नमस्कार मित्रों!
अभी-अभी लौटे हैं छठ घाट से। भगवान भाष्कर का संध्या पूजन कर।
आज तो दिन भर चहल पहल रही। हालाकि इन्द्र देवता नाराज़ थे इस बार सो पोखर में पर्याप्त जल नहीं था और जो भी बचा था वह हानिकारक जीव जंतुओं का आश्रयस्थल ही था। पर गांववासियों के हौसले की दाद देनी होगी, जो था उसकी साफ़ सफ़ाई की गई और फिर पास के जलस्रोंतों से यांत्रिक सहायता के द्वारा जलभरकर पोखर को छठ पूजन योग्य बनाया गया।
फिर शाम तक घाट पर चौकी आदि डाल कर साज-सजाई का काम करण समस्तीपुरी के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ।
हां बीच-नीच में हास-परिहास की उत्सव लीला के दृश्य भी हमने कैमरे में कैद कर लिये ।
अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि इस बार हम आपने गांव रेवाड़ी में हैं। छठ पूजा मनाने। करण भी साथ में है। हम अभी-अभी घाट से लौटे हैं और ताज़ा-ताज़ा तस्वीर आपको समर्पित कर रहे हैं।
बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में महापर्व के नाम से प्रसिद्ध “छठ पर्व” श्रद्धा, विश्वास एवं आस्था के साथ मनाया जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि छठ से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। वैसे तो कहावत है कि लोग उगते सूर्य की पूजा करते हैं, किन्तु इस पर्व में अस्त एवं उदय होते हुए दोनों रूपों में भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की जाती है। आज हम अस्ताचल सूर्य की पूजा कर घाट से लौटे हैं। गांव में तो पोखर ही है। और उत्साह की कोई कमी नहीं।
छठ का महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरु हो जाता है। चतुर्थी को छठ पूजा करने वाले छठव्रती, नहाए-खाय करते हैं। फिर पंचमी को खरना, जिसमें शाम के समय छठव्रती इष्टदेव की पूजा कर भोग आदि लगाते हैं।
षष्ठी यानी आज, डूबते हुए सूर्य को तालाब, पोखर या नदी में खड़े होकर अर्घ्य देकर विशेष प्रकार के प्रसाद ठेकुआ, खजुर, फल, आदि जिसमें गन्ने, नारियल आदि का विशेष महत्व है, चढ़ाया जाता है।
सप्तमी, यानी कल उगते सूर्य को अर्घ्य, नैवेद्य से पूजा की जाएगी। जिसे स्थानीय भाषा में हाथ उठाना कहते हैं। हाथों में नैवेद्य, नयनो में प्रतीक्षा, "उगा हो सुरुज देव अरघ के'र बेर...." और मन में अनुनय "ले हो न अरघ हमार हे छट्ठी मैय्या...!" इस व्रत का समापन सप्तमी को होता है।
चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के प्रति श्रद्धालुओं में श्रद्धा के साथ उमंग व्याप्त रहता है। इस पर्व की एक और विशेषता जो क़ाबिले तारीफ़ है, वह है साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना। कई जगह तो पूरा-का-पूरा शहर ही विशेष अभियान द्वारा साफ-सुथरा कर दिया जाता है। अन्यथा तालाब, पोखर या नदी के उन स्थलों की तो पूरी सफाई की ही जाती है जहां पर्व मनाने श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। हमारा गांव भी आज चकाचक है!
माहात्म्य ....
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, जुए में सब कुछ गंवा कर पांडव जब बनवास में थे, तभी दुर्योधन प्रेरित महर्षि दुर्वाषा पहुँच गए, पांडवों के पर्ण कुटीर। "अतिथिदेवो भवः !" परन्तु वनवासी याचक पांडव आतिथ्य धर्म का निर्वाह करें तो कैसे घर में अन्न का केवल एक दाना और अठासी ब्रह्मण। धर्मसंकट। द्वार पर आये ब्राह्मण और असहाय पतियों को देख द्रौपदी ने भगवन कृष्ण को याद किया और भक्तवत्सल गोपाल के अनुग्रह से ब्रह्मणों का परितोष रखने में सफल रही। द्रौपदी की सेवा-निष्ठा से प्रसन्न महर्षि दुर्वाषा ने आशीष के साथ 'कार्तिक शुक्ल षष्ठी' को भगवान् भाष्कर का व्रत करने की सलाह दिया।
द्रौपदी ने वन में ही उक्त तिथि को सूर्योपासना किया और छट्ठी मैय्या के प्रताप से एक वर्ष सफल अज्ञातवासोपरांत पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय और खोया राज-पाट ऐश्वर्या व यश प्राप्त हुआ। तो ऐसी है भगवान् भुवन भाष्कर की महिमा और छठ महापर्व का महातम्य !!!
