सोमवार, 27 दिसंबर 2010

नवगीत :: कब बजे पायल

नवगीत

कब बजे पायल

हरीश प्रकाश गुप्त

मुट्ठी में दबकर

फूल

हो रहे घायल।

 

हर गली में

घिर गया

रात सा तम,

टूट करके

फिर उनींदी

सो गई सरगम,

 

 

रग-रगों की पीर से

बोझिल हुई अब

उर्म्मियाँ,

चल पड़ीं वापस

थकीं वे

सांध्य की सब

रश्मियाँ,

 

आँसुओँ के साथ

खुशबू

ले उड़े बादल,

लौटकर

संकुल गली में

कब बजे पायल।

****

28 टिप्‍पणियां:

  1. .

    आँसुओँ के साथ

    खुशबू

    ले उड़े बादल,....

    बेहतरीन अभिव्यक्ति हरीश जी।

    आभार।

    .

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  2. संकुल गली में कब बजे पायल ...
    शानदार तस्वीरें और गीत भी !

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  3. हर गली में घिर गया रात सा तम,
    टूट करके फिर उनींदी सो गयी सरगम--
    हृदय की फेनिल उच्छवासों के साथ भावनाऔं की काल्पनिक उड़ान की घनीभूत अभिव्यक्ति अच्छी लगी।
    सादर।

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  4. गीत बहुत भाव पूर्ण है ..तस्वीरों ने उसे रोचक और अर्थपूर्ण बना दिया है ...शुक्रिया

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  5. टूट करके फिर उनींदी सो गई सरगम

    बहुत ही सुन्दर।

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  6. लौटकर संकुल गली में
    कब बजे पायल। ***

    बहुत मनभावन नव गीत ...चित्र भी बहुत सुन्दर हैं ...लेकिन उनको और करीने से लगाया जाता तो अपना और प्रभाव छोडते ..

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  7. हरीश जी,
    गीत की ये पंक्तियाँ अभिव्यक्ति की गहराई तक ले जाती हैं !
    आँसुओँ के साथ

    खुशबू

    ले उड़े बादल,

    लौटकर

    संकुल गली में
    कब बजे पायल।
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  8. सामान्य विम्बों के माध्यम से गहरी अभिव्यक्ति भरा गीत। आभार।

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  9. बहुत ही सुंदर नवगीत.....प्यारे से एहसास के साथ. चित्रों ने मन मोह लिया. सुंदर प्रस्तुति.

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  10. न जाने कहां लिये जाती है यह कविता।

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  11. बहुत ही उन्नत शैली मे बेहद मनभावन रचना।

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  12. जितनी दर्दभरी कविता उतने ही खूबसूरत चित्र । बहुत सुंदर हरीश जी .

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  13. हरीश प्रकाश गुप्त जी का नवगीत बहुत ही बढ़िया है!
    --
    मेरे जैसे तमाम पाठको को पढ़वाने के लिए आभार!

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  14. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  15. बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद, लेकिन इन सुंदर पांवो मे पायल तो हे ही नही? बजे गी केसे?

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  16. टूट करके फिर उनींदी सो गई सरगम
    वाह बहुत सुन्दर.

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  17. हरीश जी!! मैं विवश हूँ आज अपनी आदत के विरुद्ध टिप्पणी करने पर... कहना ही होगा अद्भुत!

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  18. हर गली में

    घिर गया

    रात सा तम,

    टूट करके

    फिर उनींदी

    सो गई सरगम,
    गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  19. हरीश गुप्त जी को एक समीक्षक के तौर पर देखता था.. आज उनके गीत को पढ़कर उनके भीतर कोमल मन से परिचय हुआ... अन्यथा समीक्षक कठोर ही होते हैं..

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  20. गीत और चित्र दोनों एक दुसरे को सार्थकता दे रहे हैं...

    सुन्दर रचना...वाह !!!

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  21. आँसुओँ के साथ

    खुशबू

    ले उड़े बादल,

    लौटकर

    संकुल गली में

    कब बजे पायल

    एक सर्वथा नवीन प्रयोग, हिंदी भाषा और साहित्य समृद्धिशाली बना रहा है. कुछ चित्रों का मर्म समझ में नहीं आया इसे अपनी अज्ञानता ही कहेंगे..कुल मिलकर सराहनीय और भाव प्रवण ...

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  22. अपने सभी पाठकों को नव वर्ष के अवसर पर सुख समृद्धि की हार्दिक शुभकामनाएं।

    लम्बे अन्तराल के बाद आप सब से जुड़ पाया हूँ। इस दौरान हालाकि परिवार के साथ देश दर्शन पर रहा लेकिन आप सबसे दूर रहने के कारण हृदय का एक कोना खालीपन महसूस करता रहा। आज आपसे जुड़कर तृप्ति सी हुई। उससे भी बढ़कर, मेरे नवगीत पर आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रियाओं ने मन मोह लिया।

    आप सभी को आभार,

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