मंगलवार, 30 नवंबर 2010

लघुकथा :: ईष्ट देव

लघुकथा :: ईष्ट देव

 

-- --- मनोज कुमार

भोलू प्रतिदिन की भांति उस दिन भी अपने ईष्ट देव पर चढ़ाने के लिए फूल लेने घर से निकला था। आहाता पार कर सड़क के पास पहुंचा ही था कि उसे सड़क के इस पार काफी भीड़ दिखाई दी। उस पार फुटपाथ पर मालन बैठती है, जिससे वह फूल लेता है। उसका यह प्रतिदिन का नियम है। पर आज वह जाए तो कैसे जाए ? सड़क के किनारे की भीड़ तो रास्ता रोके खड़ी है ही ऊपर से पुलिस भी डंडा लिए लोगों को सड़क पार जाने नहीं दे रही है। भोलू ने वहां खड़े एक व्यक्ति से पूछा, “माज़रा क्या है...।” वह व्यक्ति भी थोड़ी ठिठोली करने के मूड में था, .... बोला “हमारे माई-बाप, मतलब...मेरे कहने का मंतरी जी आ रहें हैं। उहे से रास्ता रोक दिया गया है।” भोलू को लगा अब तो जब रास्ता साफ होगा तभी वह सड़क पार कर सकेगा। वह पास के चबूतरे पर बैठ गया। इंतज़ार करने लगा। थोड़ी देर बाद उसे सायरन की आवाज़ सुनाई देने लगी, फिर गाड़ियों का काफिला दिखा। सबसे आगे पुलिस की गाड़ी, बंदुकों से लैस जवान। फिर सफेद लाल बत्ती वाली गाड़ी। उसके पीछे फिर से पुलिस और बंदूक वाले जवानों की गाड़ियां। तेज़ी से चिल्ल-पों करते हुए काफिला गुज़र गया।

भोलू सड़क की ओर बढ़ा। पर भीड़ अभी-भी टस-से-मस नहीं हुई थी। पुलिस वाले अब भी लोगों को जाने नहीं दे रहे थे। भोलू ने फिर उसी, भीड़ और सारे माज़रे का मज़ा ले रहे व्यक्ति से पूछा, “अब क्या है...जाने क्यों नही दे रहे?” इस बार बग़ैर किसी ठिठोली के वह बोला, “एक दुर्दांत अपराधी पकड़ा गया है। उसने पूरे राज्य में तबाही मचा रखी थी। उसे ही अपराध शाखा के मुख्यालय ले जाया जा रहा है...।” भोलू चबूतरे पर आकर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद फिर सायरन, फिर पुलिस और बंदुकों से लैस जवान की गाड़ियां, फिर बरबख़्तबंद गाड़ी, उसके पीछे फिर से पुलिस और बंदूक वाले जवानों की गाड़ियां। भोलू को लगा फ़र्क सिर्फ लाल बत्ती के होने-न-होने का था। बांक़ी सब तो समान ही था।

.... काफिला गुज़र गया था। भीड़ छंट चुकी थी। रोड पर सन्नाटा पसरा था। सड़क के उस पार फुटपाथ पर मालन फूल की दुकान सजा चुकी थी। पर पता नहीं क्यों भोलू के मन पर एक अवसाद सा छाया था। वह अपने घर की तरफ लौट चला। सोच रहा था आज ईष्ट देव को बिना फूल-माला के ही पुजूंगा। ... ...

*** *** ***

25 टिप्‍पणियां:

  1. फ़र्क सिर्फ लाल बत्ती के होने-न-होने का था। बांक़ी सब तो समान ही था।
    सारगर्भित पोस्ट सोचने को मजबूर करती

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया लघुकथा ...
    आपने अपने तरीके से बता दिया कि दरअसल ये नेता होते क्या चीज़ हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सही कहते हैं आप। बड़े राजनेता और बड़े अपराधी की सोच, समझ और संस्कार ऐसे घुल मिल गए हैं कि उनमें अंतर कर पाना मुश्किल हो गया है। ऐसे में आम आदमी इसी तरह का दर्द महसूस करेगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया लघुकथा ...सारगर्भित ।

