भारत और सहिष्णुता-अंक-16
जितेन्द्र त्रिवेदी
भाग – दो
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी का काल इस देश में घोर निराशा का काल था। महान सम्राट अशोक के वंशज घोर विलासी, कायर और भ्रष्ट हो गये थे। देश का स्वाभिमान नष्ट प्राय: हो गया था। विदेशी हमलावरों ने पूरे मध्य देश को रौंद डाला था। मगध पर उस समय मौर्य वंश का शासक वृहद्रथ राज कर रहा था जो एक निर्वीर्य शासक था। उसके शासन काल में प्रजा असहाय थी और विदेशी हमलावरों की लूट-खसोट से त्रस्त हो गयी थी, किन्तु शासक प्रजा की रक्षा करने में असमर्थ था। तत्कालीन ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि यवन, आक्रमणकारी बिना किसी अवरोध के पाटलीपुत्र के अत्यंत निकट आ पहुँचे। इस आक्रमण की चर्चा पतंजलि के ‘महाभाष्य’, ‘गार्गी संहिता’ तथा कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्र’ नाटक में हुई है। ‘महाभाष्य’ में इसका उल्लेख भूतकाल को समझाने के लिये इस प्रकार किया गया है:- ‘अरुणद् यवन: साकेतम्। अरुणद् यवन: माध्यमिकाम्।‘ (महाभाष्य, 3/3, 111) अर्थात- ‘यवनों ने साकेत पर आक्रमण किया, यवनों ने चित्तौड़ (तब माध्यमिका कहा जाता था) पर आक्रमण किया। इस प्रकार का प्रयोग व्याकरण में उस सर्वविदित घटना के लिये किया जाता है, जो तुरंत घटी हो और यदि कोई देखना चाहे तो उसे ताजे हवाले के रूप में देख सकता है। गार्गी संहिता में भी स्पष्टत: इस आक्रमण का उल्लेख हुआ है:
"तत: साकेतमाक्रम्य पञ्चालान्मथुरान्स्तथा। यवना दुष्टविक्रान्ता प्राप्यस्यन्ति कुसुमध्वजम्।।"
अर्थात - दुष्ट विक्रांत यवनों ने साकेत, पंचाल तथा मथुरा को रौंद दिया और पाटलिपुत्र तक पहुँच गये। इस यवन आक्रमण के नेता संभवत- डिमेट्रियस अथवा मिनांडर को बताया गया है। टार्न ने अपनी पुस्तक –‘ग्रीक्स इन बैक्ट्रिया एण्ड इंडिया’ में इसका उल्लेख किया है।
ऐसे समय में जब भारत यवनों द्वारा रौंदा जा रहा था और देश के वैय्याकरण (व्याकरण के ज्ञाता) भी देश की दुर्दशा के प्रति चिन्तित होकर अपने उदाहरणों के रूप मे तत्कालीन घटना का उल्लेख करके अपनी चिन्ता जाहिर की है। इस देश का भाग्यविधाता, भ्रष्टाचार और भोग विलास में लिप्त था और आक्रमणकारियों को रोकने का कोई प्रयास नहीं कर रहा था। अपितु जब सचिव और मंत्रियों द्वारा उसे ठोस निर्णय लेने के लिये सलाह दी जाती थी। तब वह ‘अहिंसा परमो धर्म:’ का राग अलापता था और हिंसा को पापकारी बताते हुए अपने महान पितामह अशोक का हवाला देने लग जाता था। इस तरह वह महान सम्राट अशोक की ‘धम्म’ नीति के सिद्धांतो की आड़ में अपनी कायरता को छिपाने की कोशिश करता था और अहिंसा की शपथ के कारण शस्त्र धारण को वर्जित बता कर यवनों के हमलों की उपेक्षा कर जाता था। उसके इस व्यवहार से मंत्री, सचिव, दरबारी, सेना सब लाचार और दुखी थे।
प्रजा पर यवनों के अत्याचार बढ़ रहे थे। प्रजा की कसमसाहट और व्याकुलता को देख कर वृहद्रथ का सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्रवित हो गया था। उन्होंने इस विकट परिस्थिति से उबरने के लिये अपने समान विचार वाले लोगों से विचार-विमर्श शुरू किया। यह विचार-विमर्श बहुधा ‘महाभाष्य’ के रचयिता पंतजलि के आश्रम में हुआ करता था, परन्तु इस तथाकथति विचार-विमर्श की पराकाष्ठा हुई सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या के रूप में।
