आग छूटी जा रही
श्याम नारायण मिश्र
अंगुलियां सम्हालूं
या दिया बालूं,
आग छूटी जा रही है
मुट्ठियों से।
आग का आकार
हाथों में अधूरा है,
इसे भीतर तक उतरने दो।
दे रहा हूं
एक आकृति आग को
रोशनी में धार धरने दो।
आप भी अवसर मिले तो,
खोजना भीतर
आग जो मां ने भरी
है घुट्टियों से।
आप फिर एक लाजवाब प्रस्तुति ले कर आये हैं
जवाब देंहटाएंसच माँ ने तो आग भरी है घुट्टीयों से पर शायद हम ने ही इस भाग दौड में खो दी है वो आग या भूल गए हैं स्वार्थी हो गए है याद दिलाने के लिए आभार
मिश्र जी की रचनाएं अचंभित करती हैं.. अपने समय से कहीं आगे हैं मिश्र जी और उनके बिम्ब... आपको धन्यवाद इनसे हमारा परिचय कराने के लिए और इस श्रृंखला को जीवंत बनाने के लिए!!
जवाब देंहटाएंदुख तो इसी बात का है कि आजकल की माँ घुट्टी में आग ही नहीं भरती।
जवाब देंहटाएंवह आग सदा जलती रहे अनाचारों को जलाती रहे बस यही कामना है । इस ओजस्वी कविता की प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब के बिम्ब श्याम मिश्र जी की कविता में हमेशा दिखते हैं.आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंवाह्………निशब्द हूँ इस लाजवाब रचना के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंइस ओजस्वी कविता की प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।.....
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआग का आकार
जवाब देंहटाएंहाथों में अधूरा है,
इसे भीतर तक उतरने दो।
दे रहा हूं
एक आकृति आग को
रोशनी में धार धरने दो।
-' माँ ने आग भरी है घुट्टियों से..'पर इसे आकृति देने में कौन समर्थ हो पाता है और कौन राख में दबी रह जाने देता है यह व्यक्ति पर निर्भर है .
श्रीकृष्ण ने आजीवन इस आँच को जिलाये रखा - आज उन्हीं का जन्मदिन है .
सबको मंगलमय हो ! !
आप भी अवसर मिले तो,
जवाब देंहटाएंखोजना भीतर
आग जो मां ने भरी
है घुट्टियों से।
शिल्प, भाव, शब्द चित्रण और उत्कृष्ट साहित्यिक रचना है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
आदरणीय मनोज जी ..बहुत सुन्दर आवाहन ...काश ये आग और प्रज्वलित हो कुछ कर जाए ....कान्हा के आगमन का स्वागत ..रचना अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंकान्हा किसी भी रूप में आयें दुष्टों का संहार करें अच्छाइयों को विजय श्री दिलाएं ..आन्दोलन सफल हो
...जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं आप सपरिवार और सब मित्रों को भी
भ्रमर ५
दे रहा हूं
एक आकृति आग को
रोशनी में धार धरने दो।
आप भी अवसर मिले तो,
खोजना भीतर
आग जो मां ने भरी
है घुट्टियों से
एक आग हम सबके सीने में , कोई मुट्ठी बंद कर संतुलित कर लेता है , कोई व्यर्थ ही उड़ा देता है ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना !
निश्चय ही ऊर्जा को दिशा मिलेगी।
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