सोमवार, 9 दिसंबर 2024

174. सर्टिफ़िकेट की होली जलाई

 गांधी और गांधीवाद

 

174. सर्टिफ़िकेट की होली जलाई


परवाने की होली जलाने का दुर्लभ चित्र

1908 

11 अगस्त, 1908 को स्वैच्छिक पंजीकरण को वैध बनाने की औपचारिकता पूरी करने के उद्देश्य से विधेयक के प्रकाशन के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि ट्रांसवाल सरकार की एशियाई नीति में समझौते के लिए कोई स्थान नहीं था। भारतीय समुदाय ने तुरंत विधान सभा में एक याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि प्रस्तावित अधिनियम जनवरी 1908 में किए गए समझौते का उल्लंघन है। 14 अगस्त गांधीजी ने पत्र लिखकर स्मट्स को सूचित किया कि वह समझौते का आदर करे अन्यथा सर्टिफ़िकेट की होली जलाई जाएगी। सरकार को 16 अगस्त के चार बजे तक का   ‘अल्टिमेटम’ दिया गया। 

रविवार, 16 अगस्त, 1908 को गांधी ने सरकार के खिलाफ़ एक यादगार विद्रोह का आयोजन किया। चार बजे सभा बुलाई गई थी। लगभग तीन हज़ार भारतीय जोहान्सबर्ग में हमीदिया मस्जिद के मैदान में इकट्ठे हुए। गांधीजी ने बाद में अपने संस्मरणों में लिखा, “यह राष्ट्रीय एकता का अद्भुत प्रदर्शन था और मातृभूमि को इस पर गर्व हो सकता है।मंच पर नटाल इंडियन कांग्रेस के नेता, नटाल कांग्रेस के अध्यक्ष दाउद मोहम्मद, नटाल कांग्रेस के उपाध्यक्ष पारसी रुस्तमजी के अलावा ब्रिटिश इंडियन लीग के अध्यक्ष आदम एच.जी. मोहम्मद और चीनी एसोसिएशन के अध्यक्ष लेउंग क्विन मौजूद थे। इस्सोप मिया ने बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि यह बैठक दक्षिण अफ्रीका में भारतीय इतिहास में सबसे अनोखी बैठकों में से एक थी। उनकी उपस्थिति ने यह प्रदर्शित किया कि ट्रांसवाल का प्रश्न दक्षिण अफ्रीका का प्रश्न था, वास्तव में एक शाही प्रश्न था। उन्हें अपने विरुद्ध एक अपवित्र गठबंधन का सामना करना पड़ा। ‘यदि वे इस गठबंधन से सफलतापूर्वक लड़ने में सफल रहे, ‘‘तो यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि हमें एकजुट होना चाहिए और हमें सबसे बुरे के लिए तैयार रहना चाहिए।

सरकार को एक संदेश भेजा गया था जिसमें कहा गया था कि यदि सरकार एशियाटिक एक्ट को उसके नए और संशोधित रूप में पारित करने से रोकती है तो प्रमाणपत्रों को जलाने का कार्यक्रम बंद कर दिया जाएगा। सरकार पर  ‘अल्टिमेटम’ का कोई असर न हुआ। जनरल ने कहा था, 'जिन लोगों ने सरकार को ऐसी धमकी दी है, उन्हें इसकी शक्ति का अंदाजा नहीं है। मुझे केवल इस बात का दुख है कि कुछ आंदोलनकारी गरीब भारतीयों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं, जो अगर उनके बहकावे में आ गए तो बर्बाद हो जाएंगे।' एक स्वयंसेवक साइकिल पर सरकार की तरफ़ से दिया गया तार लेकर आया, जिसमें सरकार ने प्रवासी भारतवासियों के रुख़ पर दुख प्रकट किया और क़ानून वापस लेने के बारे में अपनी असमर्थता बताई। तार के संदेश को लोगों को पढ़कर सुनाया गया। इस खबर का जोरदार जयकारों के साथ स्वागत किया गया। भारतीयों को अब अपनी ताकत का कुछ अहसास हो गया था। गांधी ने समारोह की अध्यक्षता की और एक लंबा संघर्षपूर्ण भाषण दिया, उन्होंने उनसे कहा कि प्रमाण-पत्रों को जलाने से संभवतः उनके कंधों पर "अनकही पीड़ा" आ जाएगी, लेकिन उनके पास विरोध का कोई और तरीका नहीं था। बैठक को संबोधित करते हुए गांधीजी ने कहा: "यदि कोई भारतीय है जिसने अपना प्रमाण पत्र जलाने के लिए दिया है, लेकिन वह उसे वापस करना चाहता है, तो उसे आगे आकर उसे लेना चाहिए। केवल प्रमाण पत्र जला देना कोई अपराध नहीं है, और इससे कोई सजा नहीं मिलेगी। प्रमाण पत्र जलाकर हम यह घोषणा करते हैं कि हम कभी भी काले कानून के आगे नहीं झुकेंगे और प्रमाण पत्र दिखाने की शक्ति से भी खुद को वंचित नहीं करेंगे। मैं आपको सलाह दूंगा कि आप इन सभी बातों पर विचार करें और उसके बाद ही आज मेरे द्वारा प्रस्तावित कदम उठाएं।" अब लोग अपने परवाने की होली जलाने को स्वतंत्र हैं। गांधीजी ने कहा, मैं अपना पूरा जीवन जेल में गुजारना पसंद करूंगा, और पूरी तरह खुश रहूंगा, बजाय इसके कि मैं अपने साथी देशवासियों को अपमान सहते हुए देखूं और जेल से बाहर आऊं। सभा में गांधीजी ने यह घोषणा की कि जो चाहें अपने अनुमति पत्र अब भी वापस ले सकते हैं, क्योंकि अब सर्टिफ़िकेट की होली जलाई जाएगी। लेकिन सारा समाज गांधीजी के साथ था। कौम ने अपने नेता के प्रति पूर्ण विश्वास प्रकट किया।

