अंक-4
स्वरोदय विज्ञान
आचार्य परशुराम राय
हमारी साँसें दोनों नासिकाओं से हमेशा नहीं चलतीं। ये कभी बायीं नासिका से तो कभी दाहिनी नासिका से चलती है। जब साँस बायीं नासिका से चलती है तो उसे इड़ा या चन्द्र स्वर कहते हैं तथा जब दाहिनी नासिका से चलती है तो पिंगला या सूर्य स्वर कहते हैं। जब इनका क्रम एक नासिका से दूसरी नासिका में परिवर्तित होना होता है तो उस समय थोड़ी देर के लिए दोनों नासिकाओं से साँस समान रूप से चलती है और तब उसे सुषुम्ना स्वर कहा जाता है। लगभग एक घंटा साँस बाई नासिका से और फिर एक घंटा दाहिनी नासिका से चलती हैं और इस प्रकार इनका क्रम एक-एक घंटें पर बदलता रहता है। चन्द्र स्वर की प्रकृति शीतल और सूर्य नाड़ी की प्रकृति उष्ण होती है। इनका प्रवाह क्रम चन्द्रमास (Lunar Month) का अनुसरण करता है। अर्थात् शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया को सूर्योदय के समय बायीं नासिका से साँस चलती है और एक घंटें बाद फिर एक घंटें तक दाहिनी नाक से साँस चलती है। इस प्रकार इनका क्रम घंटें-घंटें पर बदलता रहता है। इसके बाद तीन दिन तक अर्थात् चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी को सूर्योदय के समय दाहिनी नासिका से साँस चलती है और फिर ऊपर कहे अनुसार घंटें-घंटें पर इनका क्रम बदलता रहता है। इस प्रकार तीन-तीन दिन के बाद सूर्योदय के समय इनका क्रम बदलता रहता है। कृष्ण पक्ष में यह क्रम उलट जाता है, अर्थात् पहले तीन दिन प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया के दिन प्रात: सूर्योदय के समय सूर्य स्वर प्रवाहित होता है। फिर तीन दिनों बाद चन्द्र स्वर तीन दिन तक चलता है और प्रतिदिन घंटें-घंटें पर इनका क्रम बदलता रहता है। नीचे की सारिणी में चन्द्रमास की तिथियों के अनुसार इसका विवरण दिया जा रहा है।
चन्द्र स्वर | शुक्ल पक्ष | प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, चर्तुदशी, पूर्णिमा |
कृष्ण पक्ष | चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, दशमी, एकादशी, द्वादशी | |
सूर्य स्वर | शुक्ल पक्ष | चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, दशमी, एकादशी, द्वादशी |
कृष्ण पक्ष | प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या |
स्वामी राम ने अपनी पुस्तक Path of Fire and Light में चन्द्र स्वर और सूर्य स्वर की अवधि एक-एक घंटें के स्थान पर दो-दो घंटें लिखा है। सम्भवत: उन्होंने अपनी उक्त पुस्तक में जिस गुहय तांत्रिक ग्रंथ ''स्वर विवरण'' का उल्लेख किया है उसमें इस प्रकार का वर्णन हुआ हो। हालांकि उन्होंने इसके साथ यह भी लिखा है कि स्वरों में उक्त लयबध्दता पूर्णरूपेण तभी आती है जब व्यक्ति प्राणायाम का अभ्यास करता हो। शेष तथ्य लगभग अन्य स्वरोदय ग्रंथों के समान हैं।
कहा गया है कि शुक्ल पक्ष में सोमवार, बुधवार, गुरूवार और शुक्रवार को चन्द्रनाड़ी अधिक प्रभावशाली होती है और इसके प्रवाह काल में किया गया कार्य सफल होता है। वैसे ही कृष्ण पक्ष में मंगलवार, शनिवार और रविवार को सूर्य स्वर (नाड़ी) प्रभावशाली होता है और इस अवधि (सूर्य स्वर के प्रवाह काल) में किए गए कार्य प्राय: फलदायी होते हैं। वैसे, शुक्ल पक्ष में चन्द्र स्वर और कृष्ण पक्ष में सूर्य स्वर प्रभावशाली होते हैं।
ग्यानवर्धक पोस्ट .एक अच्छी जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंaap ke prayaso se is lupt ho rai vidya ko sanjeevani milegi, aisi aasha hai. aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी है। स्वरोदय का हमारे दैनिक कार्यप्रनाली मे बहुत योगदान है। और हम सुविधा अनुसार इसे बदल कर और भी उपयोगी बना सकते हैं। सब के लिये बहुत अच्छी जानकारी है। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआचार्य जी, यह अनुभव तो हम लोग नित्य ही करते हैं. किंतु इसकी तथ्यपरक व्याख्या आज आपसे सुनने को मिली. आपने विभिन्न विषयों पर जो ज्ञान की सुरसरि इस ब्लॉग के माध्यम से प्रवाहित की है, हम उससे अभिभूत हैं और आभारी हैं आपके.
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए अपने पाठकों को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअरे वाह!
जवाब देंहटाएंयह तो बहुत ही उपयोगी जानकारी रही!
राय जी!
जवाब देंहटाएंआपका यह आलेख बहुत ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक है।
आभार आपका।
अजी हमे तो पता ही नही था, जब कि हम रोजाना ओर हर पल सांस लेते है,इतनी सुंदर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी है बस क्रम बना रहे. इसे पुर्णतया लिख कर ही बंद किया जाये, यही निवेदन है.
जवाब देंहटाएंरामराम.