त, 1896

बम्बई (मुम्बई) में

दक्षिण अफ़्रीका के भारतवासियों के विषय में देशवासियों को भलीभाँति बताने के लिए गांधीजी देश के सब नेताओं की सहानुभूति पाना चाहते थे। साथ ही खास-खास शहरों में सभा करके इस समस्या पर लोकमत तैयार करने के उद्देश्य से गांधी जी ने देशव्यापी दौरा शुरु किया। राजकोट में पुस्तिका से संबंधित अपना काम समाप्त कर सबसे पहले वे 17 अगस्त को बम्बई (मुम्बई) के लिए रवाना हुए। अपने साथ गांधी जी हरी पुस्तिका की प्रतियां भी ले गए थे। वहां (मुम्बई) 19 अगस्त को गांधी जी न्यायमूर्ति महादेव गोविंद राणाडे से मिले। उन्होंने गांधी जी की बात ध्यान से सुनी। उन्हें गांधी जी की बात न्यायसंगत लगी। उन्होंने गांधी जी को न्यायमूर्ति बदरुद्दीन तैयबजी से मिलने कहा।

गांधी जी की बात ध्यानपूर्वक सुनने के बाद जस्टिस तैयबजी ने कहा, “जस्टिस राणाडे और मैं आपका बहुत कम मार्गदर्शन कर सकेंगे। हमारी स्थिति आप जानते हैं। हम सार्वजनिक काम में हाथ नहीं बंटा सकते। पर हमारी भावना तो आपके साथ है ही। सच्चे मार्गदर्शक तो सर फिरोजशाह हैं।

गांधी जी बम्बई के शेर’ और बम्बई के बेताज बादशाह सर फिरोज़शाह मेहता से मिलने पहुंचे। सर मेहता एक प्रखर अधिवक्ता और घोर राष्ट्रवादी थे। देश के लोगों में उनकी काफ़ी प्रतिष्ठा थी क्योंकि वे राष्ट्रवादी उद्देश्यों के लिए समर्पित थे। एक तेज-तर्रार, दयालु और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति, उन्हें हर चीज पहले से अच्छी तरह से तैयार रखना पसंद था और आधे-अधूरे उपायों से घृणा थी। गांधी जी को इनपर अपने लंदन के विद्यार्थी काल से ही असीम श्रद्धा और भक्ति थी। पिता जिस प्रेम से बेटे से मिलता है, उसी तरह वे गांधी जी से मिले। उनके चेम्बर में अनुयायियों का दरबार लगा हुआ था। दिनशॉ वाच्चा और नौशेर कामा भी मौज़ूद थे। वाच्चा सर फीरोज़शाह मेहता के दाहिना हाथ थे। इनसे सर मेहता ने गांधी जी को परिचय कराया। गांधी जी ने सर फिरोज़शाह मेहता को दक्षिण अफ़्रीका की परिस्थिति से अवगत कराया। सर मेहता ने इसमें रुचि दिखाई। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक आम सभा करनी होगी। अपने मुंशी से उन्होंने सभा का दिन निश्चित करने के लिए कहा।

बीमार बहनोई की देखभाल


गांधी जी में शुश्रूषा का स्वाभाविक गुण था। बीमारों की सेवा वे बड़े शौक से करते थे। बम्बई यात्रा में गांधी जी अपनी बहन रालियात बेन के घर गए जिनके पति मोढ बनिया थे। आपको याद होगा कि मोढ बनिया ने विलायत जाने के कारण गांधीजी को समाज से बहिष्कृत कर रखा था (19. विलायत क़ानून की पढाई के लिए)। गांधी जी के बहनोई उन दिनों काफ़ी बीमार थे। यह देख कर गांधी जी को काफ़ी दुख हुआ कि उनकी बहन की न तो आर्थिक स्थिति ठीक थी और न ही शारीरिक अवस्था ही ऐसी थी कि अपने पति की उचित देखभाल कर पाती। बीमारी गंभीर थी। उन्होंने उन्हें राजकोट चलने का प्रस्ताव दिया ताकि उनकी तीमारदारी ठीक से हो सके। वे दोनों इस पर सहमत हो गए। अपने साथ गांधी जी अपने बीमार बहनोई को भी राजकोट ले गये कि उनकी तीमारदारी कर सकें।