पुष्यमित्र शुंग ने, एक दिन जब सम्राट शाही परेड का निरीक्षण कर रहे थे, संपूर्ण सेना के सामने यह घोषणा कि ‘मौर्य सम्राट अब और अधिक प्रजा की रक्षा करने के काबिल नहीं रह गये हैं, अत: मैं प्रजा की रक्षा के निमित्त से इस सेना की सर्वोच्च कमान अपने हाथों में लेता हूँ और सम्मानीय राजा को सभी के सामने मार रहा हूँ,’ कहते हुये अपनी तलवार वृहद्रथ की गर्दन के आर-पार घुमा दी। सम्राट की हत्या करने के बाद पुष्यमित्र शुंग ने यद्यपि शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली किन्तु अपने जीवनपर्यन्त ‘शासक’ की उपाधि नहीं प्राप्त की। पुराण, हर्षचरित्र, मालविकाग्निमित्र एवं ततयुगीन ऐतिहासिक दस्तावेजों में पुष्यमित्र के लिये ‘सेनानी’ शब्द का उल्लेख मिलता है, न कि ‘राजा’। इस आधार पर इतिहासकारों का विचार है कि वह कभी राजा नहीं बना, किन्तु उसने यवनों को भारत से बाहर खदेड़ने और प्रजा की रक्षा के लिये सभी संभव प्रयत्न किये। उसने मगध साम्राज्य की खोई हुई गरिमा पुन: स्थापित की और अमन-चैन का राज्य स्थापित किया। किन्तु बौद्धग्रंथ दिव्यावदान तथा तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के विवरणों में उसे बौद्धों का घोर शत्रु तथा स्तूपों का विनाशक बताकर भर्त्सना की गई है। इस पर टिप्पणी करते हुये काशी प्रसाद जायसवाल ने अपनी पुस्तक – ‘जर्नल ऑफ बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी’ में लिखा है कि- ‘कुछ बौद्ध भिक्षु शाकल (स्यालकोट जो वर्तमान में पाकिस्तान में है) में यवनों से जा मिले थे और उन्हीं देश द्रोहियों का वध करने के लिये पुष्यमित्र ने साम्राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से यह सब किया होगा।
इसके अलावा उसका बौद्ध भिक्षुओं से कोई झगड़ा नहीं था। अपितु कुछ बौद्धों को तो उसने अपना मंत्री नियुक्त कर रखा था’ इस कथन की पुष्टि बौद्ध ग्रंथ – दिव्यावदान से भी मिलती है, जिसमें पुष्यमित्र शुंग के दरबारियों में कई बौद्धों को दर्शाया गया है। यहाँ उन विदेशी हमलावरों को आंतकी कहें और अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिये उन बौद्धों को देशद्रोही, तो ऐसा कहना गलत नहीं होगा। अपितु यह साबित होता है कि आंतकियों की मदद के लिये इस देश में कोई न कोई गुट हमेशा उपलब्ध रहा है, चाहे ईसा पूर्व की सदी में, चाहे अब 21वीं सदी में। इस तरह हम कह सकते हैं कि आतंकियों को मदद देना कोई आधुनिक घटना नहीं है।
आज कोई कहना चाहे तो पुष्यमित्र शुंग के कांड को आज की भाषा में पतंजलि के आश्रम में हुए षडयंत्र के परिणाम स्वरूप मगध में हुआ सैनिक तख्ता पलट कह सकता है लेकिन शताब्दियों बाद आज तटस्थता से देखें तो इस कांड के पीछे पुष्यमित्र शुंग का सत्ता-लोभ कम और देश और प्रजा की रक्षा की चिंता अधिक नजर आयेगी। क्योंकि देश का राजा व्रहद्रथ ‘अहिंसा परमोधर्म: का जाप करने वाला एक कायर व्यक्ति था, जो देवयोग से विरासत प्राप्त पद का उपभोग करने में मग्न था। देश किस विपत्ति से आक्रांत है, इसकी तरफ उसका कुछ भी ध्यान नहीं था और वह आँखे बंद किए हुए था। उसके पास चतुरंगिणी सेना थी और उसका सेनापति एक बहादुर व्यक्ति था। फिर भी संपूर्ण सेना मात्र शोभा की वस्तु बनकर रह गई थी और विदेशी हमलावर प्रजा के सुख-चैन को लूट रहे थे।
बाहरी हमलों से देश की सार्वभौमिकता और संस्कृति के लिये खतरा उत्पन्न हो गया था। सवाल किसी साम्राज्य की रक्षा का नहीं था, प्रजा की अस्मिता की रक्षा का था। पुष्यमित्र ने देखा कि ऐसे समय वही संकट का समाधान कर सकता था और उसने ई.पू. 185 में वह कर दिखाया जिसे पुन: व्याख्यायित करने के लिए हमें इस ऐतिहासिक तथ्य की विवेचना करनी पड़ रही है। जिसे पुष्यमित्र ने देखा था कि उसकी निष्ठाएँ केवल राजवंश के प्रति नहीं, अपितु राजवंश की अपेक्षा देश के प्रति पहले हैं और उसने अपनी निष्ठा को साबित करके भी दिखाया – विदेशी हमलावरों को भारत की सीमा से बाहर खदेड़ कर। क्या पुष्यमित्र शुंग के हवाले से यह विनम्र प्रश्न करने का साहस नहीं किया जा सकता है कि देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति की निष्ठाएँ किसी वंश के प्रति निष्ठा की अपेक्षा देश के प्रति सर्वोपरि होनी चाहिये?
