सोमवार, 29 नवंबर 2010

गज़ल :: कुछ बढाई गयी कुछ घटाई गयी

ज्ञानचन्द मर्मज्ञ

कुछ  बढाई   गयी    कुछ   घटाई    गयी,

ज़िंदगी   हर   अदद    आज़माई     गयी।

फ़ेंक  दो   ये    किताबें   अंधेरों   की    हैं,

जिल्द उजली किरण   की   चढ़ाई   गयी।

टांग देते  थे  जिन   खूटियों  पर   गगन,

वो    पुरानी     दीवारें     गिराई     गयी।

जब भी  आँखों  से  आंसू  बहे  जान   लो,

मुस्कुराने   की   कीमत    चुकाई    गयी।

घेर   ली  रावणों   ने     अकेली    सिया,

और लक्ष्मण  की   रेखा   मिटाई   गयी।

यूँ  तो चिंगारियों  में  कोई  दम  न   था,

बिजलियों  की    अदाएं   दिखाई   गयी।

झील   में    डूबता    चाँद    देखा  गया,

और  तारों   पे   तोहमत   लगाई   गयी।

झूठ की इक गवाही को सच मान कर,

जाने   कितनी    सजाएं   सुनाई   गयीं।

देश की  हर  गली  में  भटकती  मिली,

वो  दुल्हन जो तिरंगे  को ब्याही गयी।

राम  की  मुश्किलों   में   हमेशा   यहाँ,

बेगुनाही   की    सीता    जलाई    गयी।

38 टिप्‍पणियां:

  1. जब भी आँखों से आंसू बहे जान लो,
    मुस्कुराने की कीमत चुकाई गयी।
    खुबसूरत अहसास , हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो

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  2. इस रचना की प्रशंसा को शब्द नहीं हैं। सरल और स्पष्ट, सीधे हृदयस्थल में उतर जाने वाली रचना।

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  3. हरेक शेर बेहतरीन है ... किसी एक को प्रशंसा नहीं कर सकता ...
    जिंदगी और समाज पर लिखी गई बेहतरीन ग़ज़ल है ...

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  4. सुन्दर रचना प्रस्तुति... आभार

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  5. सुनील जी,प्रवीन जी,इन्द्रनील जी,उदय जी और महेंद्र जी,
    प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदय से आभारी हूँ !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  6. बहुत ही बढ़िया गज़ल.
    बहुत पसंद आयी.
    इस बह्र में काफी दिन बाद गज़ल सुनी..

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  7. झूठ की इक गवाही को सच मान कर,
    जाने कितनी सजाएं सुनाई गयीं।

    हर शब्‍द बेहतरीन पंक्ति की ओर बढ़ता हुआ ...बेहतरीन रचना ।

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  8. क्या कहूँ इस रचना के लिये……………मौन कर दिया।
    आज के सच को बेहद सरलता से प्रतिपादित कर दिया।

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  9. प्रतुतिकरण सटीक है साहब, जो नतीजा भी जोड़ जाए तो और भी बेहतर. व्यक्तिगत रूप से हमारा मानना है की जब नतीजा न सूझे तो नजरिया जितना हो सके आशावादी रखना चाहिए. बाकी, जैसे हमको अपनी बात कहने का अधिकार है, वैसे ही आपको भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है...

    लिखते रहिये ....

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  10. सरल शब्दों में कही गई सीधी बात हृदय में उतरती सी है।

    मर्मज्ञ जी को अच्छी गजल के लिए बधाई।

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  11. यथार्थ को प्रस्तुत करती हुई गजलहृदय को झकझोरती है।

    शुभकामनाएं।

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  12. सुन्दर और भावप्रधान गजल के लिए बधाई।

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  13. मर्मज्ञ जी बहुत अच्छी गजल है। सच ऐसा ही देखने को मिलता है चारो तरफ।

    आभार।

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  14. सुन्दर और भावप्रधान गजल के लिए बधाई।

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  15. देश की हर गली में भटकती मिली,

    वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गयी...

