भारतीय काव्यशास्त्र - काव्य के भेद - ध्वनि काव्य
आचार्य परशुराम राय
प्रारम्भ में आचार्य मम्मट ने काव्य के तीन भेद - उत्तम, मध्यम और अधम बताए थे। उत्तम शब्द ध्वनि और काव्य को कहा गया है जिसका स्वरूप हम अब तक देख चुके हैं। इन तीनों मुख्य भेदों अर्थात् उत्तम काव्य - ध्वनि काव्य, मध्यम काव्य - गुणीभूत - व्यंग्य काव्य और अधम - चित्रकाव्यों के अन्य अवान्तर भेद भी हैं। इस क्रम में अब हम ध्वनि काव्य के अवान्तर भेदोपभेद की चर्चा करेंगे। सर्वप्रथम अवान्तर से ध्वनि काव्य के दो भेद किए गए हैं - अविवक्षित वाच्य ध्वनि और विवक्षितवाच्य ध्वनि।
अविवक्षित वाच्य ध्वनि का ही दूसरा नाम लक्षणामूलक ध्वनि है। लक्षणामूलक ध्वनि में वाच्य अर्थात् शब्दार्थ विवक्षित नहीं होता अर्थात् शब्दार्थ (अभिधार्थ) अभिप्राय को अभिव्यक्त नहीं कर पाता है। बल्कि उसके लिए दूसरा अर्थ लिया जाता है। जैसे:- 'उसका चेहरा ओज से खिला है' में हम 'खिला' का अर्थ 'प्रसन्न' लेते हैं। जबकि 'खिलना' का अर्थ 'प्रसन्न होना' नहीं होता। अतएव जहाँ वाच्य विवक्षित नहीं होता, उसे अविवक्षित वाच्य ध्वनि या लक्षणामूलक ध्वनि कहते हैं। अविवक्षित वाच्य ध्वनि के पुन: दो भेद किए गए हैं - अर्थान्तर संक्रमित वाच्य ध्वनि और अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य ध्वनि।
अर्थान्तन्तर संक्रमित वाच्य ध्वनि - जहाँ वाच्यार्थ का सीधा अन्वय नहीं हो पाता वहाँ शब्द अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर अपने से सम्बन्धित किसी विशिष्ट अर्थ का बोध कराता है। अर्थात् जब वाच्यार्थ अर्थान्तर (दूसरे अर्थ) में संक्रमित हो जाये उसे अर्थान्तर संक्रमित वाच्य ध्वनि कहेंगे। जैसे:-
त्वामस्मि वच्यि विदुषां समवायोऽच तिष्ठति।
आत्मीयां मतिमास्थाय स्थितिमत्र विधेहि तत्॥
यहाँ एक विद्वान व्यक्ति अपने शिष्य को सचेत करते हुए कहता है:-
'मैं तुम्हें बताता हूँ कि यहाँ विद्वानों का समुदाय है। अतएव अपनी बुद्धि को ठीक करके रखना।'
उक्त उदाहरण में देखने की बात यह है कि 'मैं तुम्हें बताता हूँ' इन पदो को बिना प्रयोग किए भी बात कही जा सकती थी। यहाँ वक्ता और बोद्धा दोनों आमने-सामने बैठे हैं। अतएव इतना कहना पर्याप्त होता - 'यहाँ विद्वानों का समाज है। जरा संभल कर रहना।' पर यहाँ प्रयुक्त 'तुम्हें' शब्द उस शिष्य को अन्य उपस्थित शिष्यों से अलग करता है और उसकी विशेषता को सूचित करता है। वह विशेषता शिष्य के लिए विशेष कृपापात्रता भी हो सकती है और उसकी अनुभवहीनता भी हो सकती है। 'मैं' शब्द से भी उसी प्रकार वक्ता की विशेष हित-भावना और अनुभवशीलता आदि अभिव्यक्त होता है। इसी प्रकार 'बताता हूँ' क्रिया पद से सामान्य सूचना देने से अलग अर्थ 'उपदेश देता हूँ' व्यक्त हो रहा है। अतएव यहाँ अर्थान्तर संक्रमित वाच्य ध्वनि होगी।
जहाँ पर वाच्यार्थ को तिरस्कृत कर एकदम विपरीत अर्थ लिया जाए अर्थात् विपरीत सम्बन्ध मूलक लक्षणा से उन शब्दों का एकदम उल्टा अर्थ लिया जाएं, वहाँ अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य ध्वनि होती है। जैसे:-
उपकृतं बहु तत्र किमुच्यते सुजनता प्रथिता भवतापरम्।
विदधदीयदृशमेव सदा सखे सुखित मास्स्व तत: शरदां शतम्।
