सोमवार, 9 अगस्त 2010

कब तक बैठोगे मौन तपस्वी .... ?

कब तक बैठोगे मौन तपस्वी .... ?

करण समस्तीपुरी

८ अगस्त सन १९४२ को पूज्य बापू के आह्वान पर भारत छोड़ो आन्दोलन आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था। महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अगस्त 1942 में शुरू हुए इस आंदोलन को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नाम दिया गया था।
ऐसा लगता है देश और समाज आज भी साम्राज्यवाद से लड़ रहा है। देश में कुव्यस्था और शोषण का विरोध हो तो रहा है पर क्या वह समुचित है? लगता है एक सही नेतृत्व की जरुरत है। आज का नेतृत्व अपने स्वार्थ के लिए लोगों को बांट रहा है। हर तरफ भ्रष्टाचार, अशांति, आतंकवाद का बोलबाला है। गरीबी, बेरोज़गारी, भूखमरी, शोषण से देश ग्रसित है। कहीं भी गांधीजी के आदर्श नहीं दिखाई पड़ रहे हैं और ना ही उनके सपनों का भारत नजर आता है। सही मायने में क्या उनके सपनों का भारत निर्माण हुआ है? स्थिति कब सुधरेगी? कब तक बैठोगे मौन तपस्वी .... ?
कब तक बैठोगे मौन तपस्वी,
अब अपनी आँखें तो खोल !
बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
बोल क्रान्ति के तीखे बोल !

रे सतत समाधिलीन योगीश्वर,
जाग-जाग अब शीघ्र जाग !
खींच खड़ग शान्ति-म्यान से,
खेल अराति रक्त से फाग !!
शत्रु की कलुषित शक्ति को,
तुम तलवार तुला पर तोल !
बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
बोल क्रांति के तीखे बोल !!

केसरिया क्यारी कश्मीरी,
हो रही रक्त से आज लाल !
पथ-बाधित दिनकर पूरब में,
संकट में देश का दिव्य भाल !
है असहाय माँ चीख रही,
नहीं कोई ममता का मोल ?
बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
बोल क्रांति के तीखे बोल !!

तुम ध्यान योग में रहे मस्त,
हो रही मातृभूमि त्रस्त !
हे धीर वीर कर के विचार,
तज ध्यान उठाओ सस्त्र हस्त !
हे शंकर ! अब प्रलयंकर बन,
धर पिनाक कर तांडव डोल !
बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
बोल क्रान्ति के तीखे बोल !!

उर प्रजातंत्र का घायल है,
फिर भी वह शान्ति का कायल है !
वह मृत्युंजय है जीवित-मृत,
या कर कंगन, पग पायल है ?
शिव को सोने दे जाग शिवा,
भारत में भैरवी नाद घोल,
बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
बोल क्रान्ति के तीखे बोल !!

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत हो चूका धैर्य प्रदर्शन ...
    हर भारतीय अकुलाया है ...
    मौजूदा दौर पर सटीक रचना ...!

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  2. हे शंकर ! अब प्रलयंकर बन,

    धर पिनाक कर तांडव डोल !

    बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,

    बोल क्रान्ति के तीखे बोल !!

    bina der lagaye apna trinetra kholo prabhu

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  3. बहुत हो चूका धैर्य प्रदर्शन ...
    हर भारतीय अकुलाया है ..
    लाजवाब सही सन्देश देती रचना के लिये बधाई

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  4. आज ऐसे ही आह्वाहन की आवशयकता है ...बहुत सुन्दर और सधे हुए शब्दों में एक ओज पूर्ण रचना ...

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  5. स्वतन्त्रता के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कवि की भावाभिव्यक्ति सराहनीय है।

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  6. इस पोस्ट ने तो झकझोर कर रख दिया..वाकई अति-उत्तम.

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  7. आपका व्‍यापक सरोकार निश्चित रूप से मूल्‍यवान है। कहीं कहीं कविता तात्‍कालिक प्रतिक्रिया जैसी लग सकती है लेकिन ज्‍यादातर आपने अपनी ऊर्जा का प्रयोग देश-समाज में बदलाव के लिए ही किया है। यह कविता कुछ पल ठहरकर सोचने पर विवश करती है!
    इस सहज, सरल मगर जटिल कविता की अंतर्ध्‍वानियां देर तक और दूर तक हमारे मन मस्तिष्‍क में गूंजती रहती है। जीवन के बुनियादी मुद्दों पर केंद्रीत यह कविता हमें विचलित तो करती ही है, यह सोचने के लिए बाध्‍य भी करती है कि अपने आसपास की जिंदगी से सरोकार रखने वाली इन स्थितियों के प्रति हम इतने भयावह रूप में असंवेदनशील और निलिपित क्‍यों हैं?