बोलो छट्ठी मैय्या की जय !!!
आगे मैय्या का डालावाहक और पीछे छ्ट्ठी मैय्या का गीत गाते हुए श्रद्धालु महिलायें घर को वापस होती हैं और आज के व्रत को मिलता है विराम । आप गीत का आनन्द लीजियए । हम कल फिर मिलेंगे । जय छट्ठी मैय्या ।
: गीत :
"केलबा के पात पर उगेलन सुरुज देव झांके झुके ...
हे करेलू छठ बरतिया से झांके झुके... !
हम तोह से पूछीं बरतिया हे बरतिया से किनका लागी... ?
हम तोह से पूछीं बरतिया हे बरतिया से किनका लागी... ?
हे करेलू छठ बरतिया से किनका लागी .... ?
हमरो जे स्वामी तोहरे ऐसन स्वामी से हुनके लागी...
हे करेलू छठ बरतिया से हुनके लागी.... !!"
व्रती इस गीत में आगे बताती हैं कि वो छठ का महाव्रत अपने पति, पुत्र, घर एवं परिवार के लिए करती है इस प्रकार यह मान्यता पुष्ट हो जाती है कि छठ महाव्रत के प्रसाद से धन, वैभव, संतान मान, यश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
छठ की परम्परा से अवगत कराने के लिए आभार। यह उल्लास का पर्व सभी को एकता के सूत्र में बाँधने में सफल हो, यही कामना है।
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanyvaad vistar se brat ke bare me batane se.Salil jee ne bhee jankaree dee thee.bada accha lagasab kuch jaankar.....
जवाब देंहटाएंaabhar
छठ पर्व की हार्दिक बधाइयाँ. इस बार अपने गाँव नहीं जा सका हूँ कुछ परीक्षाओं के कारण मगर पटना में ही पड़ोस में पर्व का आनंद उठा रहा हूँ. आपका वृतांत पढ़ कर अच्छा लगा. सबसे अच्छी ये बात लगी कि आप बिहार के ऐसे सुदूर गाँव में रहकर भी इन्टरनेट का मजा लूट रहे हैं और ब्लॉग लिख रहे हैं. सच में अपने देश ने बहुत तरक्की कर ली है. छठ मैया का प्रताप हमारे ऊपर यूँही बना रहे!
जवाब देंहटाएंछठ से सम्बंधित कथा बताने के लिए आभार. आप सब को छठ पर्व की हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएं@ अजित गुप्ता,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद । हमें भी यह सुयोग वर्षों बाद मिला है तो सोचा कि ब्लोग परिवार को भी इस खुशी में शामिल किया जाय ।
@अपनत्व,
जवाब देंहटाएंवाह इसे कहते हैं सच्चा अपनत्व । हांजी ! छ्ठ पर्व होता ही ऐसा है कि सब कुछ अच्छा ही अच्छा । आपकी त्वरित प्रतिक्रिया हमें भी बहुत अच्छी लगी । धन्यवाद !!
@ आशु,
जवाब देंहटाएंऒह आशु भाई..... आप भी गांव जाते तो... ! खैर पटनिया छठ तो नामी है ! लेकिन गांव में छ्ठ के साथ-साथ इंटरनेट का आनन्द... सोना में सुगन्ध जैसा आनन्द !
@ आशु,
जवाब देंहटाएंऒह आशु भाई..... आप भी गांव जाते तो... ! खैर पटनिया छठ तो नामी है ! लेकिन गांव में छ्ठ के साथ-साथ इंटरनेट का आनन्द... सोना में सुगन्ध जैसा आनन्द !
उगते सूर्य को तो सभी नमस्कार करते हैं। मगर, डूबते को भी नमस्कार कर हम इस आदर्श की रक्षा करते हैं कि जिसकी चमक से हम कभी लाभान्वित हुए हों,अस्तकाल में भी उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जानी चाहिए।
जवाब देंहटाएं4/10
जवाब देंहटाएंआपने छठ पर्व के बारे में सुन्दर जानकारी दी.
