रविवार, 4 जुलाई 2010

काव्यशास्त्र-२२:: आचार्य जयदेव

काव्यशास्त्र-२२ :: आचार्य जयदेव

मेरा फोटोआचार्य परशुराम राय

एक बार पुन: ग्यारहवीं शताब्दी में वापस चलते हैं, जब बंगाल विद्वानों और साहित्यकारों का केन्द्र था। ठीक उसी प्रकार जैसे गुजरात का अनहिलपट्टन राज्य जैन आचार्यों का केन्द्र था जिसके अन्तर्गत ग्यारहवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक, अर्थात् आचार्य हेमचन्द्र से लेकर आचार्य देवेश्वर तक, इसके पहले चर्चा की जा चुकी हैं। बंगदेश ने आचार्य जयदेव आदि जैसे साहित्यविदों को जन्म दिया। आचार्य जयदेव महाराज वल्लाल सेन के पुत्र लक्ष्मणसेन के पाँच मुख्य सभापण्डितों में से एक थे। इनके नामों का उल्लेख उक्त राजा के सभाभवन के द्वार पर शिलालेख के रूप में लगा था:-

गोवर्धनश्च शरणो जयदेव उमापति:।

कविराजश्च प्लानि समितौ लक्ष्मणस्य तु॥

आचार्य जयदेव ने गीत गोविन्द में कविराज को धोयी कविराज के नाम से स्मरण किया है ‘चन्द्रालोक’, ‘प्रसन्नराघव’ और ‘गीतगोविन्द’, आचार्य जयदेव के ये तीन ग्रंथ काफी प्रसिद्ध हैं। 'चन्द्रालोक' काव्यशास्त्र का ग्रंथ है, 'प्रसन्नराघव' नाटक है और 'गीतगोविन्द' गीतिकाव्य है।

'चन्द्रालोक' में कुल 10 मयूख हैं। प्रथम मयूख से दशम मयूख में क्रमश: वाग्विचार दोष, लक्षण, गुण, अलंकार, रस-भाव-रीति-वृति, शब्दशक्ति, गुणीभूतव्यंग्य, लक्षणा, अभिधा के निरूपण किए गए हैं। यह ग्रंथ बड़ी ही सरल और सरस शैली में लिखा हुआ है। पाँचवे मयूख में अलंकारों के निरूपण में अद्भुत विशेषता यह है कि पहले आधे श्लोक में अलंकार की परिभाषा है और दूसरी पंक्ति अर्थात् बाद के आधे श्लोक में उस अलंकार का उदाहरण है। इस दृष्टि से यह ग्रंथ छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी माना जाता है। यह ग्रंथ कई परवर्ती आचार्यों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। कहा जाता है कि अलंकार प्रकरण से प्रेरित होकर आचार्य अप्पय्य दीक्षित ने 'कुवलयानन्द' की रचना की और जोधपुरनरेश जसवन्त सिंह प्रथम ने 'भाषाभूषण' नामक हिन्दी ग्रंथ की रचना की।

PH01213K 'चन्द्रालोक', 'प्रसन्नराघव' और 'गीतगोविन्द' के रचयिता जयदेव के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 'चन्द्रालोक' और 'प्रसन्नराघव' के प्रणेता जयदेव से गीतगोविन्दकार जयदेव भिन्न हैं। इस विवाद का कारण है गीतगोविन्द के बारहवें सर्ग का ग्यारहवाँ श्लोक:-

श्रीभोजदेवप्रभवस्य रामादेवीसुतजयदेवकस्य।

पराशरादिप्रियवर्गकण्ठे श्रीगीतगोविन्दकवित्वमस्तु॥

यहाँ आचार्य जयदेव को श्री भोजदेव (पिता) और रामादेवी (माता) का पुत्र कहा गया है, जबकि 'चन्द्रालोक' के प्रत्येक मयूख के अन्त में निम्नलिखित उल्लेख मिलता है:-

'महादेव: सत्रप्रमुखविद्यैकचतुर:

सुमित्रा तद्भक्तिप्रणहितमतिर्यस्य पितरौ॥'

