ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सहरा में कोई फूल खिला कर तो देखिये,
दुश्मन से कभी हाथ मिला कर तो देखिये ।
काँधा लगा के रस्म अदा कर लिए बहुत,
अब अर्थियों का बोझ उठा कर तो देखिये।
शायद इसी बाज़ार में मिल जाए कहीं पर,
कीमत किसी वफ़ा की लगा कर तो देखिये ।
मंदिर की ना दरकार, ना मस्जिद की जरूरत,
पानी किसी प्यासे को पिला कर तो देखिये।
शायद बुलंद हिम्मतों में बात हो कोई,
पत्थर का ऐतबार हिलाकर तो देखिये।
ग़म का इलाज क्या पता ग़म का वजूद हो,
पल भर के लिए ग़म को भुला कर तो देखिये।
एक मशहूर शे'र हैः
जवाब देंहटाएं"दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजिए रिश्ता।
दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए।।"
कुछ इसी अंदाज़ में आपने भी दुश्मन से हाथ मिलाने की सलाह दी है। मगर मेरे मित्र चंदन का कहना हैः
"जब दिल ही नहीं मिले तो हाथ मिलाएं क्यूं
हमसे यह दिखावा हो नहीं सकता!"
गजल अच्छी लगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमंदिर की ना दरकार, ना मस्जिद की जरूरत,
जवाब देंहटाएंपानी किसी प्यासे को पीला कर तो देखिये।
वाह क्या बात है ... बेहतरीन ... लाजवाब !
सच है, कुछ तो नया करना ही होगा इस बर्फ को तोड़ने के लिये।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज जी ,
जवाब देंहटाएंआपने मेरी ग़ज़ल को अपने ब्लॉग पर स्थान देकर मुझे मेरी अभिव्यक्ति को पाठको के समक्ष मुखरित करने का सुअवसर प्रदान किया,इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद और आभार !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
नाउम्मीदी के दौर में आशा का उजास फ़ैलाती खूबसू्रत और सा्रगर्भित अभिव्यक्ति.आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
प्रकाश पर्व पर उम्मीद की किरण लिए एक अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंअच्छी अर्थपूर्ण गज़ल.
जवाब देंहटाएंगहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ... बेहतरीन गजल... लाजवाब !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,
जवाब देंहटाएंग़ज़ल को चर्चा मंच पर लेने के लिए धन्यवाद एवं आभार !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अपनी टिप्पणियों द्वारा मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए सभी पाठको एवं शुभचिंतकों का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
behtareen gajal ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंशायद बुलंद हिम्मतों में बात हो कोई,
जवाब देंहटाएंपत्थर का ऐतबार हिलाकर तो देखिये।
waah
vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer ke saath
वाह वाह वाह....
जवाब देंहटाएंसभी शेर लाजवाब...
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल !!!!
अच्छी लगी यह रचना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
शायद बुलंद हिम्मतों में बात हो कोई,
जवाब देंहटाएंपत्थर का ऐतबार हिलाकर तो देखिये।
बेहतरीन गज़ल्……………हर शेर एक से बढकर एक्।
मर्मज्ञ जी आपका कायल हूँ.. लेकिन मैं भी इस बात का विरोध करता हूँ कि जहाँ दिल न मिले वहाँ हाथ क्योंकर मिलाना... मुख और मुखौटे में फ़र्क तो होता ही है. वैसे शेर सब के सब लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल प्रस्तुत करने के लिए ज्ञानचन्द जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण गजल के लिए मर्मज्ञ जी को साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद एक शान्दार गज़ल पढने को मिला. शुभकामनायें...
मन को छु गयी.
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल। बेहतरीन॥
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ग़ज़ल..सुंदर और सामयिक शेर..सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल को आप सबका असीम प्यार मिला इसके लिए आभार प्रकट करने के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं !
जवाब देंहटाएंआप सबका स्नेह मुझे नई सोच के लिए प्रेरित करता है !
सभी पाठकों को कोटिशः धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
शायद बुलंद हिम्मतों में बात हो कोई,
जवाब देंहटाएंपत्थर का ऐतबार हिलाकर तो देखिये।
कौन कहता कि आसमां में सुराख नहीं होता.......
एक-एक शे'र मुक्ताहल और यह ग़ज़ल मानसरोवर हो गयी है ! मर्मज्ञ जी को धन्यवाद !!!
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ... लाजवाब शेर ...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंशायद बुलंद हिम्मतों में बात हो कोई,
जवाब देंहटाएंपत्थर का ऐतबार हिलाकर तो देखिये...
इसी ऐतबार और हौसले की जरुरत है !
वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है
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