ग़ज़ल :: ये कैसै रखवाले देख
सलिल जी को आभार जिन्होंने इसे ग़ज़ल का रूप देने में हमारी मदद की!
ये कैसै रखवाले देख
मनोज कुमार
ये कैसे रखवाले देख
चेहरे सबके काले देख
उठती क्यों आवाज़ नहीं
मुँह पर सबके ताले देख.
मां की भाषा जो बोल रहा
घर से जाए निकाले देख.
कूड़े कचरे का यह ढेर
और शहर के नाले देख.
अमृत बाँटें जो जग में
पीते ज़हर के प्याले देख.
मेरे घर अंधियारा छोड़
अपने घर उजियाले देख.
कदम दो कदम चला नहीं
पाँव में पड़ गए छाले देख.
मुख में राम बगल में छूरी
ढंग ये नये निराले देख.
जो ‘मनोज’ तुमने ना देखा
आज कलम के हवाले देख.
मुख में राम बगल में छूरी
जवाब देंहटाएंढंग ये नये निराले देख.
उम्दा ग़ज़ल! बढिया लगा।
कदम दो कदम चला नहीं
जवाब देंहटाएंपाँव में पड़ गए छाले देख.
Katu satya !
.
ग़ज़ल का हर शेर हमारे वर्त्तमान समाज का आईना है! एक बेहतरीन ग़ज़ल!!
जवाब देंहटाएंसभी शेर बहुत गहरा अर्थ देते हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भावपूर्ण गजल के लिए आभार।
क्या बात कही है। बहुत सरल शब्दों में यथार्थ को प्रस्तुत करते हुए करारा व्यंग्य किया है। सरस गजल का रसास्वादन कराने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ दिखा ,अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंउठती क्यों आवाज़ नहीं
जवाब देंहटाएंमुँह पर सबके ताले देख.
मां की भाषा जो बोल रहा
घर से जाए निकाले देख.
अमृत बाँटें जो जग में
पीते ज़हर के प्याले देख.
मेरे घर अंधियारा छोड़
अपने घर उजियाले देख.
वाह वाह बहुत अच्छी गज़ल है और ऊपर वाले शेर तो बहुत अच्छे लगे। बधाई।
उठती क्यों आवाज़ नहीं
जवाब देंहटाएंमुँह पर सबके ताले देख.
कूड़े कचरे का यह ढेर
और शहर के नाले देख.
अमृत बाँटें जो जग में
पीते ज़हर के प्याले देख
बहुत खूबसूरती से आज की विसंगतियों को लिखा है ....
sarahneey abhivykti....
जवाब देंहटाएं.".Sahity samaj ka darpan hai " kahavat ko charitarth kartee rachana....
अमृत बाँटें जो जग में
जवाब देंहटाएंपीते ज़हर के प्याले देख.
मेरे घर अंधियारा छोड़
अपने घर उजियाले देख.
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! इस शानदार और लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाई!
वाह वाह! शानदार गज़ल्…………………आईना दिखा दिया।
जवाब देंहटाएंआलस्य का ध्वंस करती मारक पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव सजाये, मनोज जी
जवाब देंहटाएंअमृत बाँटें जो जग में
पीते ज़हर के प्याले देख.
saral sahaj sundar abhivyakti!
जवाब देंहटाएंये कैसे रखवाले देख
जवाब देंहटाएंचेहरे सबके काले देख
उठती क्यों आवाज़ नहीं
मुँह पर सबके ताले देख.
मां की भाषा जो बोल रहा
घर से जाए निकाले देख.
Kya kahun? Harek alfaaz apnee jagah mukammal hai!
मुख में राम बगल में छूरी
जवाब देंहटाएंढंग ये नये निराले देख.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ....।
khoobsurat, halaaton ka sahi mulyankan...
जवाब देंहटाएं-
Ravinder Punj
छोटे बहर में बहुत अच्छी ग़ज़ल.. हर शेर जीवन को आइना दिखाती हुई .. सादर !
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
@ संगीता जी
जवाब देंहटाएंमंच पर हमारी रचना को लाकर आपने सम्मान बढाया हमारा। आभार।
मनोज जी, सबके चेहरों का नकाब उतार दिया आपने। हार्दिक शुभकामनाऍं।
जवाब देंहटाएं---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
मनोज जी आपकी कविताओं और आलेखों की तरह ही आपके ग़ज़ल में आम आदमी का स्वर है.. समाज के बीच से उठ कर आयी यह ग़ज़ल लाजवाब है.. सलिल जी को भी धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंYatharth se vyavahar ke vichalan par achchha vyangya. Abhar.
जवाब देंहटाएंयह हे रखवाले देश के जो खुद ही इसे खा रहे हे, आज के हालत पर बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंछोटी बहर में लिखी कमाल क़ि ग़ज़ल .. हर शेर आइना है आज क़ि सोच का ... समाज क़ि विसंतियों का ... बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंगहन संवेदना से आप्लावित, जीवन की कटु सच्चाईयों से रूबरू कराती, मर्मस्पर्शी सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंआभार.
सादर डोरोथी.
मेरे घर अंधियारा छोड़
जवाब देंहटाएंअपने घर उजियाले देख
यही तो कोई नहीं करता आजकल .सुन्दर कविता.
बेहद सटीक रचाना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
क्या भाव है,क्या प्रवाह है और क्या शब्दों की कशीदाकारी...
जवाब देंहटाएंओह...लाजवाब !!!!
विसंगतियों को ऐसे उकेरा है आपने कि शब्द मन तक पहुँच इसे झकझोर जाने में समर्थ हो गए...
आनंद आ गया पढ़कर....
आभार आपका इस सुन्दर रचना को पढवाने के लिए...
बहुत अच्छे शेर .शुभकामनायें ..
जवाब देंहटाएंइस शानदार गज़ल की प्रस्तुति के लिये मनोज सर आपको बधाई. हर पन्क्तिंयां लाजावाब.
जवाब देंहटाएंऐसी ही प्रस्तुति की आपसे और अपेछा रहेगी.
डर लगता है अपने भीतर झांकते हुए।
जवाब देंहटाएंहोती भीतर आग जो मेरे
जवाब देंहटाएंलिया न होता अब तक देख?
बहुत खूबसूरती से हालातों पर प्रहार किया गया है.
जवाब देंहटाएंगज़ल अपनी उम्दाय्गी से चमक रही है.
वर्तमान विद्रूपताओं को रेखांकित करती हुई अच्छी ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंमनोज जी ,बधाई हो!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मुख में राम बगल में छूरी
जवाब देंहटाएंढंग ये नये निराले देख.
ग़ज़ल का प्रवाह और प्रभाव दोनों मनोहारी है ! धन्यवाद !! अस्वस्थता के कारण पढने में विलम्ब हो गया.........
bahut sundar prastuti ....
जवाब देंहटाएंउठती क्यों आवाज़ नहीं
जवाब देंहटाएंमुँह पर सबके ताले देख...
वर्त्तमान व्यवस्था पर बहुत ही सटीक टिप्पणी...
मुख में राम बगल में छूरी
जवाब देंहटाएंढंग ये नये निराले देख.
bahoot sahi vyag mara hai aap ne.....ati uttam.
बहुत शानदार!
जवाब देंहटाएंये कैसे रखवाले देख
जवाब देंहटाएंचेहरे सबके काले देख
उठती क्यों आवाज़ नहीं
मुँह पर सबके ताले देख.
- वाह,अस्लियत सामने रख दी आपने !
बहुत अच्छी गज़ल .. सामयिक
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