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बहुत ज्ञानवर्द्धक पोस्ट है। आप इस शृंखला को प्रस्तुत कर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंपुष्यमित्र शुंग ने विश्वासघात किया और ब्राह्मणवाद का पोषण किया।
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा उसका समर्थन कोई नया काम नहीं है।
देश को बर्बाद तो नेहरू और इंदिरा गांधी ने भी किया है।
क्या इंदिरा गांधी के हत्यारों की प्रशंसा भी आप ऐसे ही करेंगे ?
पंजाब का आतंकवाद इंदिरा गांधी की ग़लत पॉलिसी की ही देन है और मुल्क में आज जो करप्शन है वह भी इंदिरा गांधी की ही देन है।
इंदिरा गांधी का नाम मात्र सुनकर ही बैंक मैनेजर बिना लिखा पढ़ी के देश का पैसा हवाले कर दिया करता था।
अत्यंत जानकारीपरक तथ्यसमृद्ध आलेख, धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंदेश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति की निष्ठाएँ किसी वंश के प्रति निष्ठा की अपेक्षा देश के प्रति सर्वोपरि होनी चाहिये?
जवाब देंहटाएं--
इस पर्शन का उत्तर पाने के लिए ही तो आज जनता सड़कों पर है!
आपने जो प्रश्न उठाया है उसके लिए किसी भी हवाले की ज़रूरत नहीं है ! समय के साथ सच्चाई कभी नहीं बदलती बस उसका रूप बदलता है !
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आभार !
सार्थक चिंतन।
जवाब देंहटाएं------
लो जी, मैं तो डॉक्टर बन गया..
क्या साहित्यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?
ज्ञानवर्द्धक
जवाब देंहटाएंक्या पुष्यमित्र शुंग के हवाले से यह विनम्र प्रश्न करने का साहस नहीं किया जा सकता है कि देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति की निष्ठाएँ किसी वंश के प्रति निष्ठा की अपेक्षा देश के प्रति सर्वोपरि होनी चाहिये?
जवाब देंहटाएंइतिहास के परिप्रेक्ष्य में बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने.......इस पर विचार किया जाना चाहिए...
कमाल की श्रृंखला. जिन्हें इतिहास में रुचि है उनके लिये तो बहुत ही बढिया जानकारियां इकट्ठी हो रही हैं.
जवाब देंहटाएंभारत और सहिष्डूता १६ इस श्रृंखला की एक और महत्वपूर्ण कड़ी . भाई जितेन्द्र त्रिवेदी जी ,इस दौर में आपका संग साथ ही अन्ना जी की ताकत है .ऊर्जा और आंच दीजिए इस मूक क्रान्ति को .बेहतरीन जानकारी दी है आपने बहुत अच्छी पोस्ट .लगाईं है मुगलों के दौर के बाबत जय ,जय अन्ना जी ,जय भारत .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
सोमवार, २२ अगस्त २०११
अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
http://veerubhai1947.blogspot.com/
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.आभार .....इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार ./ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
Tuesday, August 23, 2011
इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार .
जिस व्यक्ति ने आजीवन उतना ही अन्न -वस्त्र ग्रहण किया है जितना की शरीर को चलाये रखने के लिए ज़रूरी है उसकी चर्बी पिघलाने के हालात पैदा कर दिए हैं इस "कथित नरेगा चलाने वाली खून चुस्सू सरकार" ने जो गरीब किसानों की उपजाऊ ज़मीन छीनकर "सेज "बिछ्वाती है अमीरों की ,और ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था जिसने खड़ी कर ली है जो गरीबों का शोषण करके चर्बी चढ़ाए हुए है .वही चर्बी -नुमा सरकार अब हमारे ही मुसलमान भाइयों को इफ्तियार पार्टी देकर ,इफ्तियार का पुण्य भी लूटना चाहती है ।
अब यह सोचना हमारे मुस्लिम भाइयों को है वह इस पार्टी को क़ुबूल करें या रद्द करें .उन्हें इस विषय पर विचार ज़रूर करना चाहिए .भारत देश का वह एक महत्वपूर्ण अंग हैं ,वाइटल ओर्गेंन हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com//......
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
Posted by veerubhai on Sunday, August 21
२३ अगस्त २०११ १:३६ अपराह्न
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।