मंगलवार, 2 अगस्त 2011

भारत और सहिष्णुता-13


भारत और सहिष्णुता
clip_image002 जितेन्द्र त्रिवेदी
अंक-13
      एक बार बुद्ध इच्‍छानंगल नाम के गाँव में रूके हुए थे। उस समय बहुत से ब्राह्मण भी उस गाँव में रहते थे।  उन ब्राह्मणों में से वशिष्‍ठ एवं भारद्वाज नामक दो तरुण ब्राह्मणों में इस संबंध में विवाद हुआ कि मनुष्‍य जन्‍म से श्रेष्‍ठ होता है या कर्म से। भारद्वाज अपने मित्र से बोला- हे वशिष्‍ठ जिसकी माँ की ओर से, पिता की ओर से सात पीढि़याँ शुद्ध हों, जिसके कुल में सात पीढि़यों में वर्ण संकर न हुआ हो, वही ब्राह्मण श्रेष्‍ठ है। वशिष्‍ठ बोला- हे भारद्वाज, जो मनुष्‍य शील सम्‍पन्‍न और कर्तव्‍य दक्ष हो उसी को ब्राह्मण कहना चाहिये 
      बहुत वाद-विवाद हुआ फिर भी दोनों एक दूसरे को समझा नहीं सके। अंत में वशिष्‍ठ बोला- हे भारद्वाज, हमारा यह वाद समाप्‍त नहीं होगा। देखो, वह गौतम बुद्ध हमारे गॉंव में रूका है।  वह बुद्ध है, पूज्‍य है, सब लोगों का गुरु है, उसकी कीर्ति भी अभी बहुत फैली हुयी है। क्‍यों न हमें उसके पास जाकर अपना मतभेद बताना चाहिये। वे दोनों गौतम के पास गये और कुशल- प्रश्‍नादि पूछकर एक ओर बैठ गये। जब बुद्ध ने आने का कारण पूछा तो उन्‍होंने साफ-साफ बता दिया और कहा कि -  "हे गौतम ब्राह्मण कहते हैं कि ब्राह्मण वर्ण ही श्रेष्‍ठ है, अन्‍य वर्ण हीन हैं, इस सम्‍बन्‍ध में आपका क्‍या मत है।"
      बुद्ध ने उक्‍त प्रश्‍न का सीधे-सीधे जवाब नहीं दिया अपितु वाद-संवाद के माध्‍यम से इस विषय को सुलझाने में कामयाबी हासिल की।  उन्‍होंने उन ब्राह्मणों से कहा- मेरे भाइयों यह बताइये कि क्‍या ब्राह्मणों की स्त्रियाँ ऋतुमती होती हैं? गर्भवती होती हैं? बच्‍चों को जन्‍म देती हैं? उन्‍हे दूध पिलाती हैं?

ब्राह्मणों ने कहा हाँ, हे गौतम।
बुद्ध इस तरह तो ब्राह्मणों की स्त्रियाँ और संतति अन्‍य वर्णों के समान ही हुई।
ब्राह्मण इसे और स्‍पष्‍ट कीजिये, हे गौतम।
बुद्ध हे ब्राह्मणों, यौन, कंबोज आदि प्रदेशों मे आर्य और दास दो ही वर्ण हैं और कभी-कभी आर्य से दास एवं दास से आर्य बन जाते हैं? क्‍या तुमने यह बात सुनी है?

ब्राह्मण जी हाँ हे गौतम, हमने वैसा सुना है।
बुद्ध यदि ऐसा है तो फिर इस कथन के लिये क्‍या आधार है कि ब्रह्मदेव ने ब्राह्मणों को मुख से उत्‍पन्‍न किया और वे सब वर्णो में श्रेष्‍ठ है।
            ब्राह्मण आपका कहना चाहे जो हो, हे गौतम ब्राह्मण की यह दृढ़ धारणा है कि केवल ब्राह्मण वर्ण ही श्रेष्‍ठ है और अन्‍य वर्ण हीन हैं।

            बुद्ध इतने पर भी न तमतमाये और अपितु वे पहले से भी और संयत और शालीन होकर पूछने  लगे - क्‍या तुमको ऐसा लगता है कि यदि क्षत्रिय, वैश्‍य, शुद्र प्राणघात, चोरी, व्‍यभिचार, असत्‍य भाषण, चुगली, गाली-गलौज तथा बकवास करें, लोगों के धन पर दृष्टि रखें, द्वेष-बुद्धि बढ़ायें, नास्तिकता को स्‍वीकार करें तो केवल वही देह त्‍याग के पश्‍चात् नरक में जायेगा और यदि ब्राह्मण ये कर्म करे तो वह नरक में नहीं जायेगा?

