राष्ट्रीय आन्दोलन
276. ऑल
इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का गठन
1920
1903-08 का स्वदेशी उभार मजदूर
आंदोलन के इतिहास में एक अलग मील का पत्थर था। कई स्वदेशी नेताओं ने
स्थिर ट्रेड यूनियनों, हड़तालों, कानूनी सहायता और धन
संग्रह अभियानों के आयोजन के कार्यों में खुद को पूरी तरह झोंक दिया। स्वदेशी के दिनों में मजदूर आंदोलन की शायद सबसे महत्वपूर्ण
विशेषता यह थी कि विशुद्ध आर्थिक मुद्दों पर आंदोलन और संघर्ष से मजदूर वर्ग की उस
समय के व्यापक राजनीतिक मुद्दों में भागीदारी की ओर बदलाव हुआ। 16 अक्टूबर 1905 को राष्ट्रीय विद्रोह, जिस दिन बंगाल का
विभाजन लागू हुआ, बंगाल में मजदूर वर्ग की हड़तालों और हड़तालों में तेजी आई। 1905-07 के दौरान हड़ताल में शरीक मज़दूर ‘वंदे मातरम्’ का नारा
लगाने लगे थे। अंग्रेज़ों ने भारतीय मज़दूरों को उनका दुश्मन करार किया था। ‘होम
रूल’ आंदोलन ने मज़दूर आंदोलन को बहुत प्रभावित किया था। अनेक राष्ट्रवादी
आंदोलनकारी नेताओं ने असहयोग आंदोलन के दौरान मज़दूरों को संगठित किया और उनके
संघर्ष का नेतृत्व भी किया। मदुरै के डॉ. पी.ए. नायडू, कोयंबटूर के एम.एस.
रामास्वामी आयंगार, बंबई के जोसेफ बैपटिस्ट और एन.एम. जोशी, लाहौर के दीवान
चमनलाल, एम.ए. खां, बंगाल में स्वामी विश्वानंद और सी.एफ़. एन्ड्र्यूज़ बिहार में,
के अलावा आर.एस. निंबकार, एस.ए. डांगे, एस.एस. मिरजकर, के.एन. जोगलेकर आदि मज़दूर
नेता जो उन दिनों असहयोग आंदोलन में भी सक्रिय थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि
असहयोग आंदोलन के दौरान ही मज़दूर संगठन मज़बूत हुए। नागपुर अधिवेशन में ही मज़दूरों की दशा सुधारने
का प्रस्ताव पारित कर उनकी दशा सुधारने के लिए कार्यक्रम बनाने का निर्णय लिया
गया।
सबसे महत्वपूर्ण विकास 1920 में अखिल भारतीय ट्रेड
यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) का गठन था। लोकमान्य तिलक, जिन्होंने बॉम्बे के
काम से घनिष्ठ संबंध विकसित किए थे, एआईटीयूसी के गठन में प्रेरक
शक्तियों में से एक थे, जिसके पहले अध्यक्ष
पंजाब के प्रसिद्ध उग्रवादी नेता लाला लाजपत राय थे और दीवान चमन लाल, जो भारतीय श्रमिक
आंदोलन में एक प्रमुख नाम बन गए थे, इसके महासचिव थे। 31 अक्तूबर, 1920 को बंबई में लाला
लाजपतराय की अध्यक्षता में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का गठन किया गया।
तिलक, एनी बेसंट और ऐंड्र्यूज इसके उपाध्यक्ष थे। बाद में अनेक राष्ट्रीय नेताओं
चितरंजन दास, नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस आदि ने इसके कार्यों में रुचि ली। भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के अनेक नेता ‘एटक’ में विभिन्न पदों को सुशोभित करते रहे।
नेहरू और लाजपत राय एक ही समय में ‘एटक’ और कांग्रेस के अध्यक्ष थे। पहले
एआईटीयूसी को अपने अध्यक्षीय भाषण में लाला लाजपत राय ने इस बात पर जोर दिया कि, '...भारतीय श्रमिकों को
राष्ट्रीय स्तर पर खुद को संगठित करने में कोई समय नहीं गंवाना चाहिए... इस देश
में सबसे बड़ी जरूरत संगठित होना, आंदोलन करना और शिक्षित होना है।
हमें अपने कार्यकर्ताओं को संगठित करना होगा, उन्हें वर्ग-चेतन बनाना होगा... 'यह जानते हुए कि 'आने वाले कुछ समय के
लिए' कार्यकर्ताओं को उन
बुद्धिजीवियों से सभी प्रकार की सहायता, मार्गदर्शन और सहयोग की आवश्यकता
होगी जो उनके मुद्दों का समर्थन करने के लिए तैयार हैं, उन्होंने कहा कि 'अंततः श्रमिक अपने
नेताओं को अपने ही बीच से खोज लेंगे।'
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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