    जवाब देंहटाएं
  5. फूल माला तो अब इन्हें भी चढ़ने लगे हैं। वह अपने इष्ट देव को पृथक ही रखना चाहता है। शिल्प में संभावना अभी शेष है तथापि संदेश मुखरित है।
    सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  6. संदेशपूर्णलघुकथा है। कथा अच्छी लगी। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. सच को वयान किया है आपने ...सोचने पर मजबूर करती हुई लघुकथा ...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  8. मनोज जी ,
    आपकी लघु कथा व्यवस्था की सच्चाई को संप्रेषित करती है ! सन्देश बहुत ही प्रभावशाली बनकर मुखरित हुआ है !
    बधाई !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  9. बेवाक और सपाट. सन्देश मुखर है.... शिल्प औसत किन्तु लघुकथा के माकूल. धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  10. भोलू को लगा फ़र्क सिर्फ लाल बत्ती के होने-न-होने का था। बांक़ी सब तो समान ही था..

    बिलकुल सटीक बात ..नेता कोई कम आतंकवादी होते हैं ?
    जनता भोलू कि तरह ही अवसाद में घिर जाती है

    सोचने पर मजबूर करती अच्छी लघुकथा ...

    जवाब देंहटाएं
  11. व्यवस्था कई बार हमे कितना पंगु बना देती है। अच्छी लगी आपकी लघु कथा। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. इस लघुकथा में आज देश की राजनितिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य निहित है...

    जवाब देंहटाएं
  13. सार्थक पोस्ट, अब तो इन्ही लोगों के लिये सड़क सुरक्षित कर दी जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  14. राजनीतिक व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष्।
    बेहद उम्दा और सोचने को मजबूर करती लघुकथा।

    जवाब देंहटाएं
  15. भोलू को लगा फ़र्क सिर्फ लाल बत्ती के होने-न-होने का था। बांक़ी सब तो समान ही था..

    एकदम सटीक. नेता कौन से कम हैं .
    बहुत अच्छी लघुकथा

    जवाब देंहटाएं
  16. 2.5/10

    बहुत ही रसहीन / भावहीन लघु-कथा है
    लघु-कथा के नाम पर ब्लॉग जगत में निरंतर बेहद सतही रचनाएं परोसी जा रही हैं.

    जवाब देंहटाएं
  17. कितनी ही बार,ऐसी परिस्थितियों में घिरकर कभी किसी महिला को ऑटो में ही बच्चे को जन्म देना पड़ा है,तो कभी किसी रोगी का जीवन चंद सेकेंड की देरी की ही भेंट चढ़ गया है। ऐसे माहौल में,क्या पूजा क्या अर्चन रे!

    जवाब देंहटाएं
  18. laghu katha mein ladke ka manovaigyanik Nishkarsh samajh mein nahi aya.yahan Bahav bimb nahi ubhar raha hai.Phir bhi prastuti ke liye kiya gaya prayash prashansaniya hai. Sadar.

    जवाब देंहटाएं
  19. उस्ताद जी,
    आज आपकी साहित्यिक समझ पर आपके चरणों में दण्डवत करने का जी कर गया।

    लघु कथा में अगर आप रस खोजने चले तो आपके
    इस रसवाद को सलाम।

    और मुझे रस सच में न परोसने आता है, न चाहत है।

    लघुकथा के ऊपर अगर कुछ ज्ञान मिले तो शिष्य बनने को तैयार हूं, उस्ताद जी!

    जवाब देंहटाएं
  20. भोलू को लगा फ़र्क सिर्फ लाल बत्ती के होने-न-होने का था। बांक़ी सब तो समान ही था।
    sahi kaha

    जवाब देंहटाएं
  21. आज के समय में यदि अब्दुल कसाब जैसों को सडक पर लाना होगा तो किसी भी बडे नेता से ज्यादा सुरक्षा व्यवस्था के कारण उपजी सामान्य समस्याएँ आम जनता को ही तो झेलना होगी ।

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।