तुलसी और श्रीरामचरितमानसडॉ. रमेश मोहन झा |
तुलसी का मानस पराधीन जाति की टूटती हुई आशा लता को लहराने वाली महान औषधि है। राम की विजय, प्रकाश की विजय है, सत्य की विजय है। रावण की हार अंधकार की हार है, असत्य की हार है। तुलसी एक ऐसे समय की उपज हैं, जब सारे भारतवर्ष में मनुष्यता के महान संदेश लुप्त हो रहे थे। अतः तुलसी का महत्व इस बात में है कि उन्होंने छीजती हुई मानव-शक्ति को आशा की ज्योति से जगमगा दिया। यह कहना अतिशोयक्ति न होगी कि वे भारत की सांस्कृतिक प्रगति के मेरूदंड थे। तुलसी ने मर्यादाहीन समाज को एक प्रकाश-स्तम्भ दिया, जिसकी रोशनी में पता नही, कबतक भारतीय जनता विश्वस्त होकर अग्रसर होती रहेगी। तुलसी के महत्व के कारण हैं उनकी रचनाएं। रचनाएं तो कतिपय हैं, परन्तु श्रीरामचरितमानस तुलसी की प्रौढ़ता, सरलता और गंभीर चिंतन शक्ति का प्रतीक है। व्यक्तित्व के बिंदु से शुरू होकर विशत् समाज तक छा जाना तुलसी की विशेषता है। युगों की सीमा को तोड़कर कलकल करती हुई मानस की गंगा ने संपूर्ण भारत को सीचा है। क्या छंद, क्या अलंकार, क्या रस-सभी दृष्टियों से रामचरितमानस एक महान कृति है। जीवन के हर पहलू पर इन्होंने अपना मंतव्य दिया है। इतना सटीक कि दांतो तले अंगुली चली जाती है। संपूर्ण संसार को सियाराममय मानकर तुलसी ने मानस की रचना की। तुलसी का मानस पराधीन जाति की टूटती हुई आशा लता को लहराने वाली महान औषधि है। राम की विजय, प्रकाश की विजय है, सत्य की विजय है। रावण की हार अंधकार की हार है, असत्य की हार है। यह ठीक है कि आज की युग चेतना रामायण के महत्व को भुला देने में ही कल्याण समझती है, परन्तु आधुनिकता के खाल ओढ़ लेने से तुलसी के मानस में वर्णित मानव-मूल्यों का प्रकाश बुझनेवाला नहीं है। जिस रचना के पीछे रचयिता की साधना का बल है, या यों कहें सर्वस्व त्याग है, वह चिरकाल तक स्मरणीय और कालजयी रहेगी । |
अगली प्रस्तुति १४.०० बजेजीवन पथ प्रदर्शक संत तुलसीदासआचार्य परशुराम राय |
सोमवार, 16 अगस्त 2010
तुलसी और श्रीरामचरितमानस -- डॉ. रमेश मोहन झा
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स्वस्ति... स्वस्ति... स्वस्तिः....!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सामयिक भी।
जवाब देंहटाएंतुलसीदास जी को सादर नमन!
सही कहा आपने कि आज की युग चेतना रामायण के महत्व को भुला देने में ही कल्याण समझती है, परन्तु आधुनिकता के खाल ओढ़ लेने से तुलसी के मानस में वर्णित मानव-मूल्यों का प्रकाश बुझनेवाला नहीं है।
जवाब देंहटाएंतुलसी दास जी को नमन!
तुलसी दास की रचनाये बहुत कालजयी है पर अफ़सोस की बात है की तुलसी दास की रचनाये आज कल साम्प्रादायिक मानी जा रही है .
जवाब देंहटाएंइस भ्रम को दूर करने की जरुरत है .
मृत्युंजय कुमार राय
माधव राय
बहुमूल्य जानकारी उपलब्ध करवाने के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
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