गाँधी और गांधीवाद
133. गांधीजी और फुटबॉल
1904
प्रवेश
अपने दक्षिण अफ्रीका
प्रवास के दौरान गांधीजी ने फुटबॉल को रंगभेद के खिलाफ अहिंसात्मक
आंदोलन का औज़ार बनाया था। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका
में फुटबॉल के साथ अनोखे सामाजिक-राजनीतिक प्रयोग किये थे। उन्होंने न केवल अफ्रीकी अश्वेतों और प्रवासी भारतीयों को फुटबॉल से जोड़ा बल्कि दक्षिण अफ़्रीका में उन्होंने इस की खेल संस्कृति की नींव रखी। गांधीजी के फुटबॉल के
प्रति लगाव और कैसे उन्होंने इस खेल के जरिये नस्लभेदी-रंगभेदी कानून के खिलाफ लड़ाई
लड़ी, इस पर विद्वानों द्वारा बहुत कम चर्चा की गई है। गांधीजी 1896 में स्थापित ट्रांसवाल इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन के संस्थापकों
में से एक थे. यह अफ्रीका का पहला संगठित क्लब था जिसका संचालन पूरी तरह से अश्वेत
लोगों के हाथ में था।
फुटबॉल अफ्रीका
में लोकप्रिय खेल
महात्मा गांधी को बचपन में इस खेल में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हां क्रिकेट और साईकिलिंग के
शौकीन ज़रूर थे। उन्हें स्कूल में यह खेल पसंद नहीं था और फुटबॉल में उन्होंने कभी हिस्सा
नहीं लिया, जब तक कि इन्हें
अनिवार्य नहीं कर दिया गया। पोरबंदर छोड़कर जब वे कानून की पढ़ाई
के लिए इंग्लैंड गए थे तो उनका लगाव इस खेल से हुआ। उस प्रवास के दौरान
वह अच्छी फुटबॉल खेलना
भी सीख गए थे। स्टेडियम में जाकर मैच देखते थे। इंग्लैंड में रहने
के दौरान ही गांधीजी फुटबॉल की ताकत को समझ चुके थे। वे समझ चुके थे कि
जल्द ही इंग्लैंड में फ़ुटबाल क्रिकेट से ज्यादा देखा जाने वाला खेल हो जाएगा। जब गांधीजी दक्षिण
अफ़्रीका पहुंचे तो उन्होंने पाया कि उस वक्त फुटबॉल अफ्रीका में कमजोर और मजदूर वर्ग में लोकप्रिय खेल था। उन्होंने पाया कि दक्षिण अफ्रीकी समुदाय में इस खेल के प्रति अत्यंत लगाव
है और यह उनके मनोरंजन का यही एकमात्र जरिया था। मैच के दौरान काफी
भीड़ जुटती थी। गांधीजी ने भांप
लिया कि इस खेल में सामूहिकता का जो तत्व है वह नस्लभेद के खिलाफ उनकी लड़ाई और राजनीतिक
विचारों के प्रसार में काफी मददगार साबित होगा। जैसे-जैसे दक्षिण
अफ्रीका में गांधीजी की सामाजिक-राजनीतिक
गतिविधियां बढ़ने लगीं, वैसे-वैसे फुटबॉल में उनका रुझान बढ़ने लगा। वे तमाम मैच देखने
जाने लगे और वहां मौजूद अफ्रीकी और भारतीयों को उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक
करते
रहते। मैच देखने आई भीड़ को वो समझाते थे कि कैसे अहिंसा और सत्याग्रह के जरिये हमें
उन गोरों से समान अधिकार लेने हैं जो हमें दूसरे दर्जे का नागरिक समझते हैं।
फुटबॉल
क्लबों की स्थापना
1896 में ट्रांसवाल
इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 1903 में गांधी जी के
सक्रिय सहयोग से दक्षिण अफ्रीकी हिंदू फुटबॉल एसोसिएशन की स्थापना की गई। इसके
परिणामस्वरूप, एक राष्ट्रीय
महासंघ और लीग का निर्माण हुआ, जिसमें
