शिवस्वरोदय-19
आचार्य परशुराम राय
गुरुशुक्रबुधेन्दूनां वासरे वामनाडिका।
सिद्धिदा सर्वकार्येषु शुक्लपक्षे विशेषतः।।69।।
अन्वय- शुक्लपक्षे विशेषतः गुरुशुक्रबुधेन्दूनां वासरे वामनाडिकासर्वकार्येषु सिद्धिदा (भवति)।
भावार्थः शुक्ल पक्ष में विशेषकर सोम, बुध, गुरु और शुक्रवार को चन्द्रनाड़ी अर्थात् वायीं नासिका से स्वर के प्रवाह काल में किए गए सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
English Translation- Any work done during the flow of left nostril, especially on Monday, Wednesday, Thursday and Friday in bright fortnight, will be successful.
अर्काङ्गारकसौरीणां वासरे दक्षनाडिका।
स्मर्तव्या चरकार्येषु कृष्णपक्षे विशेषतः।।70।।
अन्वयः कृष्णपक्षे विशेषतः अर्काङ्गारकसौरीणां वासरे चरकार्येषु दक्षनाडिका स्मर्तव्या।
भावार्थः कृष्ण पक्ष में विशेषकर रवि, मंगल और शनिवार को सूर्यनाडी के प्रवाह काल में किए गए अस्थायी फलदायक कार्यों में सफलता मिलती है।
English Translation: One gets success in all he work of temporary nature or work pertaining to temporary results if they are performed during the flow of right nostril, specially on Sunday. Tuesday and Saturday in dark fornight.
प्रथमं वहते वायुः द्वितीयं च तथानलः।
तृतीयं वहते भूमिश्चतुर्थं वरुणो वहेत्।।71।।
अन्वयः प्रथम वायुः वहते द्वितीयं च तथानलः तृतीयं भूमिः वहते चतुर्थं वारुणो वहेत्।
भावार्थः यहाँ प्रत्येक नाड़ी के प्रवाह में पंच महाभूतों के उदय का क्रम बताया गया है, अर्थात् स्वर प्रवाह के प्रारम्भ में वायु तत्त्व का उदय होता है, तत्पश्चात् अग्नितत्त्व, फिर पृथ्वी तत्त्व, इसके बाद जल तत्त्व और अन्त में आकाश तत्त्व का उदय होता है।
English Translation: Here rising order of five tattvas has been described, i.e. in the beginning of flow of any nadi Vayu (Air) tattva rises, there after Agni (fire), then Prithivi tattva, after that rises Jala (water) tattva and at the last rises Akasha (ether) tattva.
सार्धद्विघटिके पंचक्रमेणैवोदयन्ति च।
क्रमादेकैकनाड्यां च तत्त्वानां पृथगुद्भवः।।72।।
अन्वयः श्लोक अन्वित क्रम में है। इसलिए इसके अन्वय की आवश्यकता नहीं है।
भावार्थः जैसा कि तिरसठवें श्लोक में आया है कि हर नाड़ी में स्वरों का प्रवाह ढाई घटी अर्थात् एक घंटे का होता है। इस ढाई घटी या एक घंटे के प्रवाह-काल में पाँचों तत्त्व पिछले श्लोक में बताए गए क्रम से उदित होते हैं। इन तत्त्वों का प्रत्येक नाड़ी में अलग-अलग अर्थात् चन्द्र नाड़ी और सूर्य नाड़ी दोनों में अलग-अलग किन्तु एक ही क्रम में तत्त्वों का उदय होता है।
English Translation: As it was described in the verse No. 63 that period of breath flow in each Nadi is two and Half Ghatis, i. e. one hour. During this period five tattvas rise in the order stated in previous verse. During the flow of breath in every Nadi these tattvas rise separately but in the same order.
अहोरात्रस्य मध्ये तु ज्ञेया द्वादश संक्रमाः।
वृष-कर्कट-कन्यालि-मृग-मीना निशाकरे।।73।।
अन्वयः अहोरात्र्यस्य मध्ये तु द्वादश सङ्क्रमाः ज्ञेयाः। (तेषु) निशाकरे वृष-कर्कट-कन्यालि-मृग-मीना (राशवः वसन्ते)
भावार्थः दिन और रात, इन चौबीस घंटों में बारह संक्रम अर्थात् राशियाँ होती हैं। इनमें वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियाँ चन्द्रनाडी में स्थित हैं।
English Translation: Twelve Rashis appear during 24 hours of day and night. Out of these twelve Taurus, Cancer, Virgo, Scorpio, Capricorn and Pisces are related to Chandra Nadi.
मेषसिंहौ च कुंभश्च तुला च मिथुनं धनुम्।
उदये दक्षिणे ज्ञेयः शुभाशुभविनिर्णयः।।74।।
अन्वयः मेषसिंहौ च कुम्भश्च तुला च मिथुनं धनुं दक्षिणे उदये शुभाशुभविनिर्णयः।
भावार्थः मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुम्भ राशियाँ सूर्य नाड़ी में स्थित हैं। शुभ और अशुभ कार्यां के निर्णय हेतु इनका विचार करना चाहिए।
English Translation: Remaining six Rashis- Aries, Gemini, Leo, Libra, Sagittarius and Aquarius are related to Surya Nadi. Thus, auspicious and inauspicious work can be decided in terms of Rashis accordingly.
भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअनमोल ख़ज़ाना!!
जवाब देंहटाएंभारतीय काव्य शास्त्र के बारे में अनेक जानकारी प्राप्त हुई।
जवाब देंहटाएंअत्यंत उपयोगी पोस्ट। आपका महती कार्य ब्लाग जगत और साहित्य जगत के लिए धरोहर है। आपका यह सार्थक प्रयास हमेशा स्मरण किया जाएगा।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंउपयोगी और सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं... chale chalo ... badhe chalo ... !!!
जवाब देंहटाएंगहन जानकारी से भरी बेहद ज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
जानकारी से लबरेज एक उपयोगी पोस्ट..बधाई
जवाब देंहटाएंजानकारी बहुत ही अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंgood work. mere gyan ko padhata hua blog
जवाब देंहटाएंआपका आलेख ज्ञान का अनमोल ख़ज़ाना है।
जवाब देंहटाएंwakai me apka yah lekh upayogi hai
जवाब देंहटाएंयह श्रमसाध्य कार्य आचार्यवर के वश की ही बात है. ये सब हमारी सास्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत है. इंटरनेट स्पेस में इसे लाकर राय जी इस विद्या को लगभग अमरत्व प्रदान कर रहे हैं. धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक और उपयोगी उस शृंखला को जारी रखिए!
जवाब देंहटाएंमैने बुकमार्क कर लिया है सुबह पडःाती हूँ। ये श्रिंखला मुझे बहुत अच्छी लगती है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमैने बुकमार्क कर लिया है सुबह पडःाती हूँ। ये श्रिंखला मुझे बहुत अच्छी लगती है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनोट करता जा रहा हूँ। यथासमय प्रयोग में लाना भी शुरु कर रहा हूँ। लाभ मिलना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपका आलेख ज्ञान का अनमोल ख़ज़ाना है।
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