गांधी और गांधीवाद
169. वह गांधीजी की जान लेना चाहता था
1908 मार्च
मीर आलम द्वारा जानलेवा हमला किए
जाने के बाद से गांधीजी के मित्रों को यह विश्वास था कि मौत उनके चारों तरफ़ मंडरा
रही है। इसलिए जहां कहीं वे जाते सुरक्षा की दृष्टि से वे उन्हें घेरे रहते। गांधीजी
उनसे कहते यह सब बेकार है, क्योंकि जिस पल मौत को आनी है, वो आएगी ही। मौत तो आई! घर से एक चिट्ठी आई थी, जिसमें यह ख़बर थी कि उनकी विधवा बहन
रालियात बहन के एकमात्र पुत्र गोकुल दास की मृत्यु हो गई है। गोकुल को मां के पास
भेजा गया था, ताकि वह शादी कर ले और मां की देखभाल करे। शादी के पंद्रह दिनों के
बाद ही एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। गांधीजी उसे पुत्र की तरह मानते थे। इस
समाचार से वे गहरी सोच में पड़ गए। मृत्यु उन्हें जीवन का अंत नहीं एक नए जीवन की
शुरुआत के रूप में नज़र आई। इसके बाद से मृत्यु का भय उनके मन से जाता रहा। इस बात का प्रमाण मिली ग्राहम
पोलाक की पुस्तक “Mr. Gandhi : The Man” में 1908 की घटी एक घटना के वर्णन में मिलता है।
एक शाम जोहान्सबर्ग के मेसोनिक हॉल में भारतीयों और समर्थकों
की एक बड़ी बैठक हुई। बड़ी भीड़ हॉल के बाहर उमड़ पड़ी और दरवाज़े और बरामदे तक
भीड़ जमा हो गई। गांधीजी मुख्य वक्ता थे और वे जहाँ भी जाते थे, वहाँ हमेशा बड़ी
भीड़ उमड़ पड़ती थी। इस आम सभा में शिरकत कर गांधीजी
और मिली पैदल घर वापस जा रहे थे। जब वे बाहरी दरवाज़े पर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि दरवाज़े की छाया में एक आदमी अंधेरे में छिपकर खड़ा है। गांधीजी उसके पास गए। उसके हाथों
को अपने हाथ में लिया और उससे धीमी आवाज़ में कुछ कहने लगे। वह आदमी कुछ क्षण के
लिए हिचकिचाया फिर मुड़ा और गांधीजी के साथ दूसरी तरफ़ चल पड़ा। मिली सड़क के दूसरे
किनारे पर चल रही थी। वे सड़क की लंबाई तक चले। उन दोनों में क्या बातें हो रही थी,
वह वैसे भी उसकी समझ से परे थी, क्योंकि वे अंग्रेज़ी में बातें नहीं
कर रहे थे। दोनों आदमी बहुत धीमी आवाज़ में बोल रहे थे। गली के छोर पर उस आदमी ने गांधीजी के हाथ कुछ सामान दिया और चला गया।
वापस लौटते समय मिली ने गांधीजी से पूछा, “वह आदमी क्या चाहता था, -- कुछ खास?”
गांधीजी ने कहा, “हां,
वह मेरी जान लेना चाहता था।”
“आपकी जान?” मिली चौंकी, “जान? कितनी खतरनाक बात है? क्या वह पागल था?”
“नहीं। वह सोचता है कि मैंने कौम के साथ गद्दारी की है। मैं सरकार को
कौम के ख़िलाफ़ भड़का रहा हूं, और इनके हितैषी होने का महज नाटक कर रहा हूं।” गांधीजी ने बताया। और कहा, “मैंने उससे कहा यह तो बेवकूफ़ी भरी बातें हैं।”
मिली ने कहा, “आपने उसे जाने देकर अच्छा नहीं किया।
उस तरह के आदमी का आज़ाद रहना आपकी जान के लिए खतरनाक हो सकता है। आपने उसे जाने
क्यों दिया। वह ज़रूर पागल होगा।”
गांधीजी ने जवाब दिया, “नहीं,
वह पागल नहीं है। गुमराह है। और तुमने तो देखा ही जब
मैंने उससे बात की, उसे समझाया, तो यह छुरा, जिससे वह मुझे मारना चाहता था, उसने मुझे दे दिया।”
गांधीजी के हाथ में एक बड़ा सा
ख़ंज़र देख कर मिली के स्वर कांप रहे थे, “वह तो अंधेरे का फ़ायदा उठा कर आपकी जान ही ले लेता ...”
मिली की बात काटते हुए गांधीजी
ने कहा, “इसके लिए इतनी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। उसने सोचा ज़रूर था
कि वह मुझे जान से मार देगा, लेकिन इसे अंजाम देने का साहस उसमें नहीं था। हां, अगर मैं उतना ही ख़राब व्यक्ति होता, जैसा कि उसने मेरे बारे में सोच रखा
था, तो मेरा मार दिया
जाना ही उचित होता। लेकिन अब हमें इस विषय पर ज़रा भी सोचने की ज़रूरत नहीं है। यह
बात आई गई हो गई। मैं नहीं सोचता कि अब वह फिर से मुझ पर हमला करने की सोचेगा भी।
हां, अगर मैंने उसे
जेल भिजवा दिया होता, तो वह मेरा दुश्मन ज़रूर बन जाता। अब तो वह मेरा दोस्त है।”
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद
संदर्भ : यहाँ पर
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