चार पायों पर टिकी हुई लोहे की एक बड़ी कड़ाही ऊँची जगह पर सबकी निगाह के सामने रखी हुई थी। भाषणों के समाप्त होते ही दो हज़ार से अधिक लोगों ने अपने पहचान पत्र उस बर्तन में इकट्ठे किए। गांधीजी ने भी अपना पंजीकरण पात्र आग के हवाले कर दिया जिसे उन्होंने जीवन के लिए कुछ कम खतरा उठाकर हासिल नहीं किया था। ऐच्छिक परवाने की होली का जलसा उस समय और भी शानदार हो उठा जब मीर आलम और अन्य पठानों ने अपनी ग़लती स्वीकारी और ख़ूनी क़ानून के विरुद्ध अंत तक लड़ने की शपथ ली। मीर आलम जेल से छूट कर आ चुका था। उसने अपना असल परवाना जलाने के लिए गांधीजी को दे दिया। बड़े प्रेम से उसने गांधीजी से हाथ मिलाया और कहा कि उनपर आक्रमण कर उसने बहुत बड़ी भूल की थी। उन्हें यक़ीन दिलाया कि वह मरते दम तक सत्याग्रह करता रहेगा। गांधीजी ने मीर आलम का हाथ पकड़ा और हर्ष से दबाया। उन्होंने आलम से कहा कि उनके मन में उसके प्रति कभी कोई रोष नहीं था।

कड़ाही में रखे परवानों को मिट्टी के तेल से भिंगो दिया गया। सभा के अध्यक्ष यूसुफ़ मियां ने उसे माचिस की तिली से जला दिया गया। सारी सभा खड़ी हो गई। यह होली जब तक जलती रही, तब तक चारों तरफ़ जय घोष की आवाज़ गूंजने लगी। भीड़ कर्कश रूप से चिल्ला रही थी, हवा में टोपियाँ फेंकी गयी, सीटी बजाई गयी, और आग की लपटों के शांत होने के बाद भी बहुत देर तक जयकारे लगते रहे। आखिरी क्षण में कुछ देर से आने वाले लोग मंच पर दौड़ते हुए आए, अपने प्रमाण पत्र लहराते हुए उन्हें आग में फेंक दिया। अवज्ञा आंदोलन की घोषणा हो चुकी थी। आंदोलनकारियों की मांग थी कि वे सारे एक्ट समाप्त किए जाएं जो भेद-भाव को बढ़ावा देते हैं।

भारतीय समुदाय अभी भी विभाजित था। कुछ व्यापारी सरकार और गांधीजी की खाकी वर्दी वाली चौकियों से अभियोजन से बचने के लिए भारत लौट आए थे। ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष यूसुफ मियां ने अचानक मक्का की तीर्थयात्रा पर जाने का फैसला किया। कभी-कभी गांधीजी यह सोचते थे कि आंदोलन गति क्यों नहीं पकड़ रहा है, और जनरल स्मट्स को आश्चर्य होता था कि भारतीयों को विद्रोह के करीब भड़काकर गांधीजी क्या हासिल करना चाहते हैं। वह दृढ़ रहे; गांधीजी दृढ़ रहे; और गतिरोध जारी रहा।

