- आचार्य परशुराम राय
कार्तिक की
महानिशा में
आज
आया हूँ
परम्परा का दीप ले
सजाने
वैज्ञानिक तर्क
इसका हो, न हो,
कोई बात नहीं,
शायद कभी यह
बता दे पता
घर सजा रखा है
दीपमाला से
श्रद्धा और भावों की,
सोचकर कि
संस्कृति का दीप यह
शायद
बता दे
राम के आगमन से
उपजा उल्लास
अयोध्या का
अगली प्रस्तुति मनोज कुमार द्वारा २०.०० बजे
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
गुरुतर संदेश।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएंआप को भी सपरिवार दिपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
सुन्दर रचना.दीप पर्व की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.दीप पर्व की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंवह उल्लास हम सबके मन में भी जगे।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति ....दीवाली की पुनः शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
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प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
सभी पाठकों को साधुवाद और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.दीप पर्व की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ...
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