गुरुवार, 28 नवंबर 2024

155. हरिलाल की शादी

 गांधी और गांधीवाद

 155. हरिलाल की शादी

 

हरिलाल गांधी

1906

कस्तूरबा घर के विदेशियों से आसानी से तालमेल नहीं बिठा पा रहीं थीं। अंग्रेज़ी न जानने के कारण वे न तो बातचीत में भाग ले पातीं और न ही उन्हें विदेशियों के तौर तरीक़ों की अधिक जानकारी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि वो अपने आप में सिमटती चली गईं। अधिकांश समय वो चुप ही रहतीं। गांधीजी ने इस ओर कोई खास तवज्जो यह सोचकर नहीं दिया कि वे काठियावाड़ के संकीर्ण विचार थे। लेकिन कस्तूर को अपने चचेरे देवर छगनलाल से बहुत सहारा मिला। कस्तूरबा को गांधीजी के ऑफिस में एक लड़की (मिस सोंजा श्लेसिन) को काम करते देख कर आश्चर्य होता। खाने पर जो लोग आमंत्रित किए जाते वे आपस में काफ़ी हंसी मज़ाक़ करते। यह देख कर कस्तूरबा को लगा कि उनके मज़ाक़ सीमा के बाहर जा रहे थे।

ज़ुलू विद्रोह के समय गांधीजी तो युद्ध क्षेत्र में चले गए थे, कस्तूरबा बच्चों को लेकर फीनिक्स आश्रम पहुंच गई थीं। यह जगह उन्हें बियाबान सी लग रही थी। एक अनजान भय उन्हें हमेशा सताता रहता था।

हरिलाल को अपने पिता से शिकायत रहती थी कि उनकी शिक्षा को उपेक्षित किया गया था। हरिलाल से बढ़ती दूरियां, दक्षिण अफ़्रीका में गांधीजी के जीवन की सबसे दुखद घटना थी। 1904 में जब गांधीजी ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को दक्षिण अफ़्रीका बुलाया, तो हरिलाल को छोड़कर सब चले आए। हरिलाल मुम्बई में ही रह गए और अपनी पढ़ाई वहीं ज़ारी रखी। इधर दक्षिण अफ़्रीका में हरिलाल का बहुत संक्षिप्त सा पत्र आता तो माता कस्तूरबा चिंतित हो जातीं। उनका हृदय पुत्र को याद कर बिलखता। हरिलाल काठियावाड़ के एक प्रमुख वकील हरिदास वाकटचंद वोरा के वार्ड के रूप में भारत में रहते थे और भारत में वह पढ़ाई कर रहे थे। हरिलाल वोरा परिवार के सदस्य बन गए और बुजुर्ग वकील ने उन्हें बेटे की तरह माना, जिन्होंने 1903 के वसंत में बीमार पड़ने पर उनकी देखभाल की। गांधीजी ने उनकी पढ़ाई के ख़र्च की व्यवस्था भी कर दी थी। लेकिन हरिलाल मैट्रिक में दो बार असफल रहे। हरिलाल उधर एक अलग दुनिया में थे। 

हरिदास वोरा राजकोट की मशहूर शख्सियत और समाज सुधारक थे। हरिदास एक उदार विचारों वाले व्यक्ति थे, जिनका दृष्टिकोण प्रबुद्ध था, वे महिलाओं की शिक्षा में दृढ़ विश्वास रखते थे। उनकी तीन पुत्रियां थीं। तीनों ही पढ़ी-लिखी थीं। सबसे बड़ी पुत्री का नाम जीवी बहन (बलि बहन, चांची) था, उनकी शादी हो चुकी थी। उनसे छोटी का नाम गुलाब बहन था, और उनके लिए लड़के की खोज हो रही थी। सबसे छोटी का नाम कुमुद बहन था। गुलाब बहन को गांधीजी ने गोद में खिलाया हुआ था। उन दिनों जब गांधीजी भारत में थे, तो हरिदास वोरा ने गुलाब बहन की हरिलाल से शादी की बात गांधीजी से की थी। गांधीजी को कोई आपत्ति नहीं थी। उन्होंने कहा था, “गुलाब से अधिक समझदार लड़की ढूंढ़ने पर भी कहां मिलेगी?”

