इमेजसत्येन्द्र झा |
विभाग के अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी दुखी थे। हाकिम के आने से उनकी उपरी आय पर पॉवर-ब्रेक लगगया था। खैर समय अपनी गति से बीतता रहा। एक दिन, "सर, वैसे तो आप जो कहेंगे वही होगा... मगर पुराने साहब तो दस परसेंट..... ।" "पहले साहब की बात मैं नहीं सुनना चाहता हूँ। वो तो कार्यालयी मर्यादा को मिट्टी में मिला कर चले गए।", नएसाहब धाराप्रवाह बोलते चले जा रहे थे, "मेरी कलम बीस परसेंट से कम पर नहीं चलेगी।"
(मूल कथा मैथिली में "अहीं के कहै छी" से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित। ) |
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
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सुन्दर कथा. यही होता है.
जवाब देंहटाएंआज्कल के सत्य को उजागर करती कहानी , अच्छी लगी.आभार...
जवाब देंहटाएंएक उम्मीद ही तो है जो साथ नही छोडती. सुंदर कथा.
जवाब देंहटाएं"मेरी कलम बीस परसेंट से कम पर नहीं चलेगी।"
जवाब देंहटाएं--
क्या थे कल और क्या आज हम हो गये,
देश के लाल गुदड़ी में फिर खो गये,
दिन दहाड़े सजग सन्तरी सो गये,
कहानी ऑफिस- ऑफिस की ...!
जवाब देंहटाएंyahi hai aaj ki sachchai
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
नौकरशाहों का यही सच है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही!
जवाब देंहटाएंनौकरशाहों का सच ! बहुत सही !! सुन्दर कथा !!!
जवाब देंहटाएंअज का सच । आभार।
जवाब देंहटाएंकितना सरल है भ्रष्टाचार बढ़ाना ...और सब कर्मचारियों को खुश रखना ...
जवाब देंहटाएंअंत के बारे मे यही सोच रही थी और वो ही निकला……………कितना भ्रष्टाचार फ़ैल गया है।
जवाब देंहटाएंसत्य
जवाब देंहटाएंक्रूर, किन्तु सच!
जवाब देंहटाएंभृष्टाचार ऐसे भी आता है शिष्टाचार का रूप धरकर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लघुकथा!!
भ्रष्ट नौकरशाही का सटीक चित्रण.....
जवाब देंहटाएंहम भी पढते हुए सोच रहे थे कि ये लघुकथा तो बहुत पहले कहीं पढी हुई है...यहाँ कैसे? वो तो अन्त में जाकर स्पष्ट हुआ.....
अत्यंत सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम
क्या बात है जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंए भाई जरा देखके चलो! नया साहब आया, तरक्की भी लाया... दस का बीस… गोल गोल रोटी का पहिया चला, पीछे पीछे चाँदी का रुपईया चला!! मनोज बाबू, छा गए!
जवाब देंहटाएंलक्ष्य हमेशा ऊँचा रखना चाहिए। प्रयास से कुछ भी असम्भव नहीं!
जवाब देंहटाएंसब तरफ बिखरा हुआ आज का सच, लेकिन तिक्त।
जवाब देंहटाएंलोकसेवा के विद्रूप चेहरे को दर्शाती उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएंsunder aur sachhi katha.. bahut bada vyang ...
जवाब देंहटाएंगाड़ी तो रुकी ही नहीं, अब दुगुनी गति से।
जवाब देंहटाएंऔर उनकी इमेज बनी रही ..... आज इसी बात का तो चलन है ... सब को खुश रक्खो और जम कर खाओ खिलाओ .... तीखा व्यंग ....
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