अब तो छठ पर्व कई प्रदेशों तक पहुँच गया है.
छट के बारे में मेरा ज्ञान सिर्फ ठेकुआ तक ही था जो मुझे बेहद पसंद हैं :) परन्तु ब्लॉग पर आप लोग इतनी अच्छी अच्छी पोस्ट लगाते हैं कि लग रहा है बहुत कुछ जान गई हूँ भगवन ने चाहा तो एक दिन यह उत्सव देखने का मौका भी मिल जायेगा.
जवाब देंहटाएंChhat ki pooja aap dono ne kiss utsaah se manayee yah toh post se hi samajh aaraha hai..:) chhat pooja ki tasveerien bhi aaplogon ne bahut achi lagai hain..aur chhat pooja ki mahatta bata kar iss post ki shobha aapne aur badha di hai...Chhath pooja ki sabhi pathakon ko bahut bahut badhai.... sadhuwaad.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar post...chhat pooja ki jaankari ke liye bahut bahut dhanyawaad... pooja ki photos ne post par char chaand laga diye... Regards
जवाब देंहटाएंPratima Rai. :)
हमारे देश की संस्कृति और यहाँ के त्यौहार हमें एक दुसरे से जोड़ने का काम करते हैं ..इतनी समृद्ध विरासत को पाकर हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं ..शुक्रिया, इतनी सुंदर जानकारी के लिए ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की बहुत अच्छी कथा बताई आपने। छठ पर्व से संबंधित शारदा सिन्हा के गाए गीत मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट हम उत्तर भारतीयों के लिए बहुत सारी जानकारी लेकर आई है!
जवाब देंहटाएंछटी मइया की जय हो!
छठ के बारे में विस्तृत जानकारी मिली ...बहुत बहुत शुभकामनायें ...रेवाड़ी तो हरियाणा में है न ? दिल्ली से लगा हुआ ही करीब करीब ?
जवाब देंहटाएं@ अनामिका जी
जवाब देंहटाएंआपको पोस्ट पसंद आया यह हमारेलिए खुशी की बात है। शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया।
@ राधारमण जी
जवाब देंहटाएंआपकी बातें सदैव प्रेरक होती हैं।
आभार आपका।
@ उस्ताद जी
जवाब देंहटाएंआपको पोस्ट तो पसंद आया, इसने मनोबल बढाया। अंक बताते हैं कि कुछ कमी रह गई। कल छठ-भाग-२ में आपकी कसौटी पर खड़े उतरने का प्रयास किया जाएगा।
हां यह भी सच है कि अब यह पर्व देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है पर मूलतः इसी अंचल के लोग इसे मनाते हैं।
हां, एक और बात जो मूल पोस्ट में छूट गया, वह यह कि हमारे गांव की मुसलिम महिला भी हमारी मां से अपने प्राप्त किए गए मन्नत के एवज़ में कबूले गए छठ के लिए सूप और हाथ उठवाते हैं।
आपको छठ पूजा की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंछठ पर्व पर बधाई ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सचित्र सारगर्वित प्रस्तुति .. पोस्ट पढ़कर काफी कुछ जानने का मौका मिला . छठ पर्व पर बधाई ....
जवाब देंहटाएंआभार
छठ की परम्परा से अवगत कराने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंआभार। छठ पर्व की हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएं... badhaai va shubhakaamanaayen !!!
जवाब देंहटाएंछठ के विषय में आपने सार्थक जानकारी दी
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की हार्दिक बधाई
छठ पर्व की परम्परा से अवगत कराने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंछठ पर्व के लिए शुभ कामनाएं. आभार.
सादर,
डोरोथी.
@ मनोज जी
जवाब देंहटाएंआप यकीन मानिए जो आपने कहा वो तो हतप्रभ कर देने वाली जानकारी है. मेरा मूल्यांकन महज मौलिकता, सार्थकता और उपयोगिता को लेकर ही था.
लेकिन आपने जो कहा वो आश्चर्यजनक है. क्या वास्तव में मुस्लिम महिलाएं भी छठ पर्व में शामिल होती हैं ???
वाह.. आनन्द आ गया सचित्र विवरण पढ के. लगा जैसे मै पटना में हूं. और गंगा किनारे छ्ठ-उत्सव देख रही हूं.
