गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

101. गोखले - सार्वजनिक जीवन के प्रकाश पुंज

 गांधी और गांधीवाद

101. गोखले - सार्वजनिक जीवन के प्रकाश पुंज

 

गोपालकृष्ण गोखले 

1902

प्रवेश

स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक गोपालकृष्ण गोखले पूना के फ़र्ग्यूसन कॉलेज में प्राध्यापक थे। महादेव गोविन्द रानडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ थी। उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी। 1896 में जब गांधीजी पहली बार उनसे मिले थे, तब से उनके मन में गोखले जी के प्रति बड़ा आदर का भाव था, और गोखले जी की गांधीजी की गतिविधियों में दिलचस्पी। वे गांधीजी को भारतीय राजनीति में लाना चाहते थे। गोखले जी गांधीजी की ईमानदारी, लगन और काम करने के ढंग से प्रभावित थे, तो गांधीजी गोखले जी की लोकसेवा और देश-भक्ति पर निछावर थे। उन दिनों सत्ता का केन्द्र कलकत्ता था। गोखले जी केंद्रीय विधान सभा (Imperial Council) के सदस्य भी थे, जिसकी खास अन्तराल पर बैठक होती रहती थी। इसलिए वे उन दिनों कलकत्ते के अपने आवास में रहते थे।

गोखले के मेहमान

कलकत्ते में गांधीजी ने जब एक महीना और रहने का मन बनाया, तो गांधीजी को गोखले जी अपने पास लेकर चले आए। जब से वे छह साल पहले मिले थे, तब से गोखलेजी की नजर उन पर थी। उन्हें खुद यह देखने के लिए पर्याप्त अवसर मिले थे कि उनका शिष्य किस तरह का है। पहले दिन से ही उनके साथ गांधीजी को ऐसा लगा जैसे वे एक बड़े भाई की छत्र छाया में है। मेहमान की तरह होने का तो एक पल का भी उन्हें अहसास न हुआ। गोखलेजी ने उनकी सभी जरूरतों की खोज-ख़बर ली और उन्हें पूरा किया गांधीजी को पूरी तरह से अपने विश्वास में लिया उनसे कुछ भी गुप्त न रखते हुए उन्हें अभिभूत कर दिया और उन दिनों की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों से उनका परिचय कराया। हालाकि गांधीजी की आवश्यकताएं सीमित थीं, फिर भी जो भी थीं, गोखले जी ने उन्हें पूरी की। अपने सारे काम गांधीजी खुद कर लिया करते थे। किसी से सेवा कराने की उनकी आदत तो थी नहीं। स्वावलंबन की गांधीजी की आदत से गोखले जी न सिर्फ़ काफ़ी प्रभावित थे बल्कि इसकी तारीफ़ भी किया करते थे। एक ही छत के नीचे बिताए इस समय ने उन्हें एक-दूसरे को जानने का मौका दिया। गोखले गांधीजी के तपस्वी की तरह जीवन जीने के तौर-तरीकों की प्रशंसा करते थे, लेकिन वे चाहते थे कि गांधीजी अपनी संकोची प्रवृत्ति पर काबू पाएं। अपने तरीके से वे गांधीजी को कांग्रेस के काम के लिए तैयार कर रहे थे। एक महीना गोखले जी के साथ गुज़ारे दिन गांधीजी के लिए परम संतोष और सुख के दिन थे। गोखले जी के ज़रिए गांधीजी कई महान हस्तियों से मिले और दक्षिण अफ़्रीका में भारतीयों की सहायता के बारे में उन्हें बता सके। उनमें से एक थे आचार्य (बाद में डॉ.) पी.सी. राय, जो एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने कभी शादी नहीं की, केवल स्वदेशी कपड़े पहने

