सोमवार, 13 दिसंबर 2010

कविता :: दु:ख

कविता

दु:ख

श्री अनिल प्रसाद श्रीवास्तव

श्री अनिल प्रसाद श्रीवास्तव एक सिविल इंजीनियर हैं। लेकिन उनका हृदय संवेदनशील है। जीवन की कठिन विसंगतियों का उन्होंने बहुत नजदीक से सामना किया है। उनकी कविताएं कल्पना लोक की उड़ान भर नहीं हैं बल्कि वे जीवन के कठोर यथार्थ से अनुप्राणित हैं और बड़ी ही सहजता के साथ सरल भाषा में अभिव्यक्त होती हैं। सम्प्रति श्री अनिल प्रसाद श्रीवास्तव आयुध निर्माणी, दमदम में कार्यशाला प्रबंधक पद पर कार्यरत हैं।


दुख के आने का

दुख के जाने का

दुख के आकर न जाने का

कोई नियम न है, न था, न होगा।

 

नियम बनाया गया

दुख के बाद सुख आएगा

इसके पीछे क्या था

थोड़ा अनुभव

ज्यादा आशावादिता

उससे भी कहीं ज्यादा

दुखी को यह बताकर

लुभाने की लालसा

क्योंकि दुखी हमेशा

साधन विहीन मरणासन्न नहीं होता

दुखी सब कुछ हार जाता है

 

दुख और सुख सर्वथा भिन्न नहीं हैं

साम्य रखते हैं कई

दुख में हमारे अपने दूर होते हैं

सुख में हम अपनों से दूरी बनाते हैं

दुख में दुख के बढ़ने का

सुख में सुख के घटने का

डर हमेशा घेरे रहता है,

कोई दुख से पागल होता है

तो किसी का सुख से सिर फिर जाता है,

अपने सुख का पता नहीं लगता

अपना दुख बहुत नजर आता है,

दुख में आँख खुलती है

सुख में आँख पर परदा पड़ जाता है,

दुख अपना हो तो दुख

दूसरे का हो तो सुख होता है

सुख अपना हो तो सुख

दूसरों का हो तो दुख देता है।

 

ज्यादा दुख और ज्यादा सुख -

पेट की नजर में एक हैं

एक में खाने की सुधि नहीं

दूसरे में खाने का स्वाद नहीं

नौजवान यह सोचकर डरता है

एक दिन यह सुन्दर संसार छूट जाएगा।

पर मौत अगर बिना बुलाए न आए

तो अन्तहीन बुढ़ापे का दर्द

सबसे आत्महत्या कराएगा

सुना है दिमाग जिन्दा रहता है

मरने के आधे घंटे बाद तक

उस दौरान हम क्या करेंगे

मरने का शोक यानि

और जीने की आस

मगर क्यों?

आगे भी तो नया जीवन है ...............

****

44 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के सही संदर्भों को उदघाटित करती यह कविता अच्छी लगी। सादर--

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  2. सुख और दुख के माध्यम से सुंदर सृजन अच्छी लगी कविता .

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  3. सुख और दुःख को परिभषित कराती सुन्दर कविता|

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  4. दुःख संवेदनशीलता का परिचय है.. होना चाहिए...

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  5. सुख और दुख की अनुभूति कुछ इसी तरह की होती है सामान्य जन के जीवन में। बहुत सरल भाषा में यथार्थ को अभिव्यक्त किया है कवि ने।

    इस कविता के माध्यम से अनिल जी से परिचय प्रसन्नता हुई। आशा है उनकी रचनाएं आगे भी पढ़ने को मिलती रहेंगी।

    आभार,

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  6. संशोधन -

    कृपया 'परिचय पाकर' पढ़ें।

    टंकण त्रुटि के लिए क्षमा करें।

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  7. सुख और दुख की परिभाषा यथार्थ के धरातल पर सही साबित होती है। साधुवाद।

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  8. बिलकुल सही अभिव्यक्त किया है। ज्यादातर लोग अपने सुख को पहचान ही नहीं पाते है और दूसरों के सुख को देख कर दुख पाले रहते हैँ।

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  9. बहुत ही खूबसूरत कविता है श्रीवास्तव जी की ... सुख और दुःख का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया है उन्होंने ...