राजकोट में उनकी बीमारी काफ़ी गम्भीर हो गयी। बहनोई को गांधी जी ने अपने कमरे में रखा। उन्होंने अपने बहनोई की एक महीने तक दिन-रात सेवा की। उनकी सेवा करते हुए गांधी जी दक्षिण अफ़्रीका का काम भी कर रहे थे। सारे प्रयत्नों के बावज़ूद उन्हें बचा न सके। उनकी बहन और खुद गांधी जी को इस बात का संतोष था कि वे उनकी जहां तक संभव हो सका अच्छी से अच्छी सेवा प्रदान करने का प्रयत्न किया।

सेवा शुश्रुषा के गांधीजी के इस शौक ने आगे चलकर विशाल रूप धारण कर लिया। इस शौक के अनुपालन में वे अपने काम-धंधा को भूल जाते थे। पत्नी और बच्चों तक को इसमें लगा देते थे। गांधी जी इसे शौक मानते थे। क्योंकि जब ये गुण आनन्द दायक हो जाते हैं तभी निभ सकते हैं। गांधी जी का मानना था, खींच-तानकर या दिखावे के लिए या लोकलाज के कारण की जाने वाली सेवा आदमी को कुचल देती है। वैसी सेवा करते हुए आदमी प्रफुल्लित नहीं रहता, मुरझा जाता है। जिस सेवा में आनंद नहीं मिलता, वह न सेवक को फलती है, न सेव्य को रुचिकर लगती है। जिस सेवा में आनन्द मिलता है, उस सेवा के सामने ऐश-आराम या धनोपार्जन का काम तुच्छ हो जाता है।

दक्षिण अफ्रीका में फीनिक्स के कैदियों को प्रार्थना के बाद दिए गए अपने संबोधन में बीमारों और रोगियों की देखभाल करने के आदर्श को सामने रखते हुए उन्होंने एक बार टिप्पणी की थी कि "जब हम सेवा करते हैं, तो हमारी प्रार्थना यह होनी चाहिए कि ईश्वर हमें रोगी के दुख को अपने ऊपर लेकर दूर करने में सक्षम बनाए।" उन्होंने ऐसी निस्वार्थ प्रेमपूर्ण सेवा को आत्मा को शुद्ध करने के लिए अतुलनीय साधन माना। अपने महात्मा पद के दिनों में जब लोग अपनी आध्यात्मिक बीमारियों और गहरे आंतरिक घावों के साथ उनके पास आते थे, तो वे अपनी असीम करुणा से उन्हें यह सर्वोच्च उपचार बताते थे: जो सेवा बिना आनंद के की जाती है, उससे न तो सेवक को कोई लाभ होता है और न ही सेवा प्राप्त करने वाले को। लेकिन अन्य सभी सुख और संपत्तियाँ उस सेवा के सामने फीकी पड़ जाती हैं जो आनंद की भावना से की जाती है।

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मनोज कुमार

संदर्भ :

1

सत्य के प्रयोग – मो.क. गाँधी

2

बापू के साथ – कनु गांधी और आभा गांधी

3

Gandhi Ordained in South Afrika – J.N. Uppal

4

गांधीजी एक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन

5

महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां

6

M. K. GANDHI AN INDIAN PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE

7

गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी

8

गाांधी जीवन और विचार - आर.के . पालीवाल

9

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, मो.क. गाँधी

10

The Life and Death of MAHATMA GANDHI by Robert Payne

11

गांधी की कहानी - लुई फिशर

12

महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा

13

Mahatma Gandhi – His Life & Times by: Louis Fischer

14

MAHATMA Life of Mohandas Karamchand Gandhi By: D. G. Tendulkar

15

MAHATMA GANDHI By  PYARELAL 

16

Mohandas A True Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi

17

Catching up with Gandhi – Graham Turner

18

Satyagraha – Savita Singh

 

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