मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

275. लोकमान्य तिलक का निधन

 

राष्ट्रीय आन्दोलन

275. लोकमान्य तिलक का निधन



1920

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जिन नेताओं ने दिशा दी उनमें से एक थे दूर दृष्टि संपन्न लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (1856-1920)। भारत में महात्मा गांधी का युग शुरू होने से पहले वह कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे। उस वक्त भारत के राजनीतिक माहौल में तिलक का जो क़द था उसे देखकर 1917 से 1922 तक देश में ब्रिटिश सेक्रेट्री ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया रहे सैमुअल मोंटेग्यू ने कहा था, "इस वक़्त भारत में शायद तिलक से ज़्यादा ताक़तवर कोई दूसरा शख़्स नहीं है।" उस समय के किसी भी व्यक्ति की जनता पर श्री तिलक जैसी पकड़ नहीं थी। वे निस्संदेह अपने लोगों के आदर्श थे। उनका वचन हजारों लोगों के लिए कानून था। उनकी देशभक्ति उनके लिए जुनून थी। वह जन्मजात लोकतांत्रिक थे। किसी भी व्यक्ति ने लोकमान्य की तरह स्वराज के उपदेशों का प्रचार नहीं किया। इसलिए उनके देशवासियों ने उन पर पूरी तरह से विश्वास किया। उनका आशावाद अदम्य था।

थोड़े वक्त तक बीमार रहने के बाद 1 अगस्त, 1920 में तिलक का बॉम्बे (मुंबई) में निधन हो गया। उस वक्त उनकी उम्र 64 साल थी। देश में शोक छा गया। उनके अंतिम संस्कार में दस लाख से अधिक लोग शामिल हुए। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उस रविवार को पूरा बंबई उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ पड़ा था। लोकमान्य का भारत के प्रति प्रेम असीम था, इसलिए लोगों का भी उनके प्रति प्रेम भी उतना ही असीम था। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। जब अंतिम संस्कार के बाद तिलक की अस्थियां एक विशेष ट्रेन से उनके पैतृक शहर पुणे लाई गईं तो इसके साथ चल रहा जुलूस एक मस्जिद के सामने रुका। लोगों ने वहां अपने प्रिय नेता को श्रद्धांजलि दी और नारे लगाए- "हिंदू-मुस्लिम एकता की जय"।

गांधीजी को जब तिलक के निधन की सूचना मिली तो वे स्तब्ध रह गए और उनके मुख से निकला, मेरा सहारा छूट गया। दोनों के बीच कई विषयों पर असहमति थी, लेकिन दोनों का एक-दूसरे के प्रति असीम श्रद्धा और विश्वास था। शोकाकुल महात्मा गांधी ने अपने अखबार 'यंग इंडिया' में लिखा, "एक विशाल व्यक्तित्व चला गया। एक शेर की आवाज़ शांत हो गई। तिलक ने जिस तन्मयता और आग्रह से स्वराज की अविरल गाथा सुनाई वैसा कोई नहीं कर पाया। तिलक के बेहद नज़दीकी सहयोगी रहे मोहम्मद अली जिन्ना ने हार्दिक श्रद्धांजलि देते हुए कहा- श्री तिलक ने एक सैनिक की तरह देश की सेवा की और हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने में अहम भूमिका अदा की। उन्हीं की वजह से 1916 में लखनऊ समझौते को ज़मीन पर उतार पाना संभव हुआ। वे आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में आने वाली पीढ़ियों तक याद किए जाएंगे। तिलक की पुण्य स्मृति में कांग्रेस ने एक करोड़ रुपए का फंड एकत्रित करने का निर्णय किया। इस हेतु 2 अक्तूबर को ‘तिलक स्वराज्य फंड’ की स्थापना की गई। एक साल के भीतर इस फंड में एक करोड़ रुपए एकत्रित हो गए।

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मनोज कुमार

 

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