राष्ट्रीय आन्दोलन
298.
राजनीति से दूर रहकर रचनात्मक कार्य
1924
गांधी जी ने भविष्य
की चिंता करने या कोई दूरस्थ कार्यक्रम बनाने से इंकार कर दिया। हालाकि उनकी
लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही थी, फिर भी हो सकता है कि जनता उनकी
इच्छानुसार काम न कर रही हो, इसलिए वे कुछ दिन राजनीति से दूर ही रहना चाहते हों।
अगले पांच वर्षों में गांधीजी सक्रिय राजनीति से अलग रहकर बुनियादी राष्ट्रीय
आवश्यकता, और आज़ादी की सच्ची बुनियाद के प्रचार-प्रसार में व्यस्त रहे।
हिंदू-मुस्लिम एकता, छुआछूत का उन्मूलन, स्त्रियों को समान अधिकार, ग्रामीण-व्यवस्था
की पुनर्स्थापना, आदि उनके प्रमुख कार्यक्रम थे। इसके अलावा उन्होंने अपना ध्यान
घर में बुने कपड़े; खादी को बढ़ावा देने पर लगाया। गाँधीजी जितने
राजनीतिक थे उतने ही वे समाज सुधारक थे। उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता के योग्य
बनने के लिए भारतीयों को बाल विवाह और छूआ-छूत जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्त
होना पड़ेगा। एक मत के भारतीयों को दूसरे मत के भारतीयों के लिए सच्चा संयम लाना
होगा और इस प्रकार उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों के बीच सौहार्द्र पर बल दिया। इसी
तरह आर्थिक स्तर पर भारतीयों को स्वावलंबी बनना सीखना होगा- ऐसा करके उन्होंने समुद्र
पार से आयातित मिल में बने वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने पर
जोर डाला।
खादी के प्रचार के लिए उन्होंने सारे
देश में दूर-दूर तक दौरा किया। वे दूर-दूर तक देहातों में भी गए। सब जगह उन्हें
देखने के लिए विशाल जन-समुदाय उमड़ पड़ता था। इसके लिए वे न सिर्फ़ रेल और मोटर से
बल्कि पैदल भी यात्राएं किया करते थे। इस तरह से उन्होंने भारत और भारतीय जनता के
बारे में बहुत ही अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। इससे भारत के करोड़ों लोग उनके
संपर्क में आए।
गांधीजी ने यदा-कदा होने वाले
सत्याग्रहों के अलावा राजनीति से दूर रहकर जो गांवों में रचनात्मक कार्यों में
अपना ध्यान केन्द्रीत किया उसके काफ़ी दूरगामी प्रभाव सामने आए। आने वाले दिनों में
यह साबित हो गया कि कांग्रेस के लिए ग्रामीण समर्थन पाने में गांवों में गांधीजी
के रचनात्मक कार्यों का पर्याप्त राजनीतिक महत्व था। यह निम्न जातियों और अछूतों
में कांग्रेस की विश्वसनीयता और लोकप्रियता बढ़ाने में मददगार साबित हुई। शिक्षा,
खादी आदि से जुड़ी समाज-सेवी संस्थाएं अच्छी-खासी संख्या में कांग्रेस के
पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण करती और वित्तीय सहायता देती थी। राष्ट्रीय
शिक्षा के कार्यक्रम शहरी निम्न वर्ग और किसान वर्ग के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुए।
खादी के कार्यक्रमों ने जहां एक ओर ग्रामीण निर्धनों को आर्थिक राहत पहुंचाई वहीं
दूसरी ओर इसने भद्रलोक राजनीतिज्ञों को किसानों जैसे वस्त्र पहनने के लिए प्रेरित
किया। और सबसे महत्वपूर्ण योगदान इसने 1930 में दिया जब रचनात्मक कार्यों
के देशव्यापी केन्द्रों ने 1930 में जो सविनय अवज्ञा आंदोलन हुआ उसकी गतिविधियों के लिए आरंभिक आधार
प्रदान किया।
आश्रम-जीवन
सत्याग्रह आश्रम में दिन का कामकाज निबटाने के बाद
जब बापू लौटते, तो बा उनके सर में तेल मालिश किया करती। एक रात बा को आने में देर हो गई। बापू ने पूछा आज इतनी देर क्यों हो गई? बा ने बताया कि सबको खिलाकर, बरतन साफ किए। उसके बाद बम्बई जानेवाले रमदास के लिए रास्ते का खाना और दो-चार दिन का नाश्ता तैयार करने लगी थी, इसलिए देर हो गई।
बापू ने कहा, तुझ पर काम का बहुत बोझ रहता है। मेरे नहाने-खाने की व्यवस्था करती है। मेहमानों की आवभगत भी करती है। कपडों के लिए सूत कातने का काम भी करती है। इस भारी काम के बोझ के बावजूद तू रामदास के लिए नाश्ता बना रही थी। कल रामदास बम्बई जाएगा, परसों तुलसी नेपाल जाएगा, तीसरे दिन सुरेन्द्र दिल्ली जाएगा – इस तरह कोई न कोई आदमी आश्रम से बाहर जाता ही रहेगा। क्या तू हर किसी के लिए नाश्ता और खाना बनाकर देती रहेगी?
बा ने जवाब दिया, नहीं। लेकिन रामदास मेरा लड़का है। आप तो महात्मा ठहरे, इसलिए बाहर से आनेवाले सभी लोग आपके लड़के हैं। लेकिन मैं अभी महात्मा नहीं बन पाई हूं। इसीलिए मैंने आपके सर में तेल मलना छोड़कर उसकी पसन्द का खाना बनाया।
बापू ने संयम रखते हुए समझाया, हम इस समय सत्याग्रह आश्रम में हैं, आपने राजकोट के घर में नहीं। हमारा मकसद देशसेवा है। जो भाई-बहन दूर-दूर से अपने मां-बाप को छोड़कर हमारे पास आए हैं, वे हमें जन्म देनेवाले मां-बाप से कम नहीं मानते। तो हमारा क्या धर्म है? रामदास पर तेरे अधिक प्रेम को मैं समझ सकता हूं। अगर हम राजकोट के घर में होते, तो बात आलग होती। वहां तू दूसरों को अपने लड़कों से कम मानती तो चल जाता। लेकिन यह आश्रम तो सभी सत्याग्रही सेवकों का है। इसलिए यहां तो दूसरे लोग जैसे रहें उसी तरह रामदास को भी रहना चाहिए। जो लोग तुझे अपनी मां से भी ज़्यादा मानते हैं, उन्हें तू रामदास से कम कैसे मान सकती? इस आश्रम पर आज सारी दुनिया की नज़र लगी हुई है। इससे दुनिया बडी आशाएं रखती है।
बा ने कहा, आपकी बात सही है। मेरी नज़र में सब रामदास जैसे ही होने चाहिए।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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