-- सत्येन्द्र झा
कार्यालय के सभी कर्मचारी-अधिकारी विलम्ब से कार्यालय आते थे। लोगों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। एक दिन जब आक्रोश बहुत बढ़ गया तो लोगों ने उस कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी से भेंट करने का फ़ैसला किया, “श्रीमान, आपके कार्यालय में आपको छोड़ कर कोई भी कर्मचारी समय पर नहीं आता है।”
तुरत आदेश निर्गत हुआ, “समय का पालन कठोरता से किया जाय।”
अगले दिन सभी अधिकारी-कर्मचारी समय पर कार्यालय में उपस्थित थे किन्तु वरिष्ठ अधिकारी की जगह खाली थी। वे शायद अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे।
(मूल कथा मैथिली में “अहीं के कहै छी में संकलित “सीढ़ी” से हिन्दी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित)
बहुत सटीक पोस्ट |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
यही होता है ... सटीक।
जवाब देंहटाएंक्या बात है, एक अच्छा पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबताईये, आदेश तो लेना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंकार्यालय जरूर सरकारी रहा होगा। वहीं सारे नियम कानून दूसरों के लिए होते हैं।
जवाब देंहटाएंकहानी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंअसल में ऐसा ही होता है।
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य है, व्यवस्था पर!!
जवाब देंहटाएंयही व्यवस्था की सच्चाई है।
जवाब देंहटाएंव्यवस्था पर अच्छा व्यंग्य किया है।
जवाब देंहटाएंआभार।
सटीक व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंअब खुद के लिए भी तो आदेश चाहिए ...सटीक व्यंग
जवाब देंहटाएंहमारे दफ्तर में आज ऐसा ही हुआ... सटीक लघुकथा..
जवाब देंहटाएं... bahut badhiyaa !!!
जवाब देंहटाएंवाह.... ! सतसैय्या के दोहरे और नाविक के तीर ! देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर !! डपोरशंखी व्यवस्था की पोल खोलती सटीक रचना !! धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंअधिकतर ऐसा ही होता है! सीख देने वालों की कमी नहीं है मगर उस पर खुद अमल करने वाले बहुत ही कम लोग हैं!
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सटीक व्यंग। बधाई।
जवाब देंहटाएंअरे तो...आदेश तो लेना ही पड़ेगा न :) सटीक व्यंग.
जवाब देंहटाएंआज यही तो हो रहा है।
जवाब देंहटाएंसही बात है जब तक आदेश न मिले काम कैसे हो :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
अच्छा व्यंग किया है
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में एक बड़ी बात
dabirnews.blogspot.com
यहीं तो हिन्दुस्तान मार खा गया ना भैया
जवाब देंहटाएंbhai yahi kalyug hai.
जवाब देंहटाएंवाह !!!!
जवाब देंहटाएंथोड़े में कितना कुछ कह दिया इस कथा ने...
360 डिग्री!!
जवाब देंहटाएंkahanii acChee lagee.
जवाब देंहटाएंआगे क्या हुआ? कर्मचारियों ने अफसर की चुटकी ली कि नहीं?
जवाब देंहटाएंआगे क्या हुकुम है मेरे आका?
जवाब देंहटाएंसभी कार्यालयों में यही तो हो रहा है!
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
यह लघुकथा दिल पर असर करती है।
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