आचार्य परशुराम राय
वाचक और लक्ष्यक शब्दों और अर्थों पर चर्चा के बाद आज के इस अंक में व्यंजक शब्द और उसके अर्थ (व्यंग्यार्थ) पर विचार किया जायेगा। शब्द की व्यंजना शक्ति से व्यंग्यार्थ का बोध होता।
व्यंजना के दो भेद किए गये हैं - शाब्दी और आर्थी। शाब्दी व्यंजना के दो भेद हैं - अभिधामूला व्यंजना और लक्षणामूला व्यंजना।
अभिधामूला व्यंजना
अभिधामूला व्यंजना का लक्षण आचार्य मम्मट ने निम्नलिखित कारिका में किया है:-
अनेकार्थस्य शब्दस्य वाचकत्वे नियंत्रिते।
संयोगाद्यैरवाच्यार्थधीकृद् व्यापृतिरंञ्जनम्॥
(काव्य प्रकाश अध्याय -2 कारिका-19)
अर्थात् अनेक अर्थ का बोध कराने वाले शब्द का एक अर्थ में संयोग आदि के द्वारा नियंत्रित हो जाने पर भी उससे जो अन्य कार्य का प्रकाश होता है या प्रतीति होती है उस शब्द-व्यापार को अभिधामूला व्यंजना कहते हैं।
यहाँ अपने विषय से थोड़ा हटकर अनेकार्थी शब्द के एक अर्थ में नियंत्रित करने वाले कारकों पर विचार करते हैं। अनेकार्थी शब्दों को एक अर्थ में नियंत्रित करने के लिए भर्तृहरि द्वारा प्रणीत 'वाक्यपदीय' में 14 साधन या मार्ग बताए गए हैं।
संयोग, विप्रयोग, साहचर्य, विरोधिता, अर्थ, प्रकरण, लिंग, अन्य शब्द की सन्निधि, सामर्थ्य, औचित्य, देश, काल, व्यक्ति (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग आदि रूप) और स्वर।
संयोगो विप्रयोगश्च साहचर्यं विरोधिता।
अर्थ: प्रकरणं लिङ्गं शब्दस्यान्यस्य सन्निधि:।।
सामर्थ्यमौचिती देश: कालो व्यक्ति: स्वरोदय।
शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मृतिहेतव:।।
संयोग और विप्रयोग द्वारा अर्थ नियंत्रण:-
जिस प्रकार 'संशखचक्र हरि' के शंख और चक्र के संयोग से 'हरि' शब्द का अर्थ 'विष्णु' के अर्थ में नियंत्रित होता है। वैसे ही 'अशंखचक्र हरि' में शंख और चक्र के विप्रयोग से भी 'हरि' शब्द का अर्थ भगवान 'विष्णु' के ही अर्थ में नियंत्रित होता है। जबकि 'हरि' शब्द यम, अनिल, इंद्र, चन्द्र, सूर्य, विष्णु, सिंह, सर्प, रश्मि, घोड़ा, तोता, बन्दर और मेढक के लिए प्रयोग होता है।
साहचर्य और विरोध द्वारा अर्थ नियमन:-
'राम' शब्द के कई अर्थ हैं - बलराम, परशुराम, रघुनंदन, मनोज्ञ आदि। किन्तु 'राम लक्ष्मण' कहने से लक्ष्मण के साहचर्य के कारण दशरथ पुत्र 'राम' का बोध होता है और 'राम-अर्जुन' में कार्तवीर्य अर्जुन के विरोधी होने के कारण 'राम' का यहाँ अर्थ 'परशुराम' होगा।
'अर्थ' और 'प्रकरण' से अर्थ नियंत्रण:-
'स्थाणु शब्द के कई अर्थ हैं, यथा - वृक्ष का ठूँठ, स्थिर खड़ा खूँटा, शिव आदि। लेकिन यदि कहा जाये कि 'भवसागर पार करने के लिए स्थाणु का भजन करो'। यहाँ 'स्थाणु' शब्द का अर्थ 'शिव' में निहित होगा। यहाँ अर्थ के कारण नियंत्रण माना जाएगा।
वैसे ही 'देव' शब्द के कई अर्थ हैं। किन्तु जब हम किसी सम्मानित व्यक्ति के लिए किसी संदर्भ में कहें कि 'देव तो सब जानते हैं' अर्थात् आपको तो सब कुछ पता है। यहाँ 'देव' शब्द प्रकरण के कारण में 'आप' अर्थ देता है।
'लिड़्ग द्वारा अर्थ नियमन:- लिंग शब्द के अनेक अर्थ हैं। इस संदर्भ में लिंग यों परिभाषित किया गया है:- अनेक अर्थों में से किसी एक के साथ रहने वाले और साक्षात शब्द से बोधक धर्म को 'लिंग' कहते हैं जैसे:- 'पतंग की प्रभा'। यहाँ 'प्रभा' धर्म सूर्य का है। अतएव 'पतंग' का यहाँ अर्थ 'सूर्य' होगा, पक्षी, कीट आदि नहीं।