ब्राह्मण हे गौतम! किसी भी वर्ण का मनुष्‍य ये पाप करे तो वह मरने पर नरक चला जायेगा, ब्राह्मण हो या अब्राह्मण। सभी को अपने पाप का प्रायश्चित करना ही पडे़गा।
बुद्ध क्‍या तुम ऐसा मानते हो कि यदि कोई ब्राह्मण प्राणघात से निवृत्‍त हो जाए, चोरी, व्‍यभिचार, असत्‍य भाषण, चुगली, गाली-गलौज, वृथा प्रताप, परधन का लोभ, द्वेष एवं नास्तिकता और ऐसे ही दस अन्‍य पापों से निवृत्‍त हो जाए तो केवल वही मरने के बाद स्‍वर्ग का अधिकारी होगा और अन्‍य वर्णों के लोग ऐसे ही पापों से निवृत्‍त होने के बावजूद स्‍वर्ग में नहीं जा पायेंगे?’
ब्राह्मण नहीं, हे गौतम! किसी भी वर्ण का मनुष्‍य हो, यदि उसने पाप कर्म छोड़ दिये हैं तो वह स्‍वर्ग का अधिकारी है।

बुद्ध ऐसा क्‍यों? हे ब्राह्मण।
ब्राह्मण ऐसा इसलिये हे गौतम कि पुण्‍याचरण का फल ब्राह्मण और अब्राह्मण दोनों को ही समान रूप से मिलता है।
बुद्ध क्‍या तुम्‍हें ऐसा लगता है कि इस प्रदेश में केवल ब्राह्मण ही द्वेष-वैर-बिरहित और मैत्री-भावना रख सकता है और क्षत्रिय, वैश्‍य तथा शुद्र उस भावना को नहीं कर सकते हैं?

ब्राह्मण नहीं गौतम, इस क्षेत्र में चारों वर्ण मैत्री भावना कर सकते हैं, उसकी भला किसी को क्‍या मनाही हो सकती है। मैत्री करूणा तो सार्वभौम अनुपालनीय है।

बुद्ध तो फिर यह कहने में क्‍या अर्थ है कि सिर्फ ब्राह्मण वर्ण ही श्रेष्‍ठ है और अन्‍य वर्ण हीन है?’
ब्राह्मण आप चाहे जो कहिए, मैं तो आपकी बात भले ही मान लूँ, पर ब्राह्मण अपने ही को श्रेष्‍ठ मानते हैं और अन्‍य वर्णों को हीन समझते हैं, जबकि आपकी बात सही है इसमें जरा भी शक नहीं है।

बुद्ध उनकी ध्‍यान से सुनते रहे और जो भी उनके मन में आया हो परन्‍तु आगे के संवाद को देखने से जो प्रतीत होता है उससे लगता है कि जैसे वे तर्क करने के लिये एक सीढ़ी और नीचे उतर गये और एकदम जमीन पर आकर और अधिक विनम्र और शालीनता भरे शब्‍दों में बोले - हे ब्राह्मण कोई मूर्धाभिषिक्त राजा सब जातियों के सौ पुरुषों को एकत्र करें और उनमें से क्षत्रिय, ब्राह्मण एवं राजकुल में उत्‍पन्‍न व्‍यक्तियों से कहे अजी इधर आइये और शाल या चंदन जैसे उत्‍तम वृक्षों की उत्‍तरारणी लेकर अग्नि उत्‍पन्‍न कीजिये और उनमें से चांडाल, निषाद आदि हीन लोगों से कहे कुत्‍ते को रोटी-पानी देने के बर्तन में या सूअर को दाना-पानी देने के बर्तन में एरंड की उत्‍तरारणी से अग्नि पैदा करो तो क्‍या केवल ब्राह्मणों द्वारा चंदन की उत्‍तरारणी से जो आग उत्‍पन्‍न होगी वही अग्नि भास्‍वर और ज्‍यादा प्रखर होगी, चांडालादि द्वारा एरंड से जो आग पैदा होगी उससे अग्नि जैसे कार्य नही हो पाएगें
ब्राह्मण हे गौतम! किसी भी वर्ण का मनुष्‍य अच्‍छी या बुरी लकड़ी की उत्‍तरारणी बना कर किसी भी स्‍थान में अग्नि पैदा करे तो वह समान रूप से अग्नि के गुण लिये होगी और उससे समान अग्नि कार्य हो सकेंगे।

