दोष किसका..... ?लघुकथा -- सत्येन्द्र झा |
युवावस्था में प्रेम-विवाह के आन्दोलनकारी समर्थक। प्रेम-विवाह किये। माँ-बाप से अनबन और घोर निराशा। वक़्त-बेवक्त सास-ससुर से भी तल्खी। "प्रेम-विवाह का मतलब यह तो नहीं कि दामाद के हर अरमान में आग ही लगा दें।" तिलक-दहेज़ नहीं देना पड़ा... कम से कम 'अन्य आवश्यक सामग्री' के साथ ससम्मान विदाई तो करते। वृद्धावस्था में प्रेम-विवाह के कट्टर विरोधी। इच्छा के प्रतिकूल सामाजिक क्रांतिकारी पुत्र ने एक युवती का हाथ थाम लिया। न पंडित न बारात, ना ही दहेज़। कोर्ट-मैरिज। अब पुत्र से भी अनबन। पहले से भी अधिक निराशा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि दोष किसका था और गलती कहाँ हो गयी ? (मूल कथा मैथिली में "अहीं के कहैं छी" में संकलित "तीन चित्र" से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित।)चित्र : आभार गूगल सर्च |
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
लघुकथा -- दोष किसका..... ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसमें हमारे देश की सभी भाषाओं का समन्वय है।
बहुत सटीक!
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ.
भाई-बहिन के पावन पर्व रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएं--
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/255.html
हूँ.... ! बहुत गंभीर बात है. आखिर दोष किसका है और गलती कहाँ हुई ? जवाब तो खोजना पड़ेगा.... वरना यह दोष कई पीढ़ियों तक तबाह करेगी !!! अच्छी समस्या प्रधान कथा !!! समाधान अब पाठक समाज पर !!!! लेखक को धन्यवाद !!!!!
जवाब देंहटाएंसमाज में ऐसा ही होता है .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है आपने! बिल्कुल सही बात कहा है !
जीवन के यथार्थ का एक पहलू...
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाए
सटीक...परिस्थितिजन्य घटनाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लघुकथा. रक्षाबन्धन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंसच है कभी कभी जो इंसान खुद करता है वो ही अगर उसली औलाद करे तो अच्छा नही मानता ... ये दोहरा मानदंड समझ से परे है ....
जवाब देंहटाएंजीवन के यथार्थ का एक पहलू को दर्शाती समस्या प्रधान रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सटीक कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंझा जी की पिछली लघुकथा पढी थी मैंने और कथा का जो इम्पैक्ट था वो महसूस करने की बात है. लघुकथा की यह विशेषता यहाँ भी देखने को मिलती है.एक जर्जर परम्परा और उसके मानने वाले, दोष किसका,यह तो पता लगाना ही होगा...सचमुच एक वैचारिक मंथन का विषय सुझाती लघु कथा...सत्येंद्र जी और केशव जी दोनों ही धन्यवाद के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना, रक्शःआबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।
जवाब देंहटाएंगलती कहीं नहीं हुई। दोष उस व्यवस्था का है,जो परिवर्तन का धुर-विरोधी है। ऐसे विवाहों से ही,जातिविहीन और प्रेमोन्मुख समाज का जन्म होगा जहां सिर्फ मनुष्यवाद की अहमियत होगी।
जवाब देंहटाएंऐसी दुनिया है तो आखिर ऐसी दुनिया क्यों है...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसमस्या गंभीर है।
आप को राखी की बधाई और शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंसमाज का तीखा सच। व्यवस्था परिवर्तन को आगे बढ़े पग कभी-कभी व्यवस्था की जकड़ से बाहर नहीं निकल पाते। हम दोष यदि व्यवस्था में देखते हैं तो दृढ़ संकल्प में कमी भी एक पहलू है। कमजोरी के चलते व्यवस्थाएं नहीं बदला करतीं।
जवाब देंहटाएंसमस्या प्रधान सुन्दर कथा के लिए सतेयेन्द्र को बधाई।
समाज का यथार्थ। समस्या प्रधान कथा की प्रस्तुति के लिए सत्येन्द्र जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक ..मुझे भी यही सवाल कचोटते हैं आखिर इतनी सीधी सी बात क्यों नहीं समझ में आती लोगों को .
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक ..मुझे भी यही सवाल कचोटते हैं आखिर इतनी सीधी सी बात क्यों नहीं समझ में आती लोगों को .
जवाब देंहटाएं