गांधी और गांधीवाद
2 अक्टूबर, गांधीजी के जन्म दिवस पर
92. प्रभावकारी
अहिंसक शस्त्र
मौन धारण
गांधी जी प्रायः सप्ताह में
एक दिन मौन धारण किया करते थे और दिन होता था सोमवार। इसके द्वारा वे अपने गले को
सुरक्षित रखना चाहते थे और अपने शरीर में साम्य। अपना मौन वे दो ही परिस्थिति में
तोड़ सकते थे, एक जब किसी अनिवार्य मसले पर किसी उच्च अधिकारी से बात करनी हो, या दूसरे किसी बीमार आदमी की देखभाल
करनी हो।
उपवास
इन्द्रियां इतनी बलवान हैं कि यदि उन्हें चारों तरफ़ से घेरा जाय तो
ही वे अंकुश में रहती हैं। आहार के बिना वे काम नहीं कर सकतीं। इसलिए इन्द्रिय-दमन
के लिए स्वेच्छा-पूर्वक किये गए उपवास से इन्द्रिय-दमन में बहुत मदद मिलती है।
गांधी जी ब्रह्मचर्य के पालन के लिए उपवास को अनिवार्य मानते थे।
उपवास के दौरान गांधी जी पानी
में चुटकी भर सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाकर लेते थे। वे मानते थे कि ग़रीब और
निस्सहाय लोगों के लिए उपवास सबसे मज़बूत शस्त्र है। जब भी वे विकट परिस्थिति में
होते थे, इसका इस्तेमाल करते थे। उनके जीवन में बड़ी-बड़ी सफलताएं इसके प्रयोग
से हासिल हुईं। अपने सम्पूर्ण जीवन में उन्होंने सोलह बार उपवास ग्रहण किया। दो
बार उनका उपवास 21 दिनों तक चला। उन्होंने स्वीकार किया है कि सार्वजनिक जीवन में खुद
पर आरोपित इस तरह की यातना बहुत ही प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र सिद्ध हुआ। इसके
प्रयोग के वे सारे संसार में सबसे बड़े सिद्धान्तकार कहलाए। लेकिन उनका कहना था कि
उपवास का निश्चय कुछ खास परिस्थितियों में लिया जाना चाहिए।
उपवास के दौरान उन्हें किसी
चीज़ की ज़रूरत होती या कुछ सूचना देनी होती, तो काग़ज़ के टुकड़े पर लिखकर बताते थे। लेकिन काग़ज़ का यह टुकड़ा भी नया
या कोरा नहीं होता था। बापू आए हुए पत्रों के पीछे,
जिन पर कुछ लिखा हुआ न हो या लिफ़ाफों को खोलकर उनके अन्दर
की ओर के बिना लिखे या बिना छपे वाले हिस्से पर लिखा करते थे। बापू का कहना था, “हमें आवश्यकता से तनिक भी ज़्यादा
उपयोग नहीं करना चाहिए। और हर चीज़ का इस्तेमाल किफ़ायत से करना चाहिए।”
गांधीजी और नोबेल शांति पुरस्कार
आज तक गांधीजी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं
दिया गया। प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या गांधीजी की शांतिपूर्ण तकनीकों में कोई
कमी थी? क्या परोक्ष या प्रत्यक्ष तरीक़े से ब्रिटिश हुकूमत
ने उन्हें इस सम्मान से वंचित रखा? या फिर यह पुरस्कार भी यूरोपीय रंग-भेद नीतियों
और पश्चिमी साम्राज्यवादी योजनाओं का टोकन मात्र है?
14 मार्च 1934 में “क्रिश्चियन संचुरी” नामक एक पाश्चात्य पत्रिका के संपादकीय में
यह बात बड़े सशक्त शब्दों में कही गई थी कि “अगर गांधी नोबेल पुरस्कार के सबसे योग्य प्रत्याशी
नहीं होते तो ऐसे पुरस्कार के औचित्य पर विचार होना चाहिए।” एक बार एक ब्रिटिश महिला अगाथा हैरिसन ने बिहार
के भूकम्पग्रस्त इलाक़ों के दौरे पर गांधीजी को उस संपादकीय की प्रति दिखा कर जब उनकी
प्रतिक्रिया जाननी तो गांधीजी ने बड़ी संजीदगी से काग़ज़ के एक टुकड़े पर लिख दिया था, “क्या आपने कभी ऐसे सच्चे सेवाव्रती का नाम सुना है जो सेवा के लिए नहीं बल्कि अनुदान के लिए सेवा कार्य करता है।”
महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पांच बार नॉमिनेट किया गया था। 1937 में गांधीजी पहली बार नोबेल शांति पुरस्कार
के प्रत्याशी के रूप में विश्व के सामने आए। 1938 और 1939 में भी गांधीजी को मनोनीत
किया गया। पर पुरस्कार नहीं दिया गया। क्या उस समय मैदान में और बेहतर प्रत्याशी थे? ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी और रंगभेद पूर्ण नीति का ही
परिणाम रहा होगा कि गांधीजी को इस सम्मान से वंचित रखा गया। 1937 में, नॉर्वे संसद के एक सदस्य ओले कोल्बजॉर्नसन ने
महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया और उन्हें तेरह उम्मीदवारों
में से एक के रूप में चुना गया। पैनल में उनके कुछ आलोचकों ने कहा कि गांधीजी लगातार
शांतिवादी नहीं थे और अंग्रेजों के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक अभियान हिंसा और आतंक में
बदल जाएंगे। उदाहरण के लिए असहयोग आन्दोलन के दौरान चौरिचौरा की घटना बताया गया।
फिर 1944 तक कोई नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया
गया। 1944 में यह पुरस्कार रेड क्रॉस को दिया गया। 1947 के लिए गांधीजी का नाम एक बार
फिर मनोनीत किया गया। लेकिन इस बार भी इस पुरस्कार से उन्हें वंचित रखा गया।
1948 में अंतिम बार गांधीजी को नोबेल पुरस्कार के प्रत्याशी के रूप में मनोनीत किया गया। पर उनकी मौत मनोनीत
किए जाने की अंतिम तिथि के दो दिन पहले ही हो चुकी थी इसलिए उन्हें “क