शनिवार, 21 अगस्त 2010

फ़ुरसत में … ज़िन्दगी और क्षणिकाएँ

फ़ुरसत में … ज़िन्दगी और क्षणिकाएँ

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मनोज कुमार

आज फ़ुरसत में … थोड़ी बात करें ज़िन्दगी की!

एक बार मैंने उन्हें कह दिया तुम मेरी ज़िन्दगी हो! बहुत ख़ुश हुईं!! खनकती आवाज़ में बोलीं, “शुक्रिया!”

ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है।

खनक! सिक्कों की खनक तो सुनी ही होगी आपने। सिक्के, मूल्य वाले तो होते हैं एक, दो, पांच के,  पर आवाज़ ज़्यादा निकालते हैं। वहीं दस, बीस, पचास, सौ, पांच सौ और हज़ार के नोट शांत होते हैं, ख़ामोश रहते हैं। क्यूंकि उनका मूल्य अधिक होता है। इसी तरह ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। यह स्थिति तो ज्ञान के संचय से ही आती है। इस अवस्था में ज़िन्दगी सुंदर होती है।

सुंदर ज़िन्दगी बस यूं ही नहीं हो जाती। इसे रोज़ बनाना पड़ता है अपनी प्रार्थनाओं से, नम्रता से, त्याग से एवं प्रेम से!

ज़िन्दगी में हर कोई सफलता की ऊँचाई प्राप्त करना चाहता है। पर हम कितनी ऊँचाई प्राप्त कर सकते हैं, तब तक नहीं जान पाते जब तक हम उड़ान भरने के लिए अपने पंख नहीं फैलाते। जिन्होंने पंख फैलाया, उनके लिए तो अनंत ही सीमा है।

ज़िन्दगी का हर हिस्सा एक समान नहीं होता। कुछ करड़-मरड़ की आवाज़ वाला, तो कुछ कड़वे-कसैले स्वाद वाला, वहीं कुछ मुलायम तो कुछ कठोर पल वाला। तो क्यूं ना हम जीवन के हर पल को एन्ज्वाय करें, मज़े लें, आनंद उठाएं।

जब वे हमारे पास नहीं होते, ईर्द-गीर्द नहीं होते तो हम बड़ा ख़ाली-ख़ाली महसूस करते हैं, अकेलापन का अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों से ज़िन्दगी के मतलब बदल जाते हैं। ऐसे लोग हमारे हृदय तंतुओं को छूते हैं। उनके आस-पास रहने से हममें मधुर भावनाओं का संचार होता है।

ज़िन्दगी में हम विभिन्न प्रकार के लोग से मिलते हैं। कुछ लोग अन्य की तुलना में हमारे ज़्यादा प्रिय हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? इसका कारण यह नहीं है कि जब हम ऐसे लोग से मिलते हैं तो हमको अधिक ख़ुशी, प्रसन्नता का अनुभव होता बल्कि जब वे हमारे पास नहीं होते, ईर्द-गीर्द नहीं होते तो हम बड़ा ख़ाली-ख़ाली महसूस करते हैं, अकेलापन का अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों से ज़िन्दगी के मतलब बदल जाते हैं। ऐसे लोग हमारे हृदय तंतुओं को छूते हैं। उनके आस-पास रहने से हममें मधुर भावनाओं का संचार होता है।

और अब क्षणिकाएँ

(एक)

मेरे दर पर

तुम्‍हारा पदार्पण

जैसे

वर्षा से भींगे पल्‍लवों पर

चमक उठी

सूरज की पहली किरण।

(दो)

तेरा आना

अगरबत्ती की सुगंध-सा!

उड़ जाता है

अवसाद मन का

प्रकाश में अंधेरे सा

जब तुम आ जाती हो!

(तीन)

काश! ....

हम, तुम,

नदी का किनारा

और मधुमास!

नाविक बिन नाव

लहरों का उच्‍छल विलास!!

(चार)

तुम्हारे अभाव में

बिखंडित,

विघटित,

बिखरा जीवन,

या

रिसते घाव-सा,

बाहर से तो कम

भीतर से अधिक!