डेली मेल के जोहान्सबर्ग स्थित संवाददाता ने इस होली की तुलना बोस्टन की चाय पार्टी से की थी, जिसमें अमरीका के अंग्रेज़ों ने विलियम से भेजी चाय की पेटियों को बोस्टन बंदरगाह में जलसमाधि दे दी और इंग्लैंड के अधीन न रहने के निश्चय की घोषणा की। ट्रांसवाल के भारतीयों का यह संघर्ष भले ही अमेरिका के स्वाधीनता संग्राम जितना ऐतिहासिक न हो, लेकिन ऐच्छिक परवानों की होली जलाना निस्संदेह वीरतापूर्ण विरोध कार्य था। उस पत्रकार ने लिखा था, “तेरह हज़ार निःशस्त्र प्रवासी भारतीय एक शक्तिशाली सरकार को चुनौती दे रहे थे। प्रवासी भारतीय के अस्त्र-शस्त्र हैं सत्य पर आग्रह और भगवान के न्याय में दृढ़ विश्वास। जिनके लिए मनुष्यता, नैतिकता और ईश्वरीय न्याय की व्यवस्था संसार से उठ नहीं गई है, उन्हें इन अस्त्र-शस्त्रों की सामर्थ्य में पूरा विश्वास है। किंतु वे लोग जो इन बातों में विश्वास नहीं करते, उनके लिए एक परम शक्तिशाली सशस्त्र सरकार के सामने मुट्ठीभर भारतीयों की गिनती ही क्या है?”

भारतीयों की तीव्र भावना को देखते हुए जनरल स्मट्स ने 18 अगस्त को गांधीजी को सरकार से बातचीत करने के लिए बुलाया। वार्ता विफल होने के परिणामस्वरूप 23 अगस्त को दूसरी जनसभा हुई और और अधिक प्रमाण-पत्र जलाए गए।

भारतीयों और सरकार के बीच का मामला अब जुड़ गया था। स्मट्स-गांधी समझौते के तहत, अधिकांश स्थायी निवासियों ने स्वेच्छा से पंजीकरण कराया था। उसके बाद, पंजीकरण प्रमाणपत्र के बिना पाया गया कोई भी भारतीय एक नए, अवैध प्रवेशकर्ता के रूप में निर्वासन के अधीन होगा। इस तरह समझौते ने अप्रवास को रोक दिया, और यही 'ब्लैक एक्ट' का मूल उद्देश्य था। फिर स्मट्स ने अनिवार्य पंजीकरण को फिर से क्यों लागू किया? 'हमारा अपमान करने के लिए', भारतीयों ने कहा। 'हमारी असमानता पर जोर देने के लिए। हमें अपनी हीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए।'

गांधी ने कहा कि सत्याग्रह का एक गुण है; यह छिपे हुए उद्देश्यों को उजागर करता है और सत्य को उजागर करता है। यह विरोधी के इरादों की सर्वोत्तम संभव व्याख्या करता है और इस तरह उसे नीच आवेगों को त्यागने का एक और मौका देता है। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो उसके पीड़ित अधिक स्पष्ट रूप से देखते हैं और अधिक तीव्रता से महसूस करते हैं, जबकि बाहरी लोग समझ जाते हैं कि कौन गलत है। प्रमाणपत्रों की होली जलाया जाना भी सत्याग्रह का हिस्सा था। भारतीयों ने तब मजबूरी में पंजीकरण न कराने और ट्रांसवाल में आव्रजन पर प्रतिबंध की अवहेलना करने का निर्णय लिया। एक दशक से अधिक के समय के बाद एक बार फिर से गांधीजी के आह्वान पर होली जलाई जाने वाली थी। गांधीजी ने भारत में ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ जब पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया तो विदेशी कपड़ों की होली जलाना उनके अभियान के प्रमुख प्रतीकों में से एक था। दक्षिण अफ़्रीका में किए प्रयोगों को उन्होंने आगे चलकर पूर्णता तक पहुंचाया और भारत में कहीं बहुत बड़े पैमाने पर लागू किया।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद

संदर्भ : यहाँ पर

 


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