खिलाड़ियों को उनकी त्वचा के रंग की परवाह किए बिना चुना जाता था। 1904 के आसपास उन्होंने
डरबन, प्रिटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबॉल क्लबों की स्थापना की और इन तीनों का नाम रखा “पैसिव रजिस्टर्स
सौकर क्लब”। यह नाम हेनरी
थोरो और लियो टॉल्स्टॉय के लेखन से प्रेरित राजनीतिक दर्शन पर आधारित था, जिसे उन्होंने
दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव और अन्याय से लड़ने के लिए अपनाया था।
फुटबॉल
के जरिये सत्याग्रह
फुटबॉल के जरिये गांधीजी सत्याग्रह, पैसिव रेजिस्टेंस जैसे मकसद हासिल करना चाहते थे क्योंकि उस समय फुटबाल
के साथ टीम गेम का विचार बहुत गहरे से जुड़ा था। यही सामूहिकता और
साथ में मिलकर कुछ हासिल करने का जुनून उन्हें सबसे ज्यादा प्रेरित करता था। मैच के हाफ़ टाइम
के दौरान वे लोगों से जनसंवाद करते और पैसिव रजिस्टेंस
आंदोलन के पर्चे बांटते। गांधीजी ने फीनिक्स
आश्रम में एक धूल भरे जमीन
के टुकड़े को फुटबाल ग्राउंड में तब्दील करवाया था, जो आज हेरिटेज साइट
है।
इस प्रकार गांधीजी ने अपने सत्याग्रह के सिद्धांतो को फुटबॉल के मैदान से ही
फैलाना शुरू किया। गांधीजी ने अपने खेल प्रेम को लोगों में जागरूकता फैलाने के साधन
के रूप में प्रयोग किया। उन्होंने खेल के द्वारा लोगों को समाज में समान अधिकार और
एकीकरण के लिए अहिंसक कार्रवाई के लिए प्रेरित किया।
अधिकारियों
की दुर्भावना
भारतीयों के प्रति ट्रांसवाल अधिकारियों की दुर्भावना की कोई सीमा नहीं थी
और यहां तक कि प्लेग को भी भारतीयों को पीटने या उनका मजाक उड़ाने के लिए एक
बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इस प्रकार, जब किम्बरली
(केप कॉलोनी) से एक भारतीय फुटबॉल टीम जोहान्सबर्ग जाना चाहती थी, और उसने अनुमति
मांगी, तो कार्यवाहक
मुख्य सचिव, जी. रॉबिन्सन ने
जवाब में लिखा कि ट्रांसवाल में प्लेग के प्रकोप के बाद से, एशियाई लोगों को
परमिट जारी करना लगभग पूरी तरह से निलंबित कर दिया गया है। उन्होंने आगे कहा
"आप समझेंगे कि इन परिस्थितियों में, जब देश में घर
और व्यवसाय करने वाले लोगों को वापस जाने की अनुमति नहीं है, तो फुटबॉल खेलने
के उद्देश्य से यहां आने वाले लोगों को परमिट देना असंभव है।" यह हास्यास्पद
से कम नहीं था। इंडियन ओपिनियन में गांधीजी ने टिप्पणी की, "शायद ट्रांसवाल
में लोग मध्य युग में रह रहे हैं।"
पैसिव
रजिस्टर्स क्लब ने खूब चर्चा बटोरी
पैसिव रजिस्टर्स क्लब के कुछ मैचों ने औपनिवेशिक दक्षिण अफ्रीका
में खासी चर्चा बटोरी थी। 1910 में हुए ये
मैच नस्लीय कानून का विरोध कर रहे 100 लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में एक तरह का प्रदर्शन
थे। इन मैचों में आई
भीड़ से फंड भी एकत्र किया जाता था जो उन परिवारों की मदद के लिए दे दिया जाता था जो
भेदभाव वाले कानून का अहिंसात्मक विरोध करते हुए गिरफ्तार कर लिए जाते थे। 5 जून 1911 को
प्रिटोरिया पैसिव रेसिस्टर्स XI ने गोल्डन सिटी