हरिलाल गांधी लंबे, पतले, बल्कि गंभीर युवा हो गए थे, उनके दोस्त उन्हें बहुत पसंद करते थे, दिखने और व्यवहार में वे अपने पिता से बिल्कुल अलग थे। वे बुद्धिमान थे और उनके सबसे करीबी दोस्तों में से एक ने बाद में लिखा कि उन्हें सभी दुखियों के लिए विशेष सहानुभूति थी, एक ऐसा गुण जो उन्हें अपनी दादी से विरासत में मिला था। हरिदास वोरा और उनके परिवार के सदस्यों ने शुरू से ही भावी दामाद के रूप में हरिलाल पर अपनी नज़रें गड़ा दी थीं और अपने-अपने परिवारों को जोड़ने वाले घनिष्ठ संबंध और स्नेह के बंधन को देखते हुए, लड़की के परिवार की महिलाओं ने विशेष रूप से यह मन बना लिया था कि गुलाब और हरिलाल एक दूसरे के लिए बने हैं। लक्ष्मीदास और गांधी परिवार के अन्य बुजुर्गों के साथ परामर्श के बाद, एक अविभाजित हिंदू संयुक्त परिवार की परंपरा का पालन करते हुए, उन्होंने औपचारिक रूप से गुलाब की सगाई हरिलाल से कर दी। न तो कस्तूरबाई और न ही गांधीजी को विश्वास में लिया गया। गांधीजी दुखी थे। वे कम उम्र में विवाह के विरोधी थे, और बच्चों को यथासंभव ब्रह्मचर्य की अवस्था को लम्बा खींचने के लिए मार्गदर्शन, प्रोत्साहन और सहायता देने के प्रबल पक्षधर थे। लेकिन अब जब सगाई हो चुकी थी, तो उन्हें इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने इसे एक नियति के रूप में स्वीकार कर लिया। 11 नवंबर, 1903 को छगनलाल को लिखते हुए, उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि सगाई की पुष्टि के प्रतीक के रूप में प्रथागत साड़ी भावी दुल्हन को भेजी जानी चाहिए, अगर वह पहले से नहीं भेजी गई हो।


गुलाब बहन

एक बार हरिलाल सख्त बीमार पड़ गए। उन दिनों वे अपनी फुआ रलियात बहन के यहां रहते थे। घर में कोई पुरुष नहीं था। हरिदास वोरा को जब यह ख़बर मिली तो वे हरिलाल को अपने यहां ले गए। वहां हरिलाल की अच्छी सेवा-शुश्रूषा हुई। गांधीजी को जब दक्षिण अफ़्रीका में यह बात मालूम हुई, तो उन्होंने हरिदास वोरा को आभार प्रकट किया। हरिलाल को मालूम था कि जहां उनकी तीमारदारी हो रही है, वह जगह भविष्य में उनकी ससुराल होने वाली है। बीमारी की इस तीमारदारी के बीच हरिलाल और गुलाब बहन के बीच निकटता बढ़ी। इस निकटता से हरिलाल का गुलाब बहन के प्रति आकर्षण बढ़ गया। जब वे स्वस्थ हुए तो अपने घर चले गए। हां उनके और गुलाब बहन के बीच पत्र-व्यवहार ज़ारी रहा।