यहाँ एक व्यक्ति का अपने मित्र के प्रति कहा गया वाक्य है जिसके साथ मित्र ने धोखा किया है, उसका अपकार किया है, ऐसे मित्र के प्रति वह कहता है कि -
हे मित्र, मैं आपकी कहाँ तक प्रशंसा करूं, आपने मेरा बहुत उपकार किया है। ऐसा करते हुए आप सैकड़ों वर्ष तक सुखपूर्वक इस संसार में रहें।
यहाँ विपरीत लक्षणा से व्यक्ति अपने मित्र से कहना चाहता है कि तुमने मेरे साथ धोखा किया है इतना बड़ा अपकार किया है कि उसकी जितनी निंदा की जाए, कम होगी। तुम्हारे जैसे लोग संसार को जितना जल्दी छोड़ दे उतना ही अच्छा होगा। यहाँ यही व्यंग्य है और यहाँ अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य ध्वनि है।
आपके प्रयास अत्यंत सराहनीय हैं।
जवाब देंहटाएंआपका आलेख अत्यंत ज्ञानवर्धक और उपयोगी है।
जवाब देंहटाएंसाहित्य के क्षेत्र में आपके प्रयास अत्यंत सराहनीय हैं।
जवाब देंहटाएंआपका आलेख अत्यंत उपयोगी और ज्ञानवर्धक है।
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र की यह शृंखला साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। अथक प्रयास के लिए आदरणीय राय जी को साधुवाद।
जवाब देंहटाएंकाव्य का बेहतरीन विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र पर अच्छा पोस्ट.साधुवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन विश्लेषण राय जी। ध्वनि काव्य के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त हुई।
जवाब देंहटाएंआलेख अत्यंत उपयोगी,बेहतरीन विश्लेषण और ज्ञानवर्धक,काव्यशास्त्र की यह शृंखला साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। अथक प्रयास के लिए आदरणीय राय जी को साधुवाद।
जवाब देंहटाएंBahut acha karya kar rahe hai rai ji, aapko dhanyawaad.
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र को समझने का अच्छा मंच है यह , मुझे दुबारा पढने को मिल जाती है सारी सामग्री ..अपनी श्रंखला को जारी रखिये ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं... prabhaavashaalee post !!!
जवाब देंहटाएं@वन्दना: चर्चामंच पर इसको प्रस्तुत करने के लिए आपको धन्यवाद्.
जवाब देंहटाएंअब काव्य के लक्षण भी बताईये ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी है। उदाहरणों के कारण समझना आसान हुआ।
जवाब देंहटाएंजानकारी बहुत ही अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही सराहनीय प्रयास है। लाभदायक जानकारी।
जवाब देंहटाएं@वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर सम्मान देने के लिए आपका आभारी हूँ।
अपने सभी पाठकों को काव्यशास्त्र शृंखला पसंद करने तथा अपनी हार्दिक प्रतिक्रियायों के माध्यम से प्रोत्साहित करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख!
जवाब देंहटाएंकतिपय व्यवसायिकता प्रतिबद्धताएं, कभी-कभी अंतर्जालीय संशाधनो की अनुपलब्धता आदि कारणों से नियमित प्रतिक्रिया नहीं दे पता हूँ... किन्तु इतना ही कहूँगा कि यह श्रृंखला मेरे लिए रेफ्रेषर कोर्स जैसी है. हालांकि आज के विषय को आचार्य जी ने बड़े शार्ट में निपटा दिया है... शायद ब्लॉग-जगत की चंचलता के कारण. हमें अगले अंकों की प्रतीक्षा रहेगी !! धन्यवाद !!!!
जवाब देंहटाएंsundar...
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