यहाँ आचार्य जयदेव ने अपनी माता का नाम सुमित्रा और पिता का नाम महादेव बताया है। इसी प्रकार 'प्रसन्नराघव' नाटक की प्रस्तावना में भी इन्होंने अपने माता-पिता का परिचय सुमित्रा और महादेव के रूप में ही दिया है:-

कवीन्द्र: कौडिन्य: स तव जयदेव: श्रवणयो

रयासीतातिथ्यं न किमिह महादेवतनय:

लक्ष्मणस्येव यस्यास्य सुमित्राकुक्षिजन्मन:।

दूसरा प्रमुख कारण माना जाता है संस्कृत में श्रीचन्द्रदत्तकृत 'भक्तमाल' नामक ग्रंथ जिसमें गीतगोविन्दकार जयदेव के विषय में बड़ा ही विस्तृत उल्लेख मिलता है। इस उल्लेख के अनुसार जयदेव का जन्म उड़ीसा में जगन्नाथपुरी के पास 'बिन्दुबिल्व' ग्राम में बताया गया है। लेकिन 241 श्लोकों में वर्णित इस परिचय में इनके माता-पिता के नाम का उल्लेख नहीं है।

दोनों को अभिन्न मानने वालों के पास निम्नलिखित तर्क हैं:-

(1) यह कि कुम्भनृपति द्वारा गीतगोविन्द पर की गयी 'रसिकपिया' नामक टीका में 'श्रीभोजदेवप्रभवस्य ...............' श्लोक पर टीका नहीं मिलती और यह बाद में प्रक्षिप्त किया गया हो सकता है।

(2) यह कि गीतगोविन्द में एक श्लोक मिलता है जिसमें लक्ष्मणसेन के सभारत्नों के अपने भिन्न कवियों के नाम का उल्लेख उनकी विशेषताओं के साथ किया है :

वाच: पल्लवयत्युमापतिधर: सन्दर्भशुध्दिं गिरां

जानीते जयदेव एव शरण: श्लाघ्यो दुरूहद्रुते:

शृङ्गारोत्तरसत्प्रमेयरचनैराचार्यगोवर्धन -

स्पर्धी कोऽपि न विश्रुत: श्रुतिधर: धोयी कविक्ष्यापति:॥

उपर्युकत विचारों और तथ्यों को देखने से लगता है कि 'चन्द्रालोक' तथा 'प्रसन्नराघव' के रचयिता जयदेव और गीतगोविन्दकार जयदेव दो नहीं अपितु एक हैं। गीतगोविन्द के बारहवें सर्ग का ग्यारहवाँ श्लोक हो सकता है बाद में प्रक्षिप्त किया गया हो।

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पिछले अंक

|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4. आचार्य भामह ||, || 5. आचार्य दण्डी ||, || 6. काल–विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||, || 10. आचार्य आनन्दवर्धन ||, || 11. आचार्य भट्टनायक ||, || 12. आचार्य मुकुलभट्ट और आचार्य धनञ्जय ||, || 13. आचार्य अभिनव गुप्त ||, || 14. आचार्य राजशेखर ||, || 15. आचार्य कुन्‍तक और आचार्य महिमभट्ट ||, ||16. आचार्य क्षेमेन्द्र और आचार्य भोजराज ||, ||17. आचार्य मम्मट||, ||18. आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक (रुचक)||, ||19. आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य रामचन्द्र और आचार्य गुणचन्द्र||, ||20. आचार्य वाग्भट||, ||21. आचार्य अरिसिंह और आचार्य अमरचन्द्र||

9 टिप्‍पणियां:

  1. काव्यशाश्त्रीय विवेचन साहित्यकारों के लिए प्रेरक ।

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  2. काव्यशाश्त्रीय विवेचन बहुत सुंदर लगी, धन्यवाद

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  3. बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई।

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  4. उपयोगी जानकारी।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  5. अभी तक तो हम जयदेव को केवल गीत-गोविन्द के लिए जानते थे। नए विश्लेषण के लिए आभार।

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