के पैसिव रेसिस्टर्स के खिलाफ जोहान्सबर्ग में एक फुटबॉल मैच खेला। वहां बड़ी
संख्या में लोग इकट्ठा हुए और गांधी ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए हाल ही में हुए
संघर्ष के बारे में कुछ शब्द कहे। कोई कड़वाहट नहीं थी और वह अभी भी साम्राज्य के
मित्र बने हुए थे। यह फुटबॉल मैच
उस भावना का प्रकटीकरण था जिसके साथ उन्होंने इतने लंबे समय तक लड़ाई लड़ी और अब
वे उस सुखद क्षण का स्वागत कर रहे थे जिस पर फिलहाल उनका संघर्ष समाप्त हो गया था।
भारत
लौटने के बाद भी जुड़ाव
बरकरार रहा
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद भी गांधीजी का वहां के फुटबॉल संगठनों से जुड़ाव
बरकरार रहा। नवंबर 1921 से मार्च 1922 तक साउथ अफ्रीका का ‘क्रिस्टोफर कॉन्टिजेंट’
भारत के दौरे पर आया और टीम ने मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और
कोलकाता में 14 मैच खेले। गांधीजी के
करीबी सहयोगी, एंग्लिकन मिशनरी
और भारतीय स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक चार्ल्स फ्रीर एंड्रयूज ने इस दौरे को एक
साथ जोड़ने में मदद की। अहमदाबाद में हुए
मैच में गांधीजी खुद मौजूद रहे। हालांकि बाद में उनकी धारणा खेल के बारे में काफी बदल
गई। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए सुदृढ़ शरीर वह है जो
खेत में मेहनत करने से बनता है न कि फ़ुटबाल और क्रिकेट के मैदान में’। हो सकता है कि
तत्कालीन भारत के सामाजिक हालात देख उन्हें यह खेल विलासिता लगने लगे हों और उन्होंने
सत्याग्रह के वे रास्ते निकाले जो भारत जैसे देश में अधिक मुफीद थे।
उपसंहार
गांधीजी ने अपने क्रांतिकारी दर्शन को बढ़ावा देने के लिए इस 'सुंदर खेल' का सहारा लिया। राजनीतिक
उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए खेलों का उपयोग करना, अपनी तरह का पहला मामला
था। दक्षिण अफ्रीका में अपने राजनीतिक संघर्ष में गांधीजी द्वारा फुटबॉल के खेल का
उपयोग ने आने वाले समय में अन्य विश्व नेताओं को प्रभावित किया। उनका यह कार्य एक
गैर-नस्लीय खेल परंपरा को बढ़ावा देने के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण विरासत है। उन्होंने
कम संपन्न वर्गों के बीच इसकी लोकप्रियता और टीम के खेल की भावना के संदर्भ में
इसकी क्षमता को पहचाना और इसका इस्तेमाल दक्षिण अफ्रीका के रंगीन लोगों के बीच
सामाजिक एकजुटता बनाने के लिए किया। मैच स्थल का उपयोग दर्शकों को भाषण देने और
नस्लीय भेदभाव के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताने वाले पर्चे बांटने के लिए करना
एक बिलकुल ही अद्भुत प्रयोग था। इस खेल से जुडाव
ने ही उन्हें यह कहने के लिए प्रेरित किया कि "निष्क्रिय
प्रतिरोधियों के बीच प्रतिस्पर्धा उन्हें थकाती नहीं है; इसके विपरीत, यह उन्हें और भी
बेहतर बनाती है।"
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- गांधी और
गांधीवाद
संदर्भ : यहाँ
पर
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