सोमवार, 8 नवंबर 2010

कविता :: उद्घोष

उद्घोष

- बीना अवस्थी

शक्ति का आह्वान कर अब क्रान्ति को आवाज दे।

हिल उठे दिग्गज धरा सब तू छेड़ ऐसा राग दे।

 

रूप नायक के लिखे ग्रन्थ सारे नष्ट कर दे,

विरह की वो अश्रुगाथा महाउदधि को भेंट दे दे,

द्वेष के फैले तिमिर में प्रीति के दीपक जला दे,

अज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,

आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।

हिल उठे.................................................

 

काम व अभिसार से उपवन सजे न आज कोई,

संदेश लेकर आ न पाये शुक, ना ही हंस कोई,

साहित्य का नूतन सृजन कर उत्साह की मदिरा पिला,

झूम जाये तन उमंग से कवित्वमय आसव पिला,

मुक्ति के कुछ मंत्र को विश्व में फिर से जगा दे।

हिल उठे....................................

 

गीत की झंकार अब तो शस्त्र की टंकार बन जा,

प्रीति के आवेग से कम्पित हृदय अंगार बन जा,

स्फूर्ति से मचलें भुजायें रोम-रोम उत्थान बोले,

उल्लास से पूरित नयन आवेग का निर्झर संजो ले,

बुलवा ले शंकर को धरा पे, आज फिर तांडव करा दे।

हिल उठे.................................................

 

लेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे,

कंस के इस राज्य में तू कृष्ण का जयनाद कर दे,

शान्ति की माला नहीं अब रोष से हुंकार भर दे,

रक्त में चैतन्य भरकर अब प्रलय की बात कर दे।

भारती को साथ लेकर आज तो इस राह चल दे।

हिल उठे................................................

37 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर। उद्घोष के स्वर झंकृत कर रहे है अभी तक।

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  2. द्वेष के फैले तिमिर में प्रीति के दीपक जला दे,

    अज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,

    आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।
    काफी प्रेरक रही आपकी प्रस्तुति ...शुभकामनायें

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  3. सुन्दर प्रेरक प्रस्तुती। धन्यवाद।

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  4. 6.5/10

    अज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,
    आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।

    रचना का ओजस्वी स्वर प्रेरणादायक है.
    यह प्रभावपूर्ण कविता मंच पर पढ़े जाने योग्य है.

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति!
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  6. सुंदर और ओज से भरी प्रेरक रचना।

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  7. गांडीव की टंकार सा उद्दघोष .... ओज पूर्ण कविता ......

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  8. वाह ... क्या शानदार प्रस्तुति है ...

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. गीत की झंकार अब तो शस्त्र की टंकार बन जा,
    प्रीति के आवेग से कम्पित हृदय अंगार बन जा ...

    ओज पूर्ण ... जोश और उमंग का संचार करती रचना ... बाजुओं को हिलाने ,इ ताकत राखित है ये रचना ... बहुत ही लाजवाब ...

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  12. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  13. प्रेरक और उत्साह का संचार करने वाली पंक्तियां...धन्यवाद।

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  14. बहत ही प्रेरणादायक प्रस्तुति.
    आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  15. बहुत ही सुन्दर ओजपूर्ण कविता.रग रग में उत्साह जगाती हुई.

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  16. प्रीति के आवेग से कम्पित हृदय अंगार बन जा ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  17. लेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे,

    कंस के इस राज्य में तू कृष्ण का जयनाद कर दे,

    शान्ति की माला नहीं अब रोष से हुंकार भर दे,

    रक्त में चैतन्य भरकर अब प्रलय की बात कर दे।

    भारती को साथ लेकर आज तो इस राह चल दे।
    ..... सुन्दर ओजमयी प्रेरक प्रस्तुती। धन्यवाद।

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  18. "लेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे, ..."

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना .... आभार

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  19. वीर रस का सुंदर वर्णन .... ओज से लबालब...

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  20. लेखनी गाण्डीव बन अन्याय का संहार कर दे,

    कंस के इस राज्य में तू कृष्ण का जयनाद कर दे,

    शान्ति की माला नहीं अब रोष से हुंकार भर दे,

    रक्त में चैतन्य भरकर अब प्रलय की बात कर दे।

    भारती को साथ लेकर आज तो इस राह चल दे।

    हिल उठे....................
    --
    यह गर्जना और वर्जना रचना बहुत ही सटीक है!
    आज के परिवेश में इसका महती महत्व है!

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  21. बड़ी ही ओजमयी कविता है....जोश से भर देनेवाली
    ओजपूर्ण अभिव्यक्ति

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  22. मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
    http://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

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  23. बीना जी सरल, सहज और कोमल व्यक्तित्व वाली एक संवेदनशील रचनाकार हैं। उनकी वाणी मृदु है। उनके व्यक्तित्व के विपरीत एक ओजस्वी गीत किसी आश्चर्य से कम नहीं। सुन्दर गीत के लिए बीना जी को आभार।

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  24. सुन्दर प्रेरक प्रस्तुती। धन्यवाद।

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  25. बहुत गहरी सोच और शब्द चयन तो कमाल का है. बेमिसाल प्रस्तुति.

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  26. काम व अभिसार से उपवन सजे न आज कोई,
    संदेश लेकर आ न पाये शुक, ना ही हंस कोई,
    साहित्य का नूतन सृजन कर उत्साह की मदिरा पिला,
    झूम जाये तन उमंग से कवित्वमय आसव पिला,
    मुक्ति के कुछ मंत्र को विश्व में फिर से जगा दे।
    हिल उठे....................

    एक से बेहतर एक शब्द व्यंजना का इस से बेहतर उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा.

    बहुत बहुत सुंदर सशक्त लेखन दर्शाती बढ़िया रचना.

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