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  10. कविता मैं दुःख और सुख के दो किनारों के बीच बहती हुई जीवन के यथार्थ की नदी प्रवाहित हो रही है !
    अच्छी प्रस्तुति !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  11. Bahut hi behtarin kavita.sukh aur dukh ke baare me sach kaha hai anil ji ne . aabhar

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  12. आगे भी तो नया जीवन है ..............

    सबसे आत्महत्या कराएगा

    सुना है दिमाग जिन्दा रहता है

    मरने के आधे घंटे बाद तक

    उस दौरान हम क्या करेंगे

    मरने का शोक यानि

    और जीने की आस

    मगर क्यों?
    आगे भी तो नया जीवन है ..............

    गहन अभिव्यक्ति ......

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  13. 5.5/10

    जीवन-सार समझाती सुन्दर प्रवचन-रुपी कविता

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  14. व्याख्यात्मक हो जाने के कारण इसमें काव्यगुण का ह्रास हो गया है. सांकेतिकता और संक्षिप्ति कविता के गुण में वृद्धि करेंगी .यह मेरा विचार है -किसी के लिए बाध्यता नहीं .

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    1. प्रतिभाजी आपके सुझाव को मैंने मन में रखा है पर व्याख्यात्मकता जैसे मेरी शैली बन गयी हो . मुझे हमेशा लगता है की कही मेरी बात अधूरी तो नहीं रह गयी . पर मैं मानता हु की अगर काव्य लेखन करना है तो सांकेतिकता और संक्षेपण सीखना ही होगा . बहुत बहुत धन्यवाद . मैंने हाल में ही अपने ब्लॉग में शेक्सपीयर की कविताओं का हिंदी काव्य रूपांतरण डाला है. उसपर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रया प्रार्थित है .

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  15. अच्छी रचना. धन्यवाद. मैं अनिल जी का इस मंच पर हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ !!

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  16. जीवन के यथार्थ को सुख दुख के माध्यम से लिख दिया है ... बहुत शशक्त रचना ....

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  17. हीरा जनम अमोल था,कौड़ी बदले जाए.........

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  18. जीवन के सत्य को सुख दुख के माध्यम से कितनी खूबसूरती से परिभाषित किया है और जीने का मर्म भी समझा दिया…………बेहद उम्दा और प्रशंसनीय रचना।

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  19. जिन्दगी के रंग पर आप सभी को आलेख सुखी कौन देखने के लिये भी मैं आमंत्रित करना चाह रहा हूँ.
    http://jindagikerang.blogspot.com/

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  20. पूरी जिंदगी समझा गई यह कविता

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  21. आदमी का 75% दुःख दूसरों से ईर्ष्या के कारण होता है यानी दुखों से इन्सान 75% छुटकारा पा सकता है यदि वो इतनी छोटी सी बात समझ जाए तो. मेरी ग़ज़ल के कुछ शेर:-

    क्या बताएं दिख रहा क्यों आदमी हरदम दुखी,
    ग़ैर के सुख से दुखी है,अपने दुःख से कम दुखी.
    बाहलफ़ गीता पे रखकर हाथ कहता हूँ 'कुँवर'
    जब कभी आँखों ने देखा तुम दुखी तो हम दुखी.

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  22. मनोज जी

    अनिल जी की इस कविता को प्रस्तुत करने के लिए आभार. बहुत सही विश्लेषण किया है उन्होंने सुख और दुःख का. काबिले तारीफ लेखन.....
    .
    मेरे ब्लॉग सृजन_ शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "

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  23. सुख और दुख का संबंध मन से है और मन भला कब पकड़ में आता है! ज्ञानी लोग इसीलिए स्थितप्रज्ञता की बात करते हैं जहां सुख और दुख की अनुभूति शून्य हो जाती है।

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  24. सुख दुख का अहसास करवाती एक बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद

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  25. गम्भीर दर्शन व्यक्त करती कविता।

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  26. जिंदगी के कई शेड्स इस कविता में ऐसी काव्‍यभाषा में संभव हुए हैं, जो आज लगभग विरल हो चुकी है। विवाद से परे भी यह कहना उचित होगा कि आप आज के समय का समर्थ कवि हैं ।

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  27. main shayad jitni tareef karungi is rachna ki kam hi hogi...pura sukh dukh ka vrataant sunate hue jivan darshan kara diye is rachna ne aur sab baaten ek dam sach...kuch aur likhne ko prerit karti hui prabhaavshali rachna.

    aabhar ise ham tak pahuchane ke liye.

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  28. सुख के सब साथी , दुःख का न कोय।
    अनिल जी से परिचय कराने के लिए आभार।

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  29. दुख और सुख सर्वथा भिन्न नहीं हैं

    साम्य रखते हैं कई

    दुख में हमारे अपने दूर होते हैं

    सुख में हम अपनों से दूरी बनाते हैं

    दुःख और सुख का बहुत ही सार्थक विवेचन...बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  30. क्या बात कही है..ओह !!!

    अनुभव का निचोड़ रख दिया गया है रचना में..एकदम सत्य कहा है !!!

    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...

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  31. बिलकुल व्यवहारिक बातें बताती कविता -सत्य वर्णन कर रही है.सुख -दुःख तो कुँए के रहट की तरह हैं :-एक आता है ,दूसरा जाता है.मेजर जर्नल (रिटायर्ड ) पी .दत्ता सा :ने वृद्ध जन समारोह में आगरा में २००५ में यह शेर सुनाया था -
    सुख ने कहा दुःख से जाते -जाते
    जब मैं नहीं रहा ,तुम भी नहीं रहोगे.
    अतः दुःख से निराश नहीं होना चाहिए,दूसरों के दुःख अगर कम कर सकें तो करें वर्ना मजाक नहीं उड़ाना चाहिए.

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  32. dukh me dukh badhne ka ,sukh me sukh ghatne ka -bhay.....shashvat satya ko abhivyakt karti kavita .avinash ji v aapko bahut -bahut shubhkamnaye .

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  33. बहुत ही खूबसूरत कविता है सुख और दुख की गहन अभिव्यक्ति

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  34. मेरी इस साधारण सी रचना पर इतने सारे प्रबुद्ध लोगों की नज़र गई और अप्रत्याशित सराहना भी मिली. इसका सारा श्रेय मैं मनोज जी को देता हूँ.साथ ही तमाम पाठकों से मिले प्रोत्साहन के लिये मै उनका अत्यंत आभारी हूँ.मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि हमारे मन मे सामाजिक मापदंडों के विपरीत जो भावनाएँ आती हैं उनके जिक्र पर किसी को ऐतराज़ नही हुआ . बल्कि समर्थन ही मिला. पाठकों की इस परिपक्वता और समायोजनशीलता के सम्मुख मै नतमस्तक हूँ.श्रीमती प्रतिभा सक्सेना की टिप्पणी से मुझे बड़ा मार्गदर्शन मिला है काव्यत्मकता मे कमी और सक्षिप्तता की आवश्यकता को मै स्वीकार करते हुए उसे आगामी रचनाओं मे पूरा करने का भरसक प्रयास करूंगा . मनोज जी के मंच से मुझे जोड़्ने हेतु मै श्री जितेन्द्र त्रिवेदी और श्री परशुराम राय जी का सदा ऋणी रहुंगा.

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  35. दुख में हमारे अपने दूर होते हैं

    सुख में हम अपनों से दूरी बनाते हैं

    दुख में दुख के बढ़ने का

    सुख में सुख के घटने का

    डर हमेशा घेरे रहता है,

    कोई दुख से पागल होता है

    तो किसी का सुख से सिर फिर जाता है,

    Ekdam satya vachan.....sabhi liye prerak aur moolywaan ek shiksha milti hai jo sabhi ke liye saman roop se upyogi hai...

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