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  8. शंकर जी का चित्र तो बहुत अच्छा लगा...और कविता भी.
    _____________
    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

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  9. हे शंकर ! अब प्रलयंकर बन,
    धर पिनाक कर तांडव डोल !
    बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
    बोल क्रान्ति के तीखे बोल !!


    -बिल्कुल सटीक!

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  10. एक ओजपूर्ण रचना जो लोगों में हूंकार भरने में सक्षम है।

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  11. अद्भुत!
    उर प्रजातंत्र का घायल है,
    फिर भी वह शान्ति का कायल है !
    वह मृत्युंजय है जीवित-मृत,
    या कर कंगन, पग पायल है ?
    शिव को सोने दे जाग शिवा,
    भारत में भैरवी नाद घोल,
    बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन,
    बोल क्रान्ति के तीखे बोल !!

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  12. मौजूदा दौर पर सटीक रचना ...!

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  13. जोशपूर्ण आव्हान है ..इसी की आवश्यकता है आज के दौर में ..
    प्रभावशाली अभिव्यक्ति.

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  14. हम आज भी अनेक अर्थों में गुलामी के शिकार हैं। यह गुलामी है-गलत के विरुद्ध भीरूता की,समष्टिगत हित के आगे व्यक्तिगत स्वार्थ को प्राथमिकता देने की और अचेतन जीवन जीते जाने की....आदि-आदि

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  15. सुंदर, ओजपूर्ण और प्रभावी कविता।

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  16. उत्साह उड़ेलती कविता। पढ़कर जोश आ गया।

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  17. बहुत हो चूका धैर्य प्रदर्शन ...
    हर भारतीय अकुलाया है ...
    मौजूदा दौर पर सटीक रचना ...

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  18. कोई भी नेतृत्व जनता को जागरूक बनाने का ख़तरा मोल नहीं लेता। मगर क्रांति के बीज भी ईमानदारों में ही होते हैं। हम देख ही रहे हैं कि हम में से ही चंद स्वार्थी तत्व हमें और खोखला किए जा रहे हैं।

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  19. हे नीलकंठ,
    मेरे जैसे नास्तिक की न सही पर उनकी तो सुनो जो अपने घर में चूल्हा न जलाकर भी तेरे द्वारे दीपक जलाते हैं..
    करण जी आप की पुकार में दम है... आपका आह्वान हृदय से निकला है..लेकिन जो पत्थर बनकर बैठा है वो अगर पिघले तो मानूँ... ईश्वर आपकी प्रार्थना स्वीकारे.

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  20. वाह सर जी मजा आ गया अपनी लेखनी का बखूबी प्रयोग किया हॆ आपने

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  21. सभी पाठकों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ! इस अपरिपक्व प्रयास पर आपका इतना प्रोत्साहन आपके अद्भुत स्नेह का द्योतक है. यह कविता मैं ने आज से कोई ९ साल पहले लिखी थी, जब भारतीय संसद पर हमला हुआ था. इसीलिए मैं मानता हूँ कि इस में काव्य के सूक्ष्म तत्वों की अपेक्षा भावनाओं का आवेग है. किन्तु साल बदलते गए हाल नहीं बदला. वर्तमान परिस्थितियों के प्रति आक्रोश को स्वर देने के लिए मैं ने यह कविता पोस्ट किया था. आप सबों का स्नेह पाकर अविभूत हूँ !!!! धन्यवाद !!!!!

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  22. "हे शंकर ! अब प्रलयंकर बन, धर पिनाक कर तांडव डोल ! बहुत हो चुका धैर्य प्रदर्शन, बोल क्रान्ति के तीखे बोल !!

    इतनी सुन्दर रचनाओं से अब तक वंचित रही, इस बात का अफ़सोस है ... जोश से भरपूर और बेहद सुन्दर शब्द प्रवाह ...अति सुन्दर रचना.

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  23. जोश जगाता बाहें फड़काता लाजवाब गीत .... अब तो तीसरा नेत्र खुल ही जाना चाहिए शंकर का .... तभी उद्धार हो सकता है समाज का ...

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  24. कवी काजी नन्रुल इस्लाम की याद ताजा हो गई. कवी कोई ऐसी तान सुनाओ की उथल पथल मच जाए... आपके कवी आत्मा को मेरा सादर नमन

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