गांधीजी ने हरिलाल को दक्षिण अफ़्रीका आ जाने के लिए कहा था इसलिए उनके मन में दक्षिण अफ़्रीका जाने की बात भी थी। लेकिन एक बार दक्षिण अफ़्रीका चले जाने के बाद वापस आने में चार-पांच साल तो लग ही सकते थे। शादी की बात तय हो जाने के बाद इतने दिनों तक घर में एक विवाह योग्य पुत्री का अविवाहित रहना उन दिनों संभव नहीं था। गुलाब बहन और उनके परिवार के लोग हरिलाल के दक्षिण अफ़्रीका जाने के पहले शादी हो जाना उचित समझते थे। गांधीजी का मानना था कि उनकी यह उम्र शादी के लिए कम है। उन्हें अपनी शादी कम उम्र में हो जाने का पछतावा तो था ही। वे कहते थे कि हरिलाल का कल्याण इसी में है कि शादी उतावली में न हो। साथ ही उन्होंने यह भी ख़बर भिजवाई कि हरिलाल जल्द से जल्द दक्षिण अफ़्रीका आ जाएं। हरिदास वोरा को हरिलाल गांधी को भेजने की कोई जल्दी नहीं थी, न ही हरिलाल खुद उस समय दक्षिण अफ्रीका जाने के लिए उत्सुक थे। लड़की के माता-पिता और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को लगा कि विवाह योग्य आयु प्राप्त करने के बाद इतने लंबे समय तक अपनी लड़की को अविवाहित रखना, रूढ़िवादी वर्ग द्वारा नापसंद किया जाएगा और आलोचना को भड़काएगा। उन्होंने सोचा कि सबसे अच्छी और समझदारी वाली बात यह होगी कि जितनी जल्दी हो सके उनकी शादी कर दी जाए। यह युवा जोड़े की अंतरतम इच्छा के साथ भी मेल खाता था।

इस बीच नेटाल में ज़ुलू विद्रोह हुआ। गांधीजी वहां युद्ध मोर्चे पर व्यस्त हो गए। इधर भारत में गुलाब बहन और हरिलाल की शादी की तैयारियां शुरू हो गई। शादी की तैयारी के लिए न तो कस्तूरबा और न ही गांधीजी की सहमति ली गई थी। शादी की तैयारी की बात सुनते ही गांधीजी ने अपने बड़े भाई को पत्र लिखा, “हरिलाल की शादी भले हो। शादी न हो तो भी चलेगा ...। इन दिनों मैंने उसके बारे में सोचना छोड़ दिया है।


रामीमनु, शान्ति और कान्ति के साथ हरिलाल और गुलाब बहन

आखिरकार उनकी शादी का दिन तय हो गया। हरिलाल की मंगेतर को जब यह पता चला तो उसने अपने भावी पति को गुजराती में एक पत्र लिखा, जिसमें उसने खुद लिखा था, "चंद्रोदय की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हुए - आपकी चंद्रिका (यानी चांदनी) गुलाब।" 19 फरवरी, 1906 को उनकी शादी हुई। उस समय हरिलाल सत्रह वर्ष के थे। गांधीजी के बड़े भाई लक्ष्मी दास ने शादी में काफ़ी धन ख़र्च किया। शादी के कुछ दिनों बाद हरिलाल दक्षिण अफ़्रीका चले गए। गुलाब बहन भारत में ही रह गईं। 1907 में जब हरिलाल भारत आए तो गुलाब बहन को भी साथ ले गए, तब वो गर्भवती थीं। 10 अप्रैल 1908 को गुलाब बहन ने पुत्री को जन्म दिया। रामनवमी का दिन था। बच्ची का नाम रामी बहन रखा गया। हरिलाल का विवाहित जीवन सुखद था। बाद में नौजवान दम्पती दक्षिण अफ़्रीका में फीनिक्स आश्रम में बाक़ी परिवार के साथ रहने लगे। उनमें एक सामान्य युवक की आशाएं और आकांक्षाएं भी थीं। उनकी तीन संताने थीं, रामी बहन, मनु बहन और कान्ति भाई। 10फरवरी 1911 को भारत में पुत्र कान्तिभाई का जन्म हुआ।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद

संदर्भ : यहाँ पर

 

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