मंगलवार, 10 अगस्त 2010

केंद्र (लघुकथा-सत्येन्द्र झा)

केंद्र

लघुकथा -सत्येन्द्र झा

उसकी माँ और पत्नी में छत्तीस का आंकड़ा था। बेचारा थका-मांदा जब शाम को घर आये तो पत्नी दरवाज़े पर से ही माँ के प्रति विषवमन आरम्भ कर देती थी। माँ भी एकांत पा कर उसके सामने बहू का गुणगान कर ही लेती थी। उसका मन तिक्त हो जाता था।

आज भी वही हुआ। वह शिव की तरह दोनों का कालकूट चुप-चाप पी गया। तभी उसका बेटे ने उसके पास बैठ कर पूछा, "पापा ! एक प्रश्न का उत्तर देंगे ?"

उसने रुखाई से बोला, "पूछो।"

बच्चे ने मासूमियत से पूछा, "एक केंद्र से अनेक वृत्त खीचे जा सकते हैं ?"

इस बार भी उसका जवाब संक्षिप्त ही था, "हाँ।"

लड़के का सवाल जारी था, "लेकिन पापा ! जितनी बार वृत्त खीचा जाता होगा, उतनी बार उसके केंद्र पर प्रकाल की नोक पड़ती होगी ?"

आदमी ने सपाट जवाब दिया, "हाँ। बिना केंद्र पर प्रकाल की नोक लगाए वृत्त कैसे बनेगा ?"

लेकिन लड़के का सवाल तो कुछ और ही था, "हाँ तो पापा ! बार-बार प्रकाल की नोक चुभने पर केंद्र को दर्द भी होता होगा.... ?"

इस बार उसके पास कोई जवाब नहीं था। वह बस उसका मुँह देखता रह गया था।

मूल रचना मैथिली में "अहीं के कहै छी में संकलित 'केंद्र' से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित।

(चित्र साभार : गूगल सर्च)

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  2. केन्द्र होने का यह दर्द तो है ही। कोई भी वृत्त उसे ही केन्द्रित कर लिखी जायेगी। सुन्दर संदर्भ।

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  3. बहुत ही सुन्दरता से आपने "केंद्र" लघुकथा लिखा है जो सराहनीय है! बधाई!

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  4. बहुत अच्छी लघुकथा ...केन्द्र के दर्द को अभिव्यक्त करती हुई ....घर का जो केन्द्र बिंदु होता है उसे सब सहना पड़ता है ...

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  5. bahut achha likha hai aapne...
    Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
    aapke comments ke intzaar mein...

    A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas

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  6. केन्द्र में रहने का दर्द व्यक्त करती विचारपूर्ण कथा.जो केन्द्र में है उसे सहना तो पड़ता ही है .

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  7. केन्द्र होने का यह दर्द तो है ही। बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  8. गहरे भाव लिए यथार्थ को दर्शाती लघुकथा।

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  9. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति, आप का धन्यवाद

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  10. बार-बार प्रकाल की नोक चुभने पर केंद्र को दर्द भी होता होगा.... ?" बहुत अच्छी लघुकथा.

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  11. केंद्र को तो हर हल में अपने आपको चुभते ही रहना है \बहुत अच्छी प्रस्तुती |

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  12. बहुत ही हृदयस्पर्शी लघु कथा ! बधाई एवं आभार !

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  13. सामान्य विषय पर प्रभावपूर्ण ढंग से लिखी गई व मंथन के लिए विवश करती लघुकथा है।
    शूभकामनाएं।

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  14. MAN KI GAHARAYI SE YAH MARMIK KATHA LIKHNE KE LIYE BAHUT BADHAI AUR SHUBHKAMNAYEN

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  15. विशिष्ट शब्द योजना से सजी यह लघुकथा प्रभावित करती है।

    शुभकामनाएं।

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  16. केंद्र की विडंबना ... सटीक पोस्ट ...

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