प्रफुल्ल चन्द्र राय से स्नेह संबंध


डॉ. प्रफुल्ल चन्द्र राय



एक छत के नीचे रहकर गांधीजी और गोखलेजी, दोनों को एक-दूसरे को अच्छी तरह जानने-समझने का मौक़ा मिला। गोखले जी चाहते थे कि गांधीजी अपने संकुचित स्वभाव से बाहर निकलें और पूरी ऊर्जा से देश हित में काम करें। उनके घर में जो भी नामी-गरामी लोग आते, उनसे गोखले जी उनको ज़रूर मिलाते। यह गोखले द्वारा गांधीजी को दिया जाने वाला प्रशिक्षण था, ताकि गांधीजी कांग्रेस के काम के लिए तैयार हो सकें। गोखले जी के घर के पास ही महान रसायनज्ञ, उद्यमी तथा महान शिक्षक डॉ. प्रफुल्ल चन्द्र राय (2 अगस्त 1861 -- 16 जून 1944)) रहते थे। वे लगभग रोज़ ही गोखले जी के घर आया करते थे। गोखले जी ने उनका परिचय कराते हुए कहा, “ये प्रोफेसर राय हैं। इन्हें हर महीने आठ सौ रुपये मिलते हैं। ये अपने खर्च के लिए चालीस रुपये रखकर बाक़ी सब सार्वजनिक कामों में दे देते हैं। इन्होंने ब्याह नहीं किया है और न करना चाहते हैं। गांधीजी को ऐसे लोग बहुत पसंद थे और गोखलेजी को ऐसे लोगों को गांधीजी के ध्यान में लाने में बहुत खुशी होती थी।  'सादा जीवन उच्च विचार' वाले उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने कहा था, "शुद्ध भारतीय परिधान में आवेष्टित इस सरल व्यक्ति को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वह एक महान वैज्ञानिक हो सकता है।" इस मुलाक़ात के बाद देशभक्त डॉक्टर प्रफुल्ल चन्द्र राय के साथ गांधीजी का जीवन भर के लिए स्नेह संबंध जुड़ गया। गोखले और प्रो. राय की बातचीत सुनते हुए गांधीजी को तृप्ति ही न होती थी, क्योंकि उनकी बातें देश हित की ही होती थी। उनकी आत्मकथा "लाइफ एण्ड एक्सपीरियेंसेस ऑफ बंगाली केमिस्ट" (एक बंगाली रसायनज्ञ का जीवन एवं अनुभव) के प्रकाशित होने पर अति प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका "नेचर" ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए लिखा था कि "लिपिबद्ध करने के लिए संभवतः प्रफुल्ल चन्द्र राय से अधिक विशिष्ट जीवन चरित्र किसी और का हो ही नहीं सकता।" डॉ॰ राय को 'नाइट्राइट्स का मास्टर' कहा जाता है। उन्होंने वर्ष 1895 में स्थिर यौगिक मर्क्यूरस नाइट्राइट की खोज की। वह भारत में रसायन विज्ञान के जनक माने जाते हैं। उन्होंने  हिंदू रसायन का इतिहास नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा, जिससे उनकी बड़ी प्रसिद्धि हुई। 

सार्वजनिक जीवन के प्रकाश पुंज

गोखले जी, गांधीजी की नज़र में भारत के सार्वजनिक जीवन के प्रकाश पुंज थे। गोखले जी के काम करने के ढंग से गांधीजी को काफ़ी प्रेरणा मिलती थी। गांधीजी गोखले की देश सेवा के प्रति एकनिष्ठ निष्ठा, सार्वजनिक प्रश्नों का गहन, श्रमसाध्य अध्ययन करने की आदत, तथ्यों को प्रस्तुत करने की उनकी सटीकता और अद्भुत क्षमता के साथ-साथ जिस तरह से वे अपने समय के प्रत्येक क्षण को सार्वजनिक भलाई के लिए उपयोग करने के लिए संरक्षित करते थे, उसके लिए वे उनके प्रशंसक थे। वे अपना एक क्षण भी व्यर्थ जाने नहीं देते थे। उनके सारे संबंध देश के काम के निमित्त थे। उनके साथ सारी चर्चाएं देश के काम के लिए ही होती थीं। उनकी बातों में कहीं कोई दम्भ या झूठ नहीं होता था। भारत की ग़रीबी और ग़ुलामी उन्हें अखरती थी। साथ ही अगर गांधीजी को कुछ खटकता, तो वह भी कहने से हिचकिचाते नहीं थे।

