राष्ट्रीय आन्दोलन
270. असहयोग
आन्दोलन : उत्साह और आशावाद
1 अगस्त, 1920
से शुरू हुए असहयोग आन्दोलन आंदोलन का राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन में अत्यंत
महत्वपूर्ण स्थान है। इसने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन का रुप प्रदान किया। इस
आन्दोलन के आरंभ होते ही, थोड़े ही समय में अंग्रेज़ी राज के
ख़िलाफ़ पूरे देश में अभूतपूर्व उत्साह और आशावाद की विराट लहर पैदा हुई। इसने जनता
में साम्राज्यवाद की चेतना जगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। सीधे-सादे
ग्रामीणों और आम भारतीयों ने यह महसूस करना शुरु किया कि उनकी तकलीफ़ों को दूर करने
की सबसे अच्छी दवा साम्राज्यवाद से मुक्ति और स्वराज की प्राप्ति है। राष्ट्रीय
संघर्ष में हिस्सा लेकर आम जनता ने स्वाधीनता के एक नये बोध और आत्मसम्मान और गर्व
का अनुभव किया।
गांधीजी
ने राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व हाथ में लेते ही सबसे पहले कांग्रेस के आचरण में परिवर्तन
लाया। राष्ट्रवाद के आधार को और व्यापक बनाने के
लिए उन्होंने इस संगठन में अमूल-चूल बदलाव किया। भारत के विभिन्न भागों में
कांग्रेस की नयी शाखाएँ खोली गयी। रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धान्त को बढ़ावा
देने के लिए ‘प्रजा मंडलों’ की एक श्रृंखला
स्थापित की गई। गाँधीजी ने राष्ट्रवादी संदेश का प्रचार शासकों की अंग्रेजी भाषा
की जगह मातृ भाषा में करने को प्रोत्साहित किया। कांग्रेस की प्रांतीय समितियाँ
ब्रिटिश भारत की कृत्रिम सीमाओं की अपेक्षा भाषाई क्षेत्रों पर आधारित थीं। गाँधी
जी के प्रशंसकों में गरीब किसान और धनी उद्योगपति दोनों ही थे। भारत के एक बहुत ही
प्रतिभाशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधी जी से जोड़ लिया। इनमें महादेव देसाई, वल्लभ भाई पटेल, जे.बी. कॄपलानी, सुभाष चंद्र बोस, अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, गोविंद वल्लभ पंत
और सी. राजगोपालाचारी शामिल थे। गाँधी जी के ये घनिष्ठ सहयोगी विशेष रूप से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के साथ ही भिन्न-भिन्न
धार्मिक परंपराओं से आए थे। इसके बाद उन्होंने अनगिनत अन्य भारतीयों को कांग्रेस
में शामिल होने और इसके लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। इन तरीकों से
राष्ट्रवाद देश के सुदूर हिस्सों तक फ़ैल गया। अब इसमें वे सामाजिक वर्ग भी शामिल
हो गए जो अभी तक इससे काफी दूर थे। वे खुद को इस आन्दोलन का अंग मानकर गर्व महसूस
करते थे। उस समय के एक राष्ट्रवादी नेता
ने कहा था,
“हममें से बहुत से
जिन्होंने कांग्रेस के कार्यक्रमों में काम किया था, 1921 में एक
प्रकार के नशे में जीते रहे। हममें उत्साह और आशावाद भरा था ....। हमें स्वाधीनता
का आभास होने लगा जिस पर हमें गर्व था।”
गाँधीजी
ने भारतीय राष्ट्रवाद को एकदम परिवर्तित कर दिया। अब यह व्यावसायिकों व
बुद्धिजीवियों का ही आंदोलन नहीं रह गया था, अब हजारों की
संख्या में किसानों,
श्रमिकों और
कारीगरों ने भी इसमें भाग लेना शुरू कर दिया। जो गांधीजी
या उनके संघर्ष से जुड़ते थे अपनी खुशी और मर्जी से जुड़ते थे। वे किसी भी हद तक
बलिदान देने के लिए तैयार थे। स्वराज उनका अंतिम लक्ष्य था। समय के साथ गांधीजी का
जनाकर्षण व्यापक होता गया। लोगों को इस बात ने
आकर्षित किया कि गाँधीजी उनकी ही तरह के वस्त्र पहनते थे, उनकी
ही तरह रहते थे और उनकी ही भाषा में बोलते थे। अन्य नेताओं की तरह वे सामान्य
जनसमूह से अलग नहीं खड़े होते थे बल्कि वे उनसे एकात्मकता रखते थे, उनसे
घनिष्ठ संबंध भी स्थापित कर लेते थे। गाँधीजी लोगों के
बीच एक साधारण धोती में जाते थे। ग़रीबों, विशेषकर किसानों के बीच गाँधी जी की अपील
को उनकी सात्विक जीवन शैली और उनके द्वारा धोती तथा चरखा जैसे प्रतीकों के
विवेकपूर्ण प्रयोग से बहुत बल मिला। प्रत्येक
दिन का कुछ हिस्सा वे चरखा चलाने में बिताते थे। अन्य राष्ट्रवादियों को भी
