शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

अंक-6 :: स्वरोदय विज्ञान :: आचार्य परशुराम राय

अंक-6

स्वरोदय विज्ञान

मेरा फोटोआचार्य परशुराम राय

तत्वों के स्वरों में उदय के समय इन्हें पहचानने की एक और बड़ी रोचक युक्ति बताई गई है। इसके अनुसार यदि दर्पण पर अपनी श्वास प्रवाहित की जाये तो उसके वाष्प से आकृति बनती है उससे हम स्वर में प्रवाहित होने वाले तत्व को पहचान सकते हैं। पृथ्वी तत्व के प्रवाह काल में आयत की सी आकृति बनती हैं, जल तत्व में अर्ध्द चन्द्राकार, अग्नि तत्व में त्रिकोणात्मक आकृति, वायु के प्रवाह के समय कोई निश्चित आकृति नहीं बनती। केवल वाष्प के कण बिखरे से दिखते हैं।

स्वरों के प्रवाह की लम्बाई के विषय में थोड़ी और बातें बता देना यहाँ आवश्यक है और वह यह कि हमारे कार्यों की विभिन्नता के अनुसार इनकी लम्बाई या गति प्रभावित होती है। जैसे गाते समय 12 अंगुल, खाना खाते समय 16 अंगुल, भूख लगने पर 20 अंगुल, सामान्य गति से चलते समय 18 अंगुल, सोते समय 27 अंगुल से 30 अंगुल तक, मैथुन करते समय 27 से 36 अंगुल और तेज चलते समय या शारीरिक व्यायाम करते समय इससे भी अधिक हो सकती है। यदि बाहर निकलने वाली साँस की लम्बाई नौ इंच से कम की जाए तो जीवन दीर्घ होता है और यदि इसकी लम्बाई बढ़ती है तो आन्तरिक प्राण दुर्बल होता है जिससे आयु घटती है। शास्त्र यहाँ तक कहते हैं कि बाह्य श्वास की लम्बाई यदि साधक पर्याप्त मात्रा में कम कर दे तो उसे भोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है और यदि कुछ और कम कर ले तो वह हवा में उड़ सकता है।

अब थोड़ी सी चर्चा तत्वों और नक्षत्रों के सम्बन्ध पर आवश्यक है। यद्यपि इस सम्बन्ध में स्वामी राम मौन हैं। इसका कारण हो सकता है स्थान का अभाव क्योंकि अपनी पुस्तक में उन्होंने केवल एक अध्याय इसके लिए दिया है। फिर भी पाठकों की जानकारी के लिए शिव स्वरोदय के आधार पर यहाँ तत्वों और नक्षत्रों के सम्बन्ध नीचे दिये जा रहे हैं। पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध रोहिणी, अनुराधा, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा और अभिजित से, जल तत्व का आर्द्रा, श्लेषा, मूल, पूर्वाषाढ़, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद और रेवती से, अग्नि तत्व का भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, स्वाती और पूर्वा भाद्रपद तथा वायु तत्व का अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा और विशाखा से है।

इस विज्ञान पर आगे चर्चा के पहले शरीर में प्राणिक ऊर्जा के प्रवाह की दिशा की जानकारी आवश्यक है। यौगिक विज्ञान के अनुसार मध्य रात्रि से मध्याह्न तक प्राण नसों में प्रवाहित होता है, अर्थात् इस अवधि में प्राणिक ऊर्जा, सर्वाधिक सक्रिय होती है और मध्याह्न से मध्य रात्रि तक प्राण का प्रवाह शिराओं में होता है। मध्याह्न और मध्य रात्रि में प्राण का प्रवाह दोनों नाड़ी तंत्रों में समान होता है। इसी प्रकार सूर्यास्त के समय प्राण ऊर्जा का प्रवाह शिराओं में और सूर्योदय के समय मेरूदण्ड में सबसे अधिक होता है। इसीलिए शास्त्रों में ये चार संध्याएँ कहीं गयी हैं जो आध्यात्मिक उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गयी हैं। यदि व्यक्ति पूर्णतया स्वस्थ है तो उक्त क्रम से नाड़ी तंत्रों में प्राण का प्रवाह संतुलित रहता है अन्यथा हमारा शरीर बीमारियों को आमंत्रित करने के लिये तैयार रहता है। यदि इडा नाड़ी अपने नियमानुसार प्रवाहित होती है तो चयापचय जनित विष शरीर से उत्सर्जित होता रहता है, जबकि पिंगला अपने क्रम से प्रवाहित होकर शरीर को शक्ति प्रदान करती है। योगियों ने देखा है और पाया है कि यदि साँस किसी एक नासिका से 24 घंटें तक चलती रहे तो यह शरीर में किसी बीमारी के होने का संकेत है। यदि साँस उससे भी लम्बे समय तक एक ही नासिका में प्रवाहित हो तो समझना चाहिए कि शरीर में किसी गम्भीर बीमारी ने आसन जमा लिया है और यदि यह क्रिया दो से तीन दिन तक चलती रहे तो निस्संदेह शीघ्र ही शरीर किसी गंभीरतम बीमारी से ग्रस्त होने वाला है। ऐसी अवस्था में उस नासिका से साँस बदल कर दूसरी नासिका से तब तक प्रवाहित किया जाना चाहिए जब तक प्रात:काल के समय स्वर अपने उचित क्रम में प्रवाहित न होने लगे। इससे होने वाली बीमारी की गंभीरता कम हो जाती है और व्यक्ति शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करता है। image

9 टिप्‍पणियां:

  1. आचार्य जी,सरल भाषा में गहन विषय पर आपके इस व्याख्यान ने इसे ग्राह्य बना दिया है!!

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  2. भारतीय संस्कृति ज्ञान का अकूत भंडार है। स्वर विज्ञान भी इसमें से एक है। अभी तक उपेक्षित से रहे ज्ञान से परिचय कराकर आप उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।
    धन्यवाद।

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  3. बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! उम्दा पोस्ट!

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  4. आपका स्‍वरोदय विज्ञान अत्‍यंत ज्ञानदायक है ।

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  5. Swaroday Vigyan manav sabhyata Bharat dwara diya gaya ek durlabh vigyan hai. Asha hai pathak isase labhanivit honge.

    Is rachana par tippani dene ke liye pathakon ko hardik dhanyavad.

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  6. इतनी गूढ़ बाते पहली बार पढ़ी . अच्छा लगा पढ़ना और इस जानकारी को प्राप्त करना. शुक्रिया इस प्रस्तुति के लिए.

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