    बहुत ख़ूबसूरत भावपूर्ण गज़ल. हरेक शेर लाज़वाब ..आभार

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  16. राजीव जी,सदा जी,वंदना जी,मजाल जी,हरीश जी,परशुराम जी,रत्ना जी,नोटी बॉय,अंकुर जी ,
    आप सबके यशश्वी विचार मेरी प्रेरणा को नई उर्जा प्रदान कर रहे हैं!
    आप सभी का अति कृतज्ञता पूर्वक आभार प्रकट करता हूँ !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  17. कुछ बढाई गयी कुछ घटाई गयी,

    ज़िंदगी हर अदद आज़माई गयी।

    फ़ेंक दो ये किताबें अंधेरों की हैं,

    जिल्द उजली किरण की चढ़ाई गयी।
    बेहतरीन ग़ज़ल
    ahleislam.blogspot.com

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  18. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
    को दिया गया है .
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

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  19. लफ्जों के तरन्नुम से जरा देर को सही,
    हो फिर से मुलाक़ात कोई छेडिये ग़ज़ल !
    ख्वाइश हो ख़ामोशी हो ख्यालात का ख़म हो,
    खुशियों की हो बरसात कोई छेडिये ग़ज़ल !!

    ज्ञानजी की कलम से निकली यह एक क्लासिक ग़ज़ल है. छोटे बहर में दुरुस्त रदीफ़-ओ-काफिया.... छोटे-छोटे शब्दों में बड़े मायने.... लाजवाब अशआर.... दिल बाग़-बाग़ हो गया पढ़ कर. जहां तक भाव पक्ष की बात है, ज्ञानचंद जी सच में मर्मज्ञ हैं. वे मर्म की बातों को इतनी कोमलता से उधेर कर रख देते हैं मानो फूल की पंखुरियों से बारूद का सीना चीर दीया हो.... "जब भी आँखों से आंसू बहे जान लो, मुस्कुराने की कीमत चुकाई गयी।" आपको बता दूँ कि ज्ञानजी के श्रीमुख से यह ग़ज़ल मैं ने पहले भी सुनी थी और उपर्युक्त शे'र इतना पसंद आया था कि कई महीनो तक मेरे व्यक्तिगत जी-मेल आईडी के स्टेटस मेसेज में रहा था.... ! मर्मज्ञ जी, आपको धन्यवाद देना सूर्या को दीया दिखाने जैसा होगा..... !

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  20. देश की हर गली में भटकती मिली,

    वो दुल्हन जो तिरंगे को ब्याही गयी।

    राम की मुश्किलों में हमेशा यहाँ,

    बेगुनाही की सीता जलाई गयी
    दिल को झकझोर देने वाली पंक्तियाँ.

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  21. "

    फ़ेंक दो ये किताबें अंधेरों की हैं,

    जिल्द उजली किरण की चढ़ाई गयी।"... अन्धोरों को चीडकर उजाला लाती ग़ज़ल उत्कृष्ट है.. बहुत सुन्दर

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  22. बेहतरीन ग़ज़ल
    इस ग़ज़ल की तारीफ़ पहले ही कर चुका हूँ
    मेरी तारीफ़ अभी भी वहीँ कायम है
    जब भी, जहाँ भी यह ग़ज़ल नजर आएगी, मैं अपनी राय बदलूँगा नहीं .. वादा है :)

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  23. किस शेर की तारीफ़ की जाए,किस शिल्प की प्रशंसा करें,किस भाव के लिए वाह करें और कहाँ कहाँ दाद दें... एक मुकम्मल बाबहर गज़ल!
    मर्मज्ञ जी ग़ज़ल के मर्म तक पहुँच गए हैं!!

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  24. जब भी आँखों से आंसू बहे जान लो,

    मुस्कुराने की कीमत चुकाई गयी।

    बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल .....वाह

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  25. बेहतरीन ग़ज़ल, बेहतरीन शेर है

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  26. "देश की हर गली में भटकती मिली वह दुल्हन जो तिरंगे को व्याही गई"बहुत मर्म स्पर्शी भाव लिए पंक्ति |बधाई
    आशा

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  27. संगीता जी ,
    ग़ज़ल को चर्चा मंच पर स्थान देकर मुझे उत्साहित करने के लिए धन्यवाद और आभार !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  28. जब भी आँखों से आंसू बहे जान लो,

    मुस्कुराने की कीमत चुकाई गयी।

    Behatreen rachna !

    .

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  29. जब भी आँखों से बहे आंसूं मान लो , मुस्कुराने की कीमत चुकाई गयी...

    एक -एक पंक्ति दर्द की ताबीर है !

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  30. ​थोड़ा देर से, परंतु अच्छी रचना के लिए बधाई कुबूल करें।​​
    ​फ़ेंक दो ये किताबें अंधेरों की हैं,
    जिल्द उजली किरण की चढ़ाई गयी।

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