उन्होंने ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। सूत कताई के कार्य ने गाँधीजी को
पारंपरिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम की दीवार को
तोड़ने में मदद दी।
गाँधीजी
द्वारा असहयोग को खिलाफ़त के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख समुदाय- हिन्दू और
मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत करने का ठान लिए। यह बात औपनिवेशिक भारत में
अभूतपूर्व थी। विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में
जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में
श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया। देहात भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था। पहाड़ी जनजातियों
ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी। अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए। कुमाउँ के
किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। किसानों, श्रमिकों और अन्य
ने औपनिवेशिक शासन के साथ ‘असहयोग’ के लिए उपर से
प्राप्त निर्देशों पर टिके रहने के बजाय अपने हितों से मेल खाते तरीकों का
इस्तेमाल कर कार्रवाही की।
आंदोलन के दौरान जनता की राष्ट्रीय भावनाओं को
अभिव्यक्त करने वाले और भी कई कार्यक्रम थे, जो लोगों को अनुशासनबद्ध करने के
साथ-साथ उन्हें जन-आंदोलन के लिए तैयार करते थे। जैसे अछूतोद्धार, राष्ट्रीय
विद्यापीठ की स्थापना, अदालतों का बहिष्कार, पंचायतों में आपसी झगड़ों का निपटारा।
स्वयंसेवकों का संगठन, शराब की दुकानों पर धरना, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और खादी
का प्रचार आदि कार्यक्रम जनता को संगठित करने के ठोस और व्यावहारिक उपाय थे। उन्होंने
भारतीय जनता की रीढ़ की हड्डी को शक्ति प्रदान की। उन्हें चरित्रवान बनाया। पिछड़ी
और निराश जनता ने उनके नेतृत्व में अपनी पीठ सीधी की और अपना सिर ऊपर उठाया।
साहस और त्याग की गांधीजी की अपील पर लोगों ने अपने
को न्यौछावर कर दिया। सारे देश में उत्साह की एक अभूतपूर्व लहर दौड़ गयी। जनता एक
देशव्यापी अनुशासित और संयुक्त आंदोलन में भाग लेने लगी। आम कांग्रेसियों और
जन-साधारण के ऊपर गांधीजी का जबर्दस्त प्रभाव था। छोटे और बड़े,
स्त्री और पुरुष, हिन्दू और मुसलमान,
रूढ़िवादी, उदार पंथी, परिवर्तनवादी,
सभी न सिर्फ गांधीजी के मकसद से प्रभावित हुए बल्कि राष्ट्रीय आन्दोलन की मुख्य
धारा में सम्मिलित हुए। औरतें परदे से बाहर निकलकर बहुत बड़ी संख्या में संघर्ष में
हिस्सा लिया। बिलकुल सही कहा है कि लोग एक प्रकार के नशे
में जी रहे थे, और उन्हें स्वाधीनता का अहसास हो रहा था। ऐसा लगता था जैसे गांधीजी ने उनपर कोई जादू कर दिया
हो। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन का प्रभाव अत्यन्त व्यापक रूप से समस्त देश पर
पड़ा। जनता ने ब्रिटिश शक्ति का मुकाबला अत्यन्त संगठित होकर किया।
भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ। असहयोग आन्दोलन ने भारतीय
जनता में विदेशी वस्तुओं के प्रति तिरस्कार की भावना, उत्पन्न
करके देशी वस्तुओं के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न की। जनता खादी से प्रेम करने
लगी और उसका विशेष प्रचार हुआ, जिसके फलस्वरूप भारत के कुटीर उद्योग-धन्धों को
प्रोत्साहन मिला और उनमें नवजीवन का संचार हुआ। गांधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक
क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया। इस आंदोलन से जनमानस में
अंग्रेजी सरकार के प्रति तीव्र विरोधी वातावरण बना। असहयोग आन्दोलन के फलस्वरूप
ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिल गईं। इस आन्दोलन के द्वारा स्वराज्य की मंजिल नजदीक आ
गई। कालान्तर में इसी प्रकार के आन्दोलनों से भारतीयों को स्वतन्त्रता प्राप्त
हुई।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर
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