'अन्य शब्द-सन्निधि' द्वारा अर्थ नियमन:- जहाँ किसी एक ही अर्थ के साथ रहने वाले शब्द के सामीप्य के कारण अनेकार्थक शब्द एक अर्थ में नियंत्रित हो जाता है। जैसे - देव पुरारि। पुरारि शब्द के कारण अनेकार्थक 'देव' शब्द 'शिव' के अर्थ में नियंत्रित होता है। अथवा केवल 'पुरारि' - पुर + अरि। यहाँ 'पुर' शब्द के देह, नगर आदि अनेक अर्थ होते हैं। लेकिन 'अरि' शब्द की सन्निधि के कारण 'पुर' - त्रिपुर असुर 'शिव' अर्थ में निंयत्रित होता है।
'सामर्थ्य' द्वारा एक अर्थ में नियंत्रण:- 'मधु' शब्द के दैत्य विशेष, वसन्त, मद्य आदि कई अर्थ हैं। लेकिन यदि कहा जाये कि 'मधु ने कोयल को पागल बना दिया है', तो यहाँ मधु का अर्थ वसन्त होगा। क्योंकि वसन्त में ही कोयल को मदमत्त करने की सामर्थ्य है।
'औचित्य' द्वारा अर्थ नियंत्रित करना:- इसके लिए संस्कृत की एक पहेली लेते हैं:-
युधिष्ठिरस्य या कन्या नकुलेन विवाहिता।
माता सहदेवस्य सा कन्या वरदायिनी।।
अर्थात् जो युधिष्ठिर की कन्या है, नकुल के साथ व्याही गयी है और सहदेव की माँ है, वह कन्या अर्थात् माता पार्वती वर देने वाली है।
यहाँ 'औचित्य' के कारण 'युधिष्ठिर' का अर्थ 'पर्वतराज - हिमालय', 'नकुल' का अर्थ शिव और 'सहदेव' का अर्थ 'कार्तिकेय' है। ये अर्थ औचित्य से आए हैं।
'देश' द्वारा अर्थ नियमन:- चन्द्र शब्द के कई अर्थ हैं, जैसे:- कपूर, चन्द्रमा (शशि), मोर के पंख पर ऑंख जैसा चिह्न, जल आदि। लेकिन यदि कहा जाये कि आकाश में चन्द्र सुशोभित हो रहा है, तो यहाँ 'आकाश' देश के कारण 'चन्द्र' का अर्थ चन्द्रमा उपग्रह होगा।
'काल' द्वारा अर्थ नियमन:- 'चित्रभानु' के कई अर्थ हैं - यथा सूर्य, अग्नि आदि। यदि कोई कहे - अँधेरी रात में चित्रभानु के प्रकाश के कारण अंधेरा कम हो गया। यहाँ 'रात' शब्द के कारण 'चित्रभानु' का अर्थ 'अग्नि' में नियंत्रित होगा।
'व्यक्ति' (स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग) द्वारा अर्थ नियमन:- अनेकार्थक शब्दों के अर्थों को एक अर्थ में नियमन करने वाला यह साधन संस्कृत भाषा में प्रयोग होता है। हिन्दी भाषा में इसके संयोग नहीं मिलते। जैसे - मित्र : विभाति। श्याम: यम मित्रम्।
यहाँ पहले वाक्य में 'मित्र' शब्द पुल्लिंग में प्रयोग के कारण 'सूर्य' अर्थ में नियंत्रित होता है, जबकि दूसरे वाक्य में नपुंसक लिंग में प्रयुक्त होने के कारण 'दोस्त' के अर्थ में नियंत्रित होता है। हिन्दी में नपुंसक लिंग नहीं होता।
'स्वर' द्वारा अर्थ नियमन:- स्वरों द्वारा अर्थ नियम केवल वेदों में होता है। वैदिक साहित्य में तीन स्वर माने जाते हैं:- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित। इन स्वरों के परिवर्तन द्वारा अर्थ का नियमन होता है, विशेषकर समस्त (समास युक्त) पदों में।
अनेकार्थक शब्दों के एक अर्थ के नियमन के उपर्युक्त साधनों की विवेचना के परिप्रेक्ष्य में पुन: एक बार समझने का प्रयास अपेक्षित है। उक्त साधनों के द्वारा शब्दार्थ का नियमन होने के बावजूद यदि शब्द के द्वारा अन्य अर्थ की प्रतीति हो, तो वहाँ अभिधामूला व्यंजना होगी। जैसे कन्या का निर्विघ्न विवाह सम्पन्न होने के बाद यदि कोई कहे कि 'मैनें तो गंगा नहा लिया'। यहाँ एक सीधा अर्थ आता है कि एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गया। किन्तु 'गंगा' शब्द के साथ 'पावनता' और 'शीतलता' आदि अर्थ के कारण दूसरा अर्थ होगा कि एक पावन कार्य सम्पन्न हुआ, जिससे हृदय और मन को शान्ति मिली।