नवगीत
कंठ चढ़ी कजरी
श्यामनारायण मिश्र
झूम - झूम
मधु बरसे सावन
मन - कदंब फूले।
बादल की
बाहों में बिजली
हंस - हंस कर झूले।
पर्वत पर
चोली- से बादल
दूध - सरीखे झरने।
पीकर पूत - पठार
हिरन से
लगे चौकड़ी भरने।
नदी
कगारों के ओठों को,
अब छू ले तब छू ले।
खेत हुए तालाब
लहंगिया नाव
चुनरिया पाल,
पुरइन जैसी देह
कमल – मुख
भौरों जैसे बाल।
निरा-निरा कर
धान कामिनी
विरह व्यथा भूले।
बादल की
बाहों में बिजुरी
हंस - हंस कर झूले।
बड़ी सुन्दर रचना, सावन के मौसम सी।
जवाब देंहटाएंसावन की छटा बिखेरता बहुत सुन्दर नवगीत.
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त लयात्मकता और शब्द सौन्दर्य इसमें देखने को मिला.
सही समय पर सुन्दर नवगीत पोस्ट किया है आपने!
जवाब देंहटाएंमौसम का सुन्दर शब्द चित्र !
जवाब देंहटाएंbahut pyari bahut nyari kavita.aur chitra to bahut khoobsurat.
जवाब देंहटाएंवाह-वाह!
जवाब देंहटाएंअद्भुत!!
नदी कगारों के ओठों को, अब छू ले तब छू ले।
वाह वाह वाह क्या कहें प्रकृती का इतना सुंदर मानवी करण वह भी साज श्रृंगार सहित । गीत बहुत सुंदर होने के सात गेय भी है ।
जवाब देंहटाएंनए विम्बो से सुशोभित सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंsundar bhawo ka nawageet..madhur nawageet..wah!
जवाब देंहटाएंबिजली बादल के लिए सुन्दर बिम्ब ...खूबसूरत रचना पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंजीवंत चित्रण, जीवंत चित्र।
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ब्लॉगसमीक्षा की 27वीं कड़ी!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
बड़ी सुन्दर रचना, सावन के मौसम सी।
जवाब देंहटाएंसावन की प्रकृति को रूपायित करता नवगीत अत्यन्त मोहक और भाषा ताजगी से भरी है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबादल की
जवाब देंहटाएंबाहों में बिजली
हंस - हंस कर झूले।
वाह वाह …………सुन्दर बिम्ब से सजी मनमोहक रचना।
बहुत सुंदर नवगीत.
जवाब देंहटाएंश्यामनारायण मिश्र जी को नमन...
माटी की सौंधी सुगंध का आभास करा दिया आपने|
जवाब देंहटाएंलाजवाब...शब्दों का क्या खूबसूरत प्रयोग किया है आप ने अपनी इस रचना में...कमाल किया है...बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंनीरज
झूम - झूम
जवाब देंहटाएंमधु बरसे सावन
मन - कदंब फूले।
सुन्दर नवगीत ...
अजी कहां की बदली और कौन सी वर्षा। यहां तो मारे चिपचिपाहट के कामिनी भी बिजली हुई जा रही है!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा...
जवाब देंहटाएंफालो भी कर लिया है...
sunder shabd chitra..
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