(चित्र आभार गूगल सर्च)

36 टिप्‍पणियां:

  1. आदर्णीय महोदय,
    आज तो सुबह सुबह आपका यह पोस्ट देखकर मन खुश हो उठा है. अच्छी प्रस्तुति. पंक्तितां भी लाजवाब रही. शुभकामनायें.....

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  2. ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है।..
    पंच लाईन ..

    क्षणिकाएं सभी बहुत अच्छी लगी मगर यह विशेष है .."तेरा आना अगरबत्ती की सुंगंध " ...इतनी पवन जिसकी स्मृति , वह स्वयं कैसी होगी ..
    सौम्य प्रस्तुति ...!

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  3. जिन्दगी बहुत खूबसूरत है, बस दृष्टि होनी चाहिए।
    यब दृष्टि ऐसे ही नहीं आ जाती। आपने अपने शब्दों में कहा -

    इसे रोज़ बनाना पड़ता है अपनी प्रार्थनाओं से, नम्रता से, त्याग से एवं प्रेम से!

    वाह!

    जिन्दगी के बहुत करीब और मन के कोने में मधुर अहसास-सी जगाती क्षणिकाएं।

    आभार।

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  4. बेहतरीन। लाजवाब।

    *** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।

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  5. बहुत ही लाजवाब पोस्ट, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। यह स्थिति तो ज्ञान के संचय से ही आती है। इस अवस्था में ज़िन्दगी सुंदर होती है

    बिलकुल सटीक बात कही ....

    क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक ...आज का रंग कुछ निखरा हुआ सा ...अलग अंदाज़ है ...बहुत सुन्दर

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  7. ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। यह स्थिति तो ज्ञान के संचय से ही आती है।

    कहीं गहरे उतरते शब्‍द, सुन्‍दर लेखन, क्षणिकाएं भी लाजवाब, इस बेहतरीन पोस्‍ट के लिये आभार ।

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  8. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं।

    जिन्दगी के सुखद क्षणों की अनुभूति जगाती सुन्दर प्रस्तुति।

    आभार।

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  9. पोस्ट और क्षणिकायें, दोनों ही धारदार।

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  10. तेरा आना

    अगरबत्ती की सुगंध-सा!

    उड़ जाता है

    अवसाद मन का

    प्रकाश में अंधेरे सा

    जब तुम आ जाती हो
    बिलकुल अगरबत्ती सी सुगंध है क्षणिकाओं में.

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  11. तुम्हारे अभाव में

    बिखंडित,

    विघटित,

    बिखरा जीवन,

    या

    रिसते घाव-सा,

    बाहर से तो कम

    भीतर से अधिक..
    बहुत खूब ... सब कमाल हैं ... पर ये बेमिसाल है ... किसी के आभाव में हुवा घाव अंदर ज़्यादा होता है ... बाहर तो बस एक आवरण होता है जो भीतर झाँके नही देता .....

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  12. बहुत ही सुन्दरता से नए रूप से आपने प्रस्तुत किया है जो बहुत बढ़िया लगा! चित्र के साथ साथ हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

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  13. गज़ब के बिम्बो के साथ हर क्षणिका खुद बोल रही है अपनी कहानी………………।बेहतरीन्।

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  14. मनोज जी कम शब्दों में आपने अदभुद कविता कह दी है.. खास तौर पर...
    "तेरा आना
    अगरबत्ती की
    सुगंध-सा!
    उड़ जाता है
    अवसाद मन का
    प्रकाश में
    अंधेरे सा
    जब तुम
    आ जाती हो!"
    अगरबत्ती के सुगंध सा किसी का आना .. नया बिम्ब प्रयोग है..
    पहली क्षणिका भी रोमांचित कर जाती है...
    "मेरे दर पर
    तुम्‍हारा पदार्पण
    जैसे वर्षा से भींगे पल्‍लवों पर
    चमक उठी
    सूरज की पहली किरण।"

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  15. बहुत खूबसूरत क्षणिकाएं।
    इस लाजवाब पोस्‍ट के लिये आभार ।

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  16. सिक्के और नोट को लेकर सुन्दर प्रेरणास्पद बातें। बढ़िया पोस्ट।

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  17. आपकी क्षणिकाएं और प्रस्तुती दोनों ही बहुत बढ़िया है !

