अंक-3
स्वरोदय विज्ञान
आचार्य परशुराम राय
इन पाँचों प्राणों के द्वारा पाँच उपप्राणों का सृजन होता है जिन्हें नाग, कूर्म, कृकल (कृकर) देवदत्त और धनंजय कहा जाता है। नाग वायु के कारण डकार एवं हिचकी आती हैं और मानसिक स्पष्टता (Clarity of Mind) बनी रहती है। पलकों का झपकना कूर्म वायु के कारण होता है। कृकल (कृकर) से भूख और प्यास लगती है तथा छींक आती हैं। देवदत्त के कारण जम्हाई आती है और यह निद्रा का कारक है। अन्तिम उपवायु धनंजय व्यान वायु की भाँति सर्वव्यापी है और मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक शरीर से चिपकी रहती है - न जहाति मृतं वापि सर्वव्यापी धनंजय।
इनके अतिरिक्त एक और वायु कही गयी है जिसे महावायु कहते हैं और यह हमारे मस्तिष्क की गतिविधियों को संचालित करती है।
उक्त वायु (प्राण) हमारे पूरे शरीर में नाड़ियों से होकर प्रवाहित होती हैं। वैसे शास्त्र हमारे शरीर में 72000 नाड़ियों की स्थिति बताते हैं, जिनमें से 10 मुख्य है:- इडा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तिजिह्वा, पूषा, यशस्विनी, अलम्बुषा, कुहू और शंखिनी।
शिव स्वरोदय में श्लोक संख्या 38 से 40 तक इन नाड़ियों का विवरण दिया गया हैं।
इडा वामे स्थिता भागे पिंगला दक्षिणे स्मृता।
सुषुम्ना मध्यदेशे तु गांधारी वामचक्षुषि॥
दक्षिणे हस्तिजिह्वा च पूषा कर्णे च दक्षिणे।
यशस्विनी वामकर्णे आनने चाप्यलम्बुषा॥
कुहूश्च लिंगदेशे तु मूलस्थाने तु शंखिनी।
एवं द्वारं समाश्रित्य तिष्ठन्ति दशनाडिका:॥
उपर्यक्त श्लोकों पर इन नाड़ियों की स्थिति शरीर के दस द्वारों (Openings)- दो नाक, दो ऑंखें, दो कान, मुख, जननेंद्रिय और गुदा उल्लिखित हैं उक्त विवरण निम्नलिखित सारिणी में स्पष्ट किया जाता है:-
नाड़ी | इडा | पिंगला | सुषुम्ना | गांधारी | हस्ति- जिहवा | पूषा | यशस्विनी | अलम्बुषा | कुहू | शंखिनी |
स्थिति | वाम (नासिक) | दाहिनी नासिका | मध्य (दोनों नासिका) | बायाँ नेत्र | दाहिना नेत्र | दाहिना कान | बायाँ कान | मुख | जननेंद्रिय | गुदा (वस्ति) |
इन दस नाड़ियों में प्रथम तीन अर्थात् इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना प्रधान हैं। इड़ा और पिंगला नाड़ियाँ क्रमश: चन्द्र नाड़ी और सूर्य नाड़ी के नाम से भी जानी जाती हैं। इड़ा ऋणात्मक और पिंगला धनात्मक नाड़ी कही गयी है। मेरेडियनोलाजी में शायद इन्हें ही यिन और यंग के नाम से जाना जाता है। सुषुम्ना उदासीन होती है।
स्वरविज्ञान के बारे में अद्भुत जानकारी प्रदान करने के लिए साधुवाद.
जवाब देंहटाएंयह अद्भुत विद्या है. राय जी अपने अध्ययन और शोध से इसे ब्लॉग-पाठकों तक पहुंचाने का श्रमसाध्य कर रहे हैं. अभी भले इसकी कद्र न हो... लेकीन जब कोई पश्चिमी देश इस का भी पेटेंट करा लेगा तो फिर हम बड़े शौक से "स्वरोदया" सीखेंगे.
जवाब देंहटाएंकरण से सहमत कि
जवाब देंहटाएं"राय जी अपने अध्ययन और शोध से इसे ब्लॉग-पाठकों तक पहुंचाने का श्रमसाध्य कर रहे हैं. अभी भले इसकी कद्र न हो... लेकीन जब कोई पश्चिमी देश इस का भी पेटेंट करा लेगा तो फिर हम बड़े शौक से "स्वरोदया" सीखेंगे."
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने इस स्वरविज्ञान के बारे, बाकी करण जी की बात से सहमत है जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दे रहें हई आप।
जवाब देंहटाएंअद्भुत जानकारी प्रदान करने के लिए साधुवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी मिली।
जवाब देंहटाएंक्रमिक रूप से शिव स्वरोदय का ज्ञान आपने सभी के लिये सहज सुलभ करवा दिया है. बहुत शुभकामनाएं और आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
यह विज्ञान है और प्राचीन ग्रंथों तथा अन्य शोधपरक आलेखों में स्वर-नियंत्रण के जो परिणाम बताए गए हैं,वे चमत्कारिक हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया, अद्भुत, उपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली स्वरविज्ञान के बारे में! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं@all: Pathakon ko protsahanpoorna tippani dene ke liye dhanyawad..
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही बढ़िया पोस्ट लिखी है!
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इसकी चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/238.html