मंगलवार, 18 जनवरी 2011

सजा की कीमत

-- सत्येन्द्र झा


"तमाम सबूत गबाहों के बयानात के मद्देनजर.... अदालत उम्रकैद की सजा मुक़र्रर करती है।" ्यायाधीश महोदय ने फैसला सुनाया। वह मुस्कुरा उठा। उस पर हत्या का अभियोग लगा थालेकिन फिर से अदालत में दूसरा व्यक्ति उसी अपराध की स्वीकारोक्ति दे रहा हैन्यायधीश महोदय भी सन्नएक हत्या और कुल मिलाकर पांच अभियुक्त और हरेक का दावा कि हत्या उसी ने किया हैपहला व्यक्ति रिहा हो गया। उसे कुछ समझ नहीं रहा था


"लेकिन वकील साहब, बाहर जाकर मैं खाऊंगा क्या... ? रहूँगा कहाँ... ? जेल में तो कम से एक छत और और दोनों टाइम भोजन तो मिलता.... ! अरे माना कि वह हत्या मैं ने नहीं की थी मगर सजा पाकर मैं खुश थाआपने यह क्या कर दिया.... पांच-पांच लोगों को..... !", वह अधिवक्ता से गुहार कर रहा थावकील साहब ने हिकारत भरे लहजे में कहा, "अबे चुप कर.... ! ज्यादा सयाना बनने की कोशिश मर करोसजा उतनी ही मिलती है जितना वो खर्च-वर्च करता हैआखिर मुफ्त में चौदह साल रोटी तोड़ने को नहीं मिलती।"


वकील साहब के पान चबाने से काले दांत चमक उठे थे जबकि उसकी आँखों के आगे अँधेरा गया था।


मूल कथा मैथिली में "अहीं कें कहै छी" में संकलित "सजायक मूल्य" से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित

16 टिप्‍पणियां:

  1. समाज को आइना दिखा दिया. बहुत ही मार्मिक स्तिथि है.

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  2. 'लेकिन फिर से अदालत में दूसरे व्यक्ति ने उसी अपराध की स्वीकारोक्ति दे रहा है।'

    वाक्य में कुछ शब्द छूटे लग रहे हैं। अर्थ स्पष्ट नही हो रहा है।
    कृपया पुनः देख लें।

    हरीश गुप्त

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  3. अच्छी लघुकथा..... व्यंग्य तो गहरा है मगर झाजी की पिछली लघुकथाओं के मुकाबले इसमें वो मारकता नहीं आ पायी है. फिर भी आप धन्यवाद के अधिकारी तो हैं ही !

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  4. कडवा मगर सच को प्रस्तुत करता व्यंग्य सोचने को मजबूर करता है कि आज क्या हो रहा है देश , समाज और जनता कहाँ जा रही है और आगे क्या होगा।

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  5. गरीबी और भूख को स्पष्ट करती अच्छी लघुकथा

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  6. मनोज जी, कहने के लिये कुछ भी नहीं........... जिंदगी की ये भी एक बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई लघुकथा.

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  7. kya jail men jane ke liye bhi kuchh karana padata hai.? Real reality. very good post.

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  8. समाज को आइना दिखाती अच्छी लघुकथा.

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  9. झा जी की लघुकथाओं की पहुँच सीधे हृदय तक है! कुछ हल्की कुछ भारी, लेकिन हम है आपके आभारी!

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