शनिवार, 2 जनवरी 2010

नव वर्ष मंगलमय हो !

-- परशुराम राय
।। नव वर्ष मंगलमय हो ।।

ये त्रिसप्ताः परियन्ति विश्वा रूपाणि बिभ्रतः।
वाचस्पतिर्बला तेषां तन्वो अद्य दधातु मे (नः) ।।


आज नव वर्ष 2010 के प्रथम प्रभात पर मैं अथर्ववेद के प्रथम मंत्र से जगत के लिए तापत्रय रहित सुख-समृद्धि की कामना करता हूँ। इस मंत्र का अर्थ है – विश्व के विभिन्न रूपों में व्याप्त ईश्वर विभिन्न रूपों में वर्तमान बलों को आज हमारे लिए धारण करे अर्थात् हमें प्रदान करे।

इस मंत्र के ऋषि अथर्वा हैं, देवता वाचस्पति हैं और अनुष्टुप छंद है।

जो लोग गत वर्ष की विदाई करने और नववर्ष 2010 के स्वागत के लिए 31 जनवरी की मध्यरात्रि से नशे में डूबे अभी भी सो रहे होंगे नव वर्ष उनके लिए भी सुखद अनुभूति प्रदान करे, जीवन की अर्थवत्ता समझने हेतु सुबुद्धि दे, ईश्वर से यही कामना करता हूँ, प्रार्थना करता हूँ।

भारतीय परम्परा के अनुसार नव वर्ष पर मेरी शुभकामना, हो सकता है, कुछ लोगों को रास न आये। क्योंकि भारतीय शब्द से कुछ लोगों के चेहरे पर कीचड़ उछल जाते हैं। भारतीय संस्कृति और भारतीय विचारधारा के यदि आप पोषक हैं, तो उनकी दृष्टि में आप पोंगा है।

भारतीय होने का गर्व तो कभी-कभार संकोचवश वे भी कर लेते हैं लेकिन अपमानित अधिक अनुभव करते हैं। वेलेन्टाइन्स डे के आस-पास मीडिया वर्ग भी कम कीचड़ नहीं उछालता। बातें डेमोक्रेसी की होती हैं। डेमोक्रेसी का अर्थ उच्छृंखलता, गाली-गलौज, तोड़फोड़, बन्द का आवाहन आदि लगा रखा है। केवल मेरी समझ से ही नहीं बल्कि चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से भी इन्हें मानसिक विकार के शिकार तो मान सकते है, लेकिन डेमोक्रेसी के पोषक कदापि नहीं। इन्हें शायद यह मालूम नहीं कि हमारी स्वतंत्रता की सीमा वहाँ समाप्त हो जाती है, जहाँ से दूसरों की स्वतंत्रता शुरू होती है। क्योंकि डेमोक्रेसी में समाज का उत्थान और समाज की सम्पत्ति सर्वोपरि होते हैं।

आज भारतीय समाज के लोग तीन भागों में विभक्त दिखते हैं। एक वे जो सुख और दुःख बेहोश होकर जीना जानते हैं। दूसरी तरह के लोग वे हैं, जो केवल इनकी निन्दा करके अपनी जिम्मेदारी निभा लेते हैं। तीसरा वर्ग वह है जो इनके इशारे पर हंगामे आयोजित करता है। सुबुद्ध वर्ग, जो चौथी श्रेणी की विरल प्रजाति है, मूर्ख कहा जाता है। यह बात आपके लिए भी दुखद हो सकती है। आप चाहें तो अपनी अलग श्रेणी बना सकते हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं।

मैं एक बार फिर नव वर्ष पर इस मंत्र के अनुरूप सम्पूर्ण जगत के लिए रामराज्य में वर्णित अनन्त सुखों की कामना करता हूँ जिसमें भारत भूमि की उर्वरकता आज भी उसी तरह सुगंध बिखेर रही है।

इस मंत्र में ‘त्रिसप्त’ शब्द अत्यन्त गूढ़ है – त्रिसप्त का अर्थ इक्कीस है। इस इक्कीस की कई रूपों में व्याख्या की गई है, यथा
(1) स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर (प्रत्येक) में सात लोकों भू, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्य का विस्तार,
(2) पांच महाभूत, पांच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच प्राण और अन्तःकरण,
(3) तीन काल, तीन लोक, तीन गुण, दस दिशाएँ, प्रकृति और जीव। इसी प्रकार अन्य इक्कीस के योग भी या उक्त सभी इसके अन्तर्गत ग्रहण किये जा सकते हैं।

अनन्त ब्रह्माण्ड को इक्कीस की परिधि में रूपायित करने वाले मंत्रद्रष्टा ऋषि अथर्वा को मैं हृदय से कोटि-कोटि नमन करते हुए एक बार पुनः नववर्ष पर परमपिता से मनसा, वाचा और कर्मणा प्रार्थना करता हूँ कि वे हम सभी को सुबुद्धि प्रदान करें जिनके बल से हम सभी विश्व में उपलब्ध और अनुपलब्ध सुखों को अनवरत प्राप्त करते रहें। इति।
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहत अच्छे विचार। बहुत अच्छी भावना। आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. सम्पूर्ण प्राणिजगत के कल्याण की अवधारणा ही वह मूल तत्व है जो हमारे दर्शन का आधार है। बहुत बढिया।

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  3. मैं हृदय से कोटि-कोटि नमन करते हुए एक बार पुनः नववर्ष पर परमपिता से मनसा, वाचा और कर्मणा प्रार्थना करता हूँ कि वे हम सभी को सुबुद्धि प्रदान करें जिनके बल से हम सभी विश्व में उपलब्ध और अनुपलब्ध सुखों को अनवरत प्राप्त करते रहें
    uttam vichar. Happy New year-2010

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