उद्घोष
- बीना अवस्थी
शक्ति का आह्वान कर अब क्रान्ति को आवाज दे।
हिल उठे दिग्गज धरा सब तू छेड़ ऐसा राग दे।
रूप नायक के लिखे ग्रन्थ सारे नष्ट कर दे,
विरह की वो अश्रुगाथा महाउदधि को भेंट दे दे,
द्वेष के फैले तिमिर में प्रीति के दीपक जला दे,
अज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,
आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।
हिल उठे.................................................
काम व अभिसार से उपवन सजे न आज कोई,
संदेश लेकर आ न पाये शुक, ना ही हंस कोई,
साहित्य का नूतन सृजन कर उत्साह की मदिरा पिला,
झूम जाये तन उमंग से कवित्वमय आसव पिला,
मुक्ति के कुछ मंत्र को विश्व में फिर से जगा दे।
हिल उठे....................................
गीत की झंकार अब तो शस्त्र की टंकार बन जा,
प्रीति के आवेग से कम्पित हृदय अंगार बन जा,
स्फूर्ति से मचलें भुजायें रोम-रोम उत्थान बोले,
उल्लास से पूरित नयन आवेग का निर्झर संजो ले,
बुलवा ले शंकर को धरा पे, आज फिर तांडव करा दे।
हिल उठे.................................................
लेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे,
कंस के इस राज्य में तू कृष्ण का जयनाद कर दे,
शान्ति की माला नहीं अब रोष से हुंकार भर दे,
रक्त में चैतन्य भरकर अब प्रलय की बात कर दे।
भारती को साथ लेकर आज तो इस राह चल दे।
हिल उठे................................................
बहुत ही सुन्दर। उद्घोष के स्वर झंकृत कर रहे है अभी तक।
जवाब देंहटाएंद्वेष के फैले तिमिर में प्रीति के दीपक जला दे,
जवाब देंहटाएंअज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,
आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।
काफी प्रेरक रही आपकी प्रस्तुति ...शुभकामनायें
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुती। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंKavita ka sandesh anukaraniya hai.
जवाब देंहटाएंSadhuvad.
6.5/10
जवाब देंहटाएंअज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,
आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।
रचना का ओजस्वी स्वर प्रेरणादायक है.
यह प्रभावपूर्ण कविता मंच पर पढ़े जाने योग्य है.
सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
उद्घोष के स्वर झंकृत कर रहे है
जवाब देंहटाएंउद्घोष के स्वर झंकृत कर रहे है
जवाब देंहटाएंसुंदर और ओज से भरी प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंगांडीव की टंकार सा उद्दघोष .... ओज पूर्ण कविता ......
जवाब देंहटाएंवाह ... क्या शानदार प्रस्तुति है ...
जवाब देंहटाएंawesome..... :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंगीत की झंकार अब तो शस्त्र की टंकार बन जा,
जवाब देंहटाएंप्रीति के आवेग से कम्पित हृदय अंगार बन जा ...
ओज पूर्ण ... जोश और उमंग का संचार करती रचना ... बाजुओं को हिलाने ,इ ताकत राखित है ये रचना ... बहुत ही लाजवाब ...
ojpoorna rachna!!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर उद्घोष्।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
प्रेरक और उत्साह का संचार करने वाली पंक्तियां...धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहत ही प्रेरणादायक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआभार.
सादर
डोरोथी.
बहुत ही सुन्दर ओजपूर्ण कविता.रग रग में उत्साह जगाती हुई.
जवाब देंहटाएंप्रीति के आवेग से कम्पित हृदय अंगार बन जा ...बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा कविता.
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंओजस्वी प्रेरक रचना !
जवाब देंहटाएंलेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे,
जवाब देंहटाएंकंस के इस राज्य में तू कृष्ण का जयनाद कर दे,
शान्ति की माला नहीं अब रोष से हुंकार भर दे,
रक्त में चैतन्य भरकर अब प्रलय की बात कर दे।
भारती को साथ लेकर आज तो इस राह चल दे।
..... सुन्दर ओजमयी प्रेरक प्रस्तुती। धन्यवाद।
"लेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे, ..."
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना .... आभार
वीर रस का सुंदर वर्णन .... ओज से लबालब...
जवाब देंहटाएंलेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे,
जवाब देंहटाएंकंस के इस राज्य में तू कृष्ण का जयनाद कर दे,
शान्ति की माला नहीं अब रोष से हुंकार भर दे,
रक्त में चैतन्य भरकर अब प्रलय की बात कर दे।
भारती को साथ लेकर आज तो इस राह चल दे।
हिल उठे....................
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यह गर्जना और वर्जना रचना बहुत ही सटीक है!
आज के परिवेश में इसका महती महत्व है!
बड़ी ही ओजमयी कविता है....जोश से भर देनेवाली
जवाब देंहटाएंओजपूर्ण अभिव्यक्ति
सुन्दर पोस्ट .बधाई !
जवाब देंहटाएंमेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
जवाब देंहटाएंhttp://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
बीना जी सरल, सहज और कोमल व्यक्तित्व वाली एक संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी वाणी मृदु है। उनके व्यक्तित्व के विपरीत एक ओजस्वी गीत किसी आश्चर्य से कम नहीं। सुन्दर गीत के लिए बीना जी को आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेरक प्रस्तुती। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर और ओज से भरी प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी सोच और शब्द चयन तो कमाल का है. बेमिसाल प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंकाम व अभिसार से उपवन सजे न आज कोई,
जवाब देंहटाएंसंदेश लेकर आ न पाये शुक, ना ही हंस कोई,
साहित्य का नूतन सृजन कर उत्साह की मदिरा पिला,
झूम जाये तन उमंग से कवित्वमय आसव पिला,
मुक्ति के कुछ मंत्र को विश्व में फिर से जगा दे।
हिल उठे....................
एक से बेहतर एक शब्द व्यंजना का इस से बेहतर उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा.
बहुत बहुत सुंदर सशक्त लेखन दर्शाती बढ़िया रचना.