नवगीत
सेंमल सी फूल गई बदली
श्यामनारायण मिश्र
पछुआ की बांह थाम कर
घाटी में झूल गई बदली।
भीतर की बंद चित्रशाला का
कौन खोल जाता है द्वार सा।
बूंदों से धुला हुआ मन
बिछने को होता है
खेत पर जुआर सा।
सूरज ने छोर क्या छुआ
सेंमल सी फूल गई बदली।
पर्वत पर नई चढ़ी हरियाली
टुकुर-टुकुर छौनों सी ताकने लगी।
लहरों की नई-नई रेवड़ को
भाग दौड़कर नदी हांकने लगी।
कजली के बोल क्या उठे
रास्ता सा भूल गई बदली।
देखो जी यादगार घड़ियों के
नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।
फिर तुम गए मौसम गया
जाने किस कूल गई बदली।
प्रकृति और जन-मानस के अटूट सम्बन्धों की चर्चा से ओत-प्रोत, नये बिम्बों से सँवरा और भाषा की ताजगी में नहाया हुआ गीत बड़ा ही कोमल और मनोरंजक है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना , समयानुकूल भी , आभार
जवाब देंहटाएंपेड़ पौधों को यह जीवन्त रूप देकर आपने प्रकृति को अद्भुत गतिशीलता दे दी है।
जवाब देंहटाएंसावन के मौसम में इतना प्यारा गीत पाकर आजकी सुबह खिल उठी। मैं झूम रहा हूँ :
जवाब देंहटाएंनैसर्गिक अनुभव हुआ
नवगीत गुनगुनाने लगे
शब्दो ने मन को छुआ
तो बार बार गाने लगे
बच्चों की बस आ गयी
चढ़कर स्कूल गयी बदली
:)
देखो जी यादगार घड़ियों के
जवाब देंहटाएंनपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।
फिर तुम गए मौसम गया
जाने किस कूल गई बदली।
शानदार अनुपम अभिव्यक्ति.
बरसात के मौसम का सुखद अहसास कराती हुई.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मनमोहक!
जवाब देंहटाएंदेखो जी यादगार घड़ियों के
जवाब देंहटाएंनपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।
to aur ab kya kahna ...
कोमल /मनमोहक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत नवगीत पढ़वाया आपने ज़नाब!
जवाब देंहटाएंआज 01- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बहुत ही मनभावन गीत लिखा है…………आभार
जवाब देंहटाएंदेखो जी यादगार घड़ियों के नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
जवाब देंहटाएंसाल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन घर लौट आने के।फिर तुम गए मौसम गयाजाने किस कूल गई बदली।
बहुत सुंदर रचना ...
पढ़कर झूम गया मन ..
क्या सुन्दर गीत! कलम चूमने का मन करता है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मनमोहक गीत शेयर किया आपने...
जवाब देंहटाएंसादर आभार...
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमनभावन कविता है।
जवाब देंहटाएंफिर तुम गए मौसम गया
जवाब देंहटाएंजाने किस कूल गई बदली।
बहुत ही अच्छा, कर्णप्रिय व भावपूर्ण नवगीत...आभार..
प्राकृतिक उपादानों से विप्रलंभ शृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति। मिश्रजी के गीत पढकर मन हिलोरें लेने लगता है।
जवाब देंहटाएंसूरज ने छोरक्या छुआ, सेंमल सी फूल गई बदली
जवाब देंहटाएंदेखो जी यादगार घड़ियों के
नपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।बहुत खूबसूरत अंदाज़ की रचना श्यामनारायण मिश्र जी की आपने सुनवाई .आप इस साहित्य को सर्व -कालिक,स्थाई बना रहें हैं .बधाई .
सुन्दर प्रकृति गीत... बहुत बढ़िया... मिश्र जी का संकलन निकालिए....
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज जी हार्दिक अभिवादन -इस रचना के पोर पोर में जादुई रंग भरा है अल्हड सी विरहिणी का पक्ष ले उनके प्रियतम को बुला गयी
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द संयोजन सावन की मस्ती कजरी ..
बधाई हो
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।
फिर तुम गए मौसम गया
जाने किस कूल गई बदली।
manbhaawan rachna.
जवाब देंहटाएंaabhar.
देखो जी यादगार घड़ियों के
जवाब देंहटाएंनपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।
वाह बहुत ही बेहतरीन ,सार्थक रचना / इतने अच्छी रचना के लिए बधाई आपको /खूबसूरत /
मनोज जी
जवाब देंहटाएंरचना बहुत ही खूबसूरत लगी. धन्यवाद
देखो जी यादगार घड़ियों के
जवाब देंहटाएंनपे-तुले क्षण हैं दुहराने के
साल भर कोई कहीं रह ले
बरसात के बस चार दिन
घर लौट आने के।
फिर तुम गए मौसम गया
जाने किस कूल गई बदली।
Behad sundar rachana!
सुन्दर बिम्ब।
जवाब देंहटाएंमनोहारी चित्रण।
बहुत खूबसूरत सार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंपर्वत पर नई चढ़ी हरियाली
जवाब देंहटाएंटुकुर-टुकुर छौनों सी ताकने लगी।
लहरों की नई-नई रेवड़ को
भाग दौड़कर नदी हांकने लगी।
कजली के बोल क्या उठे
रास्ता सा भूल गई बदली।
bahut hi badhiya ,prakriti se mujhe behad lagao hai ,aap aaye khushi hui ,koshish karte rahe to umeed kayam rahegi .
बहुत सुन्दर गीत ..
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