बुद्ध यदि कोई क्षत्रिय कुमार किसी ब्राह्मण कन्‍या के साथ शरीर संबंध रखे और संबंध के कारण यदि उसके पुत्र हो जाए तो क्‍या तुम्‍हें ऐसा नहीं लगता कि वह पुत्र अपने माँ-बाप के समान ही मनुष्‍य होगा? इसी प्रकार यदि कोई ब्राह्मण कुमार क्षत्रिय कन्‍या से विवाह करे और उस संबंध से उसके पुत्र हो जाए तो क्‍या तुम समझते हो कि वह अपने माँ-बाप के समान न होकर और ही ढंग का होगा।
ब्राह्मण हे गौतम ऐसे विवाह से जो बच्‍चा पैदा होगा वह भी निश्चिय ही अपने माता-पिता की ही तरह मनुष्‍य होगा और उसे हम ब्राह्मण भी कह सकते है और क्षत्रिय भी।
बुद्ध और यदि किसी घोड़ी और गधे के शरीर-संबंध से जो बछेरा होता है, क्‍या उसे हम उसकी माँ या पिता जैसे कह सकते हैं।
ब्राह्मण हे गौतम, उसे घोड़ा और गधा नहीं कहा जा सकता।  वह तो एक अलग ही ढंग का प्राणी होता है और उसे हम खच्‍चर कहते हैं।
बुद्ध हे ब्राह्मण, पशु कीड़े-मकोड़ों, वृक्ष एवं वनस्‍पतियों में विभिन्‍न प्रजातियाँ पाई जाती हैं।  उनकी भिन्‍नता के चिह्न उन समुदायों में स्‍पष्‍ट दिखाई देते हैं। परंतु मनुष्‍यों में भिन्‍नता के चिह्न नहीं पाये जाते।  बाल, कान, नाक, मुँह, ओठ,  भौंह, गला, पेट, पीठ, हाथ, पाँव, आदि अवयवों से एक मनुष्‍य दूसरे मनुष्‍य से पूर्णतया भिन्‍न नहीं होता है। अर्थात् हे ब्राह्मण, जिस तरह पशु-पक्षियों में आकारादि में विभिन्‍न जातियाँ पाई जाती हैं वैसे मनुष्‍यों में नहीं हैं। सब मनुष्‍यों के अवयव लगभग समान ही होने से मनुष्‍यों में जाति भेद निश्चित नहीं किया जा सकता है परंतु मनुष्‍य की जाति कर्म से अवश्‍य निश्चित की जा सकती है।
बुद्ध के इस कथन के बाद सभी ब्राह्मण बात को समझने की स्थिति में आ गये तो उन्‍होंने अपनी बात को और स्‍पष्‍ट करने के लिये  ब्राह्मणों से कहा
दो ब्राह्मण भाइयों में से एक ने वेद-पठन किया हुआ है और अच्‍छा पढ़ा-लिखा है लेकिन दूसरा शिक्षित है तो लोग उनमें से किस भाई को अधिक आदर और आमंत्रण देंगे?

ब्राह्मण जो‍ शिक्षित है स्‍वाभाविक रूप से उसी को, हे गौतम

बुद्ध यदि उन भाइयों में जो विद्वान है वह दुराचारी है, व्‍यभिचारी है और दूसरा विद्वान तो नहीं किन्‍तु सदाचारी और सुशील है तो उन दोनों में पहले किस का आदर होगा और किसे आमंत्रण दिया जायेगा?’
ब्राह्मण हे गौतम, जो शीलवान होगा उसी का आदर होगा और उसी को प्रथम आमंत्रण दिया जायेगा?’

बुद्ध ऐसा क्‍यों, हे ब्राह्मण
ब्राह्मण हे गौतम, दुराचारी मनुष्‍य को दिया हुआ दान कैसे फलदायक होगा?

      बुद्ध ने अब अपने तर्कों को समेटते हुए संवाद की निष्‍पत्ति करते हुये निष्‍कर्ष रूप से कहा- हे ब्राह्मण अभी बातचीत के दौरान तुमने पहले जाति को महत्‍व दिया, फिर विद्वता को और अब शील को महत्‍व दे रहे हो अर्थात् मन-वचन-कर्म की जिस शुद्धि की मैं बात करता हूँ आखिर उसी के तुम भी उपासक और कायल हो। बुद्ध की यह बात सुनकर बिना कुछ कहे वे ब्राह्मण सि‍र झुकाकर चल दिये।

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर आलेख| वैसे आज का सत्य तो ये है कि :-

    सदियों से जो त्रस्त रहा, दमनीय रहा|
    दुनिया में अब वो ही सब से ऊपर है||

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  2. काश ये बातें सभी लोग समान रूप से समझ जाते. जीतेन्द्र जी बहुत सुंदर आलेख है. आभार.

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  3. बहुत बढ़िया और सटीक आलेख!

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  4. अन्ततः मानसिक शुद्धता ही श्रेष्ठ बनाती है।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति महोदय ||

    बधाई स्वीकार करें ||

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  6. बुद्ध विकल्पों की बात करते हैं। जब चुनाव करना हो तो बहुत सम्भावनायें बन जाती हैं। सर्वोपरि है मानवता।

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  7. बुद्ध के द्वारा बताये मार्ग का कुछ अंश ही जीवन में उतार पायें तो यह वैमनस्य की भावना ही न रहे ..अच्छी प्रस्तुति

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति महोदय ||

    बधाई स्वीकार करें ||

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  9. वाह बहुत खूब!
    सम्वाद में आलेख!
    आलेख में सम्वाद!!

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