महादेव गोविंद रानाडे

गोखले जी के मन में महादेव गोविंद रानाडे  (18 जनवरी 1842-16 जनवरी 1901), के प्रति आदर का भाव था। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने पूना सार्वजनिक सभा, महाराष्ट्र ग्रंथोत्तेजक सभा और प्रार्थना समाज की स्थापना में मदद की। रानाडे का जन्म दिन हो या पुण्य तिथि, गोखले उसे हमेशा मनाते थे। इस अवसर पर वे रानाडे से जुड़े संस्मरण सुनाना न भूलते। रानाडे केवल न्यायमूर्ति नहीं, एक इतिहासकार, अर्थशास्त्री और सुधारक भी थे।  उन्हें "महाराष्ट्र का सुकरात" कहा जाता है।  रानाडे 'दक्कन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में से एक थे। रानाडे स्वदेशी के समर्थक और देश में ही निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करने के पक्षधर थे। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं- विधवा पुनर्विवाह. मालगुजारी क़ानून, राजा राममोहन राय की जीवनी, मराठों का उत्कर्ष, धार्मिक एवं सामाजिक सुधार।

गोखलेजी ने गांधीजी को अपने राजनीतिक गुरु रानाडे की जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में आमंत्रित किया उन्होंने इस अवसर पर अपने भाषण में न केवल एक महान इतिहासकार, बल्कि एक महान अर्थशास्त्री, सुधारक और देशभक्त भी बताया; एक बहुमुखी प्रतिभा, जो अपने सभी समकालीनों से कहीं आगे थे जो एक न्यायाधीश होने के बावजूद कांग्रेस के अधिवेशनों में निडरता से शामिल होते थे। इसने गांधीजी पर गहरी छाप छोड़ी। बाद में अपने सार्वजनिक जीवन के दौरान उन्होंने भी एक अवसर पर गोखले द्वारा बताए गए उदाहरण का अनुकरण करते हुए समान परिस्थितियों में ऐसा ही किया।

बग्गी की सवारी

गोखले के प्रति अपने पूरे सम्मान के बावजूद वे गोखले की कुछ कमियों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सके। एक तो यह कि गोखले ट्राम की जगह घोड़ागाड़ी का इस्तेमाल करते थे और दूसरी यह कि वे शारीरिक व्यायाम की उपेक्षा करते थे। उन दिनों गोखले जी के पास घोड़े से खींचे जाने वाली एक बग्गी थी, जिससे वे यहां-वहां जाया करते थे। एक दिन गांधीजी ने उनसे पूछा, “आप शहर में इधर-उधर जाने के लिए ट्राम का उपयोग क्यों नहीं करते? क्या उससे सफ़र करना आप जैसे कद के नेता के लिए अपमानजनक है?”

यह सुनकर गोखले जी को दुख हुआ। हल्के-फुलके उलाहने के लहज़े में जवाब दिया, “तो, तुम भी मुझे पहचान न सके ! अपनी निजी सुविधा के लिए मैं परिषद के भत्तों का उपयोग नहीं करता। तुम जिस तरह से ट्राम की सवारी स्वतंत्रतापूर्वक करते हो, इससे मुझे जलन होती है। पर खेद के साथ कहना पड़ता है कि मैं वैसा नहीं कर सकता। जब तुम भी मेरी तरह प्रसिद्ध हो जाओगे तो तुम्हारे लिए भी इस तरह से विचरण करना अगर असंभव नहीं तो उतना ही कठिन हो जाएगा, जितना आज मुझे है। मैं जितने साधारण तरीक़े से रह सकता हूं, रहता हूं, लेकिन कुछ ऐसे खर्च हैं जो करना ही पड़ता है, खासकर मेरे जैसे लोगों को लिए।गांधीजी ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन एक महात्मा के रूप में उन्हें देश भर में यात्रा करने के लिए एक विशेष ट्रेन से जाना पड़ेगा, ताकि वे जिस रास्ते से यात्रा कर रहे हैं, उस रास्ते पर सभी रेलवे स्टेशनों पर दर्शन के लिए पागल भीड़ जमा न हो जाए और पूरा रेलवे यातायात अस्त-व्यस्त न हो जाए।