जवाब देंहटाएं@ उस्ताद जी,
जवाब देंहटाएंबेशक उस्ताद जी ! अरे साम्प्रदायिक सौहार्द्र का मेरे गांव से बेहतरीन मिसाल शायद ही कही और मिले. यहां मुस्लिम महिलायें अपने संतान, सौभाग्य,धन-धान्यादि की बेहतरी के लिये छठ पर्व पर भगवान दिनकर को अर्घ्य अर्पित करवाती हैं तो हिन्दु भाई के कान्धा दिये बिना मुहर्रम का ताजिया भी नही उठता है.... ! अगले पोस्ट में इस पर चर्चा और चित्र आप देखेंगे । पोस्ट पर दुबारा नजर-ए-इनायत के लिये शुक्रिया !
छठ पर्व के माहात्म्य के साथ परम्परा से अवगत कराने के लिए आभार। यह जानकर और अच्छा लगा कि यह पर्व सामप्रदायिक सौहार्द की छटा भी बिखेरता है। वास्तव में सामप्रदायिक सौहार्द हमारे देश की, विशेष रूप से ग्राम्य परिवेश में, थाती है। हमने भी अपने बचपन में गाँव में मुस्लिम परिवारों को हिंदू तीज-त्यौहारों में मिलजुलकर खुशियाँ मनाते तथा बड़े बुजुर्गों के आदर सहित चरण स्पर्श करते देखा है। सामप्रदायिक बैर भाव तो तथाकथित सभ्य समाज की देन है जिसने जाति, वर्ग, धर्म व सम्प्रदाय जैसी आस्थाओं का दुरुपयोग लोगों को बाँटने में किया है।
जवाब देंहटाएंघर से गावं के पोखर तक की पर्व-यात्रा कराकर हमें भी पूजा में शामिल करनें के लिए आभार !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह खूब मनी खालिस ग्राम्य छठ
जवाब देंहटाएंछठ पर्व के बारे में मेरे सीमित जानकारी को विस्तार मिला .आभार ।
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की हार्दिक बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंकाफ़ी अच्छी जानकारी उपलब्ध करवाई…………आभार्।
@ अर्विन्द जी, अजय जी, वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।
@ हरीश जी, डोरोथी जी,
जवाब देंहटाएंग्राम्य परिवेश की छटा आपको पसंद आई यह हमारे इस आलेख को प्रस्तुत करने के उद्देश्य को पूरा करता है। आभार आपका।
@ मर्मज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंहमारी साथ आपने भी छट्ठी माई की पूजा की जानकर काफ़ी हर्ष हुआ।
@वन्दना अवस्थी दुबे जी,
जवाब देंहटाएंआपको हमारा यह विवरण पसंद आया। हमारा मनोबल इससे बढता है। बिल्कुल सही कहा आपने, पटना की छठ पूजा का जवाब नहीं।
@ ललित शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका।
@ ललित शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका।
@ उदय जी,शमीम जी, डॉ. जमाल जी, महेन्द्र मिश्र जी
जवाब देंहटाएंआप सबका धन्यवाद।
@ उपेन्द्र जी, बूझो तो जानें, शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआभार आपका प्रोत्साहन के लिए।
@ केवल राम जी,
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने कि सांस्कृतिक विरासत हेमें जोड़ने का काम करती है।
@ परशुराम राय जी,
जवाब देंहटाएंआप सदैव हमारे प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
@ शिखा जी,
जवाब देंहटाएंइस बार ठ्कुआ से इतर भी हम बात कर सके। अब आप तो पहुंचा सकते हैं, पहुंचा दिया।
सुन्दर चित्रावली।
जवाब देंहटाएंछठ के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिये धन्यवाद, बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंbahut sundar post!!!
जवाब देंहटाएंaastha parv ki shubhkamnayen!!!!
@ प्रवीण जी, विवेक जी, अनुपमा जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।
अच्छा लगा छठ पर्व के बारे में जानना काफी कुछ नया जानने को मिला. सचित्र जानकारी मानो घाट तक ही ले गई.ये हिन्दू मुस्लिम वाली बाते अब केवल कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों के दिमाग में ही रह गयी हैं.अन्यथा कहीं कोई भेद नहीं है
जवाब देंहटाएंओह क्या कहूँ...
जवाब देंहटाएंरोम रोम रोमांचित हो गया !!!