काव्यशास्त्र-28आचार्य आशाधरभट्ट, आचार्य नरसिंह और आचार्य विश्वेश्वर पण्डितआचार्य परशुराम राय |
आचार्य आशाधरभट्टआचार्य पण्डितराज जगन्नाथ के बाद काव्यशास्त्र के इतिहास आचार्य आशाधरभट्ट का नाम उल्लेखनीय है। ये अठारहवीं शताब्दी के आचार्य हैं। इन्होंने अपने पिता का नाम रामजीभट्ट तथा गुरु का नाम धरणीधर बताए हैं:- शिवयोस्तनयं नत्वा गुरुं च धरणीधरम्। आशाधरेण कविना रामजीभट्टसूनुना॥ (अलंकारदीपिका)
यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि चौदहवीं शताब्दी में आशाधर नाम के एक जैन आचार्य हुए हैं। आचार्य आशाधरभट्ट उनसे भिन्न हैं। आचार्य आशाधरभट्ट ने काव्यशास्त्र पर तीन ग्रंथ लिखे हैं - कोविकानन्द, त्रिवेणिका और अलंकारदीपिका। सन् 1960 तक इन ग्रंथों का प्रकाशन नहीं हुआ था। वर्तमान में इनका प्रकाशन हुआ है अथवा नहीं, कहना कठिन है। इन ग्रंथों के विषय में जो विवरण देखने को मिलता है, उससे लगता है कि 'कोविकानन्द' और 'त्रिवेणिका ' के विवेच्य विषय शब्द शक्तियाँ हैं। 'अलंकारदीपिका' का प्रणयन आचार्य अप्पय्यदीक्षित कृत 'कुवलयानन्द' की शैली में किया गया है। इसमें कुल तीन प्रकरण हैं। पहले प्रकरण में 'कुवलयानन्द' की कारिकाओं की सरलतम व्याख्या मात्र है। दूसरे में आचार्य अप्पय्यदीक्षित की शैली में अलंकारों का निरूपण व उनकी व्याख्या है। तीसरे का नाम 'परिशेषप्रकरण' रखा है। इसमें 'संसृष्टि' और 'संकर' अलंकारों के भेदों का वर्णन है। उक्त ग्रंथों के अतिरिक्त आचार्य आशाधरभट्ट ने 'अद्वैतविवेक' और 'प्रभापटल' ग्रंथों की भी रचना की थी।
आचार्य नरसिंहआचार्य नरसिंह का काल अठारहवीं शताब्दी है। ये दक्षिण भारत के रहने वाले थे। इनका आश्रय स्थल मैसूर राज्य था। इनके जीवनवृत्त के विषय में अधिक सामग्री उपलब्ध नहीं है। इन्होंने काव्यशास्त्र पर 'नञ्जराजयशोभूषण' नामक ग्रंथ की रचना की। उस काल में नञ्जराज मैसूर राज्य के अमात्य थे। राज्य का पूरा कार्यभार और अधिकार उन्हीं के पास थे। शायद यही कारण है कि आचार्य नरसिंह ने आचार्य विद्यानाथ कृत 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' के आधार पर अपने ग्रंथ का नाम 'नञ्जराजयशोभूषण' रखा हो। 'नञ्जराजयशोभूषण' में कुल सात विलास हैं। जिनमें क्रमश: नायक, काव्य, ध्वनि, रस, दोष, नाटक और अलंकारों का निरूपण किया गया हैं। इसके छठे विलास में अमात्य 'नञ्जराज' की स्तुति में एक नाटक का भी समावेश किया है। कवि के रूप में आचार्य नरसिंह की रचना-शैली बड़ी ही रोचक हैं। आचार्य विश्वेश्वर पण्डितआचार्य विश्वेश्वर पण्डित काव्यशास्त्र प्रणेताओं में शायद अन्तिम आचार्य हैं। इनका जन्म उत्तराखण्ड के अलमोड़ा जनपद में स्थित पटिया गाँव में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता श्री लक्ष्मीधर पाण्डेय स्वयं एक सर्वतन्त्रस्वतंत्र मूर्धन्य विद्वान थे। आचार्य विश्वेश्वर एक बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न आचार्य हैं। इन्होंने काव्यशास्त्र, व्याकरण और न्याय में बड़े ही उच्चकोटि के ग्रंथों का प्रणयन किया है। काव्यशास्त्र पर इन्होंने पाँच ग्रंथों की रचना की है - अलंकारमुक्तावली, अलंकारप्रदीप, रसचन्द्रिका, कविकण्ठाभरण और अलंकारकौस्तुभ। इनमें 'अलंकारकौस्तुभ' सर्वाधिक प्रसिद्ध और विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ है। इसमें इन्होंने आचार्य अप्पय्यदीक्षित और आचार्य जगन्नाथ के मतों का बड़ी ही कुशलता एवं विद्वत्तापूर्ण ढंग से खण्डन किया है। इसके अतिरिक्त आचार्य विश्वेश्वर के अन्य उत्कृष्ट ग्रन्थ हैं - व्याकरण पर 'वैयाकरण - सिद्धान्तसुधानिधि' और न्यायशास्त्र पर 'तर्ककुतूहल' तथा 'दीधितिप्रवेश' ! भारतीय काव्यशास्त्र के अगले अंक में इसके विभिन्न सम्प्रदायों का उल्लेख किया जाएगा। अब तक के अंकों में आए लेखों का मुख्य आधार सिद्धान्तशिरोमणि आचार्य विश्वेश्वर कृत काव्यप्रकाश की हिन्दी व्याख्या (टीका) की भूमिका में दी गई ऐतिहासिक पीठिका है। अतएव मैं अपनी पूरी श्रद्धा और आभार के साथ उनका नमन करते हुए भारतीय काव्यशास्त्र के इतिहास को यहीं विराम देता हूँ। ***** |
रविवार, 22 अगस्त 2010
काव्यशास्त्र-28 :: आचार्य आशाधरभट्ट, आचार्य नरसिंह और आचार्य विश्वेश्वर पण्डित
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इन महान आचार्यों के बारे में जान कर ज्ञानवर्धन हुआ।
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत अच्छी जानकारी पेश कर रहे हैं आप।
जवाब देंहटाएं*** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।
आप की जान्कारियो की यह कडी बहुत अच्छी चल रही है हर लेख मै बहुत सुंदर जानकारियां दे रहे है. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआचार्य लोगों के बारे में गूढ़ जानकारियां..पूरी श्रृंखला ही ज्ञान्दायी...बधाई.
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिये आपका बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपुर्ण कार्य कर आप एक महान कर्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंवाकई ग्यान्वर्धक पोस्ट हैं, इसके लिये आभार.
जवाब देंहटाएंPathakon ko sakaratmak vichar.
जवाब देंहटाएंSabhi pathakon ko sakaratmak tippani ke liye dhanyavad.
जवाब देंहटाएंयद्यपि मैंने समस्त कड़ियों पर टिप्पणी नहीं की है,उन्हें पढ़ता ज़रूर रहा हूँ जिसके आधार पर यह स्वीकारने में संकोच नहीं कि आपने कठिन श्रम और अनुसंधान से प्राप्त सामग्री को यथासंभव रूचिकर ढंग से प्रस्तुत किया। आभार।
जवाब देंहटाएंएक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं आप ! हिन्दी में इस प्रकार की सामग्री का अभाव है नेट पर । काव्यशास्त्र की सम्यक प्रस्तुति इसे समृद्ध करेगी । आभार ।
जवाब देंहटाएंकाल के आवरण में छुप गए इन काव्य-मनीषियों से परिचय करवाने के लिए, धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंशोधपूर्ण जानकारी के लिए आभार।
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