शारीरिक व्यायाम की उपेक्षा

इस उत्तर से गांधीजी को संतुष्टि हुई, किन्तु किसी भी प्रकार के व्यायाम या सुबह की सैर नहीं करने की उनकी आदत से गांधीजी को चिन्ता हुई। अगर थोड़ा-बहुत भी वे नियमित और अनुशासित जीवन जीते तो उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता। गांधीजी ने कहा, “पर आप टहलने भी तो ठीक से नहीं जाते। ऐसी दशा में आप बीमार रहें तो इसमें आश्चर्य क्या ? क्या देश के काम में से व्यायाम के लिए भी फ़ुरसत नहीं मिल सकती ?”

गोखले जी बोले, “तुम मुझे किस समय फ़ुरसत में देखते हो कि मैं घूमने जा सकूं?”

इस उत्तर से गांधीजी को संतोष न हुआ। पर गोखले जी के प्रति उनके मन में इतना आदर था कि वे प्रतिउत्तर दे नहीं सकते थे। गांधीजी चुप रहे। गांधीजी कहते हैं, "मैं तब भी यही मानता था और आज भी मानता हूँ कि चाहे किसी के पास कितना भी काम क्यों न हो, उसे व्यायाम के लिए हमेशा समय निकालना चाहिए ... ठीक वैसे ही जैसे कोई अपने भोजन के लिए करता है।" यदि शरीर आत्मा का निवास है, तो उन्होंने तर्क दिया कि यदि आत्मा स्वस्थ है, तो यह आत्मा के स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करेगा। इसके विपरीत, एक बीमार शरीर आत्मा की बीमारी का संकेत देता है और इसलिए यह पाप है - प्रकृति के नियमों के विरुद्ध पाप। हमारा शरीर निर्माता की ओर से उसकी सेवा में उपयोग किए जाने के लिए एक ट्रस्ट है। उसके साथ सामंजस्य का परिणाम स्वास्थ्य के नियमों का सहज ज्ञान और उनके अनुरूप जीवन होना चाहिए। बीमारी आत्मा के विरुद्ध पाप है; पाप, आत्मा की बीमारी। एक प्रायश्चित करने योग्य अपराध है; दूसरा ठीक करने योग्य रोग है।

वायसराय कर्ज़न से मिलने की कोशिश

बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष की मदद से गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की अक्षमताओं के बारे में वायसराय से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल की संभावना तलाशने की कोशिश की। लेकिन लॉर्ड कर्जन, हालांकि बहुत सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखते थे, लेकिन उन्होंने इस आधार पर प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी कि इससे उनके विचारों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति होगी जो शायद इस उद्देश्य के लिए फायदेमंद न हो। इसलिए इस विचार को छोड़ दिया गया। हालांकि, गांधीजी ने अल्बर्ट हॉल में दो सार्वजनिक बैठकों को संबोधित किया। वह पहले से ही नफरत को प्यार से जीतने और हर कीमत पर सच्चाई पर अड़े रहने की बात कर रहे थे।

उपसंहार

गांधीजी  गोखले की इस बात से प्रभावित थे कि वे असत्य और कपट के छोटे से भी दाग ​​से मुक्त थे, जो उनके प्रसिद्ध कथन, ‘राजनीति को आध्यात्मिक बनाया जाना चाहिए’ का पूर्वाभास देता था, जिसे उन्हें अपना बनाना था। गोखले ने सामाजिक सशक्तीकरण, शिक्षा के विस्तार और तीन दशकों तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कार्य किया तथा प्रतिक्रियावादी या क्रांतिकारी तरीकों के इस्तेमाल को खारिज किया।

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मनोज कुमार

 

पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद

संदर्भ : यहाँ पर

 




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