सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

273. जामिया मिलिया इस्लामिया की आधारशिला

राष्ट्रीय आन्दोलन

273. जामिया मिलिया इस्लामिया  की आधारशिला



1920

राष्ट्रीय आंदोलन की देन है जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1 अगस्त 1920 को अंग्रेजों के खिलाफ पहला जन आंदोलन शुरू हुआ। 1920 से 1922 के बीच महात्‍मा गांधी और भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्‍व में असहयोग आंदोलन चलाया गया। तब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के जरिए चलाए जा रहे सभी शैक्षणिक संस्थानों का विरोध करने को कहा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस कॉल पर राष्ट्रवादी शिक्षकों और छात्रों के एक समूह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छोड़ दिया। जामिया मिल्लिया इस्लामिया उन शिक्षण संस्थानों में से एक है, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के जरिए चलाए जा रहे संस्थानों का बहिष्कार कर स्वतंत्रता संग्राम  के राष्ट्रवादी आह्वान के जवाब में अस्तित्व में आया।

1920 में गांधीजी ने डॉ. अंसारी और अली भाइयों के साथ मिलकर जामिया मिलिया या मुस्लिम विद्यापीठ की आधारशिला रखी थी। पश्चिमी शिक्षा के विरोध में और स्वतंत्रता आंदोलन के लिए रचनात्मक शक्तियों को संगठित करने के लिए 22 नवंबर, 1920 को अलीगढ़ में जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की गई थी। इसकी आधारशिला स्वतंत्रता सेनानी मौलाना महमूद हसन ने रखी थी। इसके पहले चांसलर हक़ीम अजमल ख़ान बनाए गए थे, वहीं अल्लामा इक़बाल के महात्मा गांधी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद मोहम्मद अली जौहर इसके पहले वाइस चांसलर बनाए गए। साल 1920 में चार बड़ी संस्थाएं खोली गई थीं. जमिया मिलिया इस्लामिया, काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और बिहार विद्यापीठ।

जामिया की बुनियाद में राष्ट्रवाद, ज्ञान और स्वायत्त संस्कृति हैं। धीरे-धीरे यह शैक्षिक संस्थान के तौर पर पनपता रहा। जामिया आज़ादी का पक्षधर रहा है और इसके मूल्यों को लेकर चला है। असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलन के वक़्त जामिया मिलिया इस्लामिया फला फूला लेकिन 1922 में असहयोग और 1924 में खिलाफत आंदोलन के वापस लिए जाने के बाद इसका अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया। आंदोलनों से मिलने वाली वित्तीय सहायता बंद हो गईं। जामिया पर संकट के बादल मंडराने लगे। इसके बाद हकीम अजमल ख़ान, डॉ. मुख्तार अहदम अंसारी और अब्दुल मजीद ख़्वाजा ने महात्मा गांधी के सहयोग से जामिया मिलिया इस्लामिया को 1925 में अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग ले आए। गांधीजी जामिया को हर हाल में चलाना चाहते थे और उन्होंने उस वक़्त कहा था, "जामिया को चलना होगा, अगर आपलोगों को वित्तीय कट की चिंता है तो मैं इसके लिए कटोरा लेकर भीख मांगने को तैयार हूं..."। गांधीजी की इस बात से जामिया से जुड़े लोगों का मनोबल बढ़ा। गांधीजी फंड जुटाने की कोशिशों में जुट गए लेकिन ब्रिटिश काल में कोई भी संस्था इसकी मदद कर खुद के लिए जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। अंत में जामिया को दिल्ली लाने वाले लोगों ने मदद जुटाने के लिए दौरा किया और सामूहिक प्रयासों से इसका पतन टल पाया। जामिया के पुनरुत्थान की कोशिशें शुरू हुईं। इस कड़ी में तीन दोस्तों का एक समूह इससे जुड़ा, वे थे डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. आबिद हुसैन और डॉ. मोहम्मद मुजीब। भारत के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन महज 23 साल की उम्र में जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य बने थे। जामिया की कमान डॉ. जाकिर हुसैन को हाथों में दी गई। उन्होंने सबसे पहला कदम शाम की कक्षाओं में प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत करना था। यह शैक्षणिक कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ। उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें विश्वविद्यालय के परिसर में दफनाया गया जहां उनका मकबरा जनता के लिए खुला है। जामिया पहली ऐसी संस्था है पूरे भारत में जहां टीचर्स ट्रेनिंग का प्रावधान किया गया था और देश भर के अलग-अलग हिस्सों से शिक्षक यहां प्रशिक्षण लेने आते थे। उसे 'उस्तादों का मदरसा' नाम दिया गया था। जामिया का मास कम्यूनिकेशन सेंटर देश में अव्वल है।

साल 1935 में जामिया से जुड़े सभी संस्थान और कार्यक्रम दिल्ली के बाहरी इलाक़े के एक गांव ओखला में स्थानांतरित कर दिया गया। चार साल बाद जामिया मिलिया इस्लामिया को एक संस्था के रूप में रजिस्टर किया गया। विभाजन के बाद देश ने दंगे देखे। हर संस्था इससे प्रभावित हुई लेकिन जामिया कमोबेश अछूता रहा। महात्मा गांधी ने उस वक़्त जामिया परिसर को "सांप्रदायिक हिंसा के मरूस्थल में एक रमणीय स्थान की तरह" बताया था। साल 1962 में इसे मानित विश्वविद्याल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) घोषित किया गया। दिसंबर 1988 में संसद में एक विशेष क़ानून लाकर इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय की मान्यता दी गई।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बारे में मशहूर कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारत के सबसे प्रगतिशील शैक्षिक संस्थानों में से एक है। वहीं, मशहूर कवयित्री सरोजिनी नायडू ने कहा था तिनका-तिनका जोड़कर और तमाम कुर्बानियां देकर जामिया का निर्माण किया गया है।

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मनोज कुमार

 

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संदर्भ : यहाँ पर

 

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