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  18. बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....क्षणिकाएं कमाल कि हैं....

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  19. वाह जी क्या बात है फुर्सत में बहुत ही सुंदर क्षणिकाएं लिख डाली. एक से बढ़ कर एक.

    ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है।..

    इस दौर से गुजरने का अभी वक़्त नहीं आया सो अनुभव हीन हूँ क्या कहूँ ?

    बढ़िया पोस्ट.

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  20. bahut hi sundar bhumika se saath sundar chitron aur kshnikayon ka aapne prastutikaran kiya hai....
    Haardik shubhkamnayne

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  21. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  22. इतनी खूबसूरत सी रचना के लिये आपको बधाई

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  23. इतनी खूबसूरत सी रचना के लिये आपको बधाई

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  24. सधी हुई पन्क्तिया है…………।

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  25. ये मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता
    एक ही शख्स था दुनिया में क्या ?

    किसी मशहूर शायर का शेर है ये ,आपका लेख पढ़ कर याद आ गया
    आपने इसी भावना को अपनी क्षणिकाओं में परिभाषित करने की उम्दा कोशिश की है
    वैसे तो मैं पहले ही से आपकी कलम को मानती रही हूँ ,आज ज्यादा पुख्ता हुई मेरी मान्यता .

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  26. ये अनुभव की बातें हैं। व्यक्ति का अपना अगर कुछ होता है,तो वह अनुभव ही होता है।

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  27. प्रेम मुक्ति का द्वार है। प्रेम का भौतिक पक्ष जितनी गहराई से जिया जाए,उच्चतर ऊर्जा की ओर प्रस्थान उतनी ही जल्दी संभव होता है।

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  28. मनोज जी..सारी की सारी क्षणिकाएँ पाठक को अपनेपन का एहसास कराती हैं… एक ऐसा अपनापन जो उसे अपने हृदय में संचित भावनाओं की अभिव्यक्ति से प्राप्त होता है... बहुत गहरी अभिव्यक्ति... और उसपर आपकी प्रेरक प्रस्तावना... क्षणिकाओं की प्रेरणा मैं समझ सकता हूँ..अभी तो मेरी बधाई स्वीकारें!!

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  29. तेरा आना अगरबत्ती की सुगंध-सा! उड़ जाता है अवसाद मन का...

    क्षणिकाएं सब एक से एक सुन्दर, सटीक चित्रों के साथ तो और भी ख़ूबसूरत हो गयीं

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  30. "सुन्दर जिंदगी बस यूँ ही नहीं हो जाती . इसे रोज़ बनाना पड़ता है , अपनी प्रार्थनाओं से , नम्रता से , त्याग से एवं प्रेम से !!"
    बहुत खूब.....
    सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक....

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  31. सही कहा, कुछ लोग हृदय पर ऐसे छाप छोड़ जाते हैं कि हर पल याद आतें हैं
    क्षणिकायें बहुत सुन्दर लगी

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  32. बहुत असमंजस है. किस क्षणिका को उद्धृत करूँ और किसे छोड़ दूँ. कुछ चीजें गूंगे की गुर की तरह होती है, जिसका आप सिर्फ आनंद ले सकते हैं, वर्णन नहीं कर सकते हैं. जानकी जी की सखी को पुष्प-वाटिका में श्री राम के प्रथम दर्शानोपरांत ऐसी ही अनुभूति हुई थी, जिससे गोस्वामी जी को कहना पड़ा, "गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी!" आपके द्वारा प्रयुक्त उपमा-उपमान की लोकप्रियता हर पाठक की टिपण्णी में झलकती है. मेरे ख्याल से जो संवेदना आपने 'शोर्ट पॅकेज' में परोसी है वह सिर्फ अनुभव से ही आ सकती है और अनुभूति के योग्य ही है. इसके लिए मुझे थोड़ा आंगल भाषा का सहारा लेना पड़ेगा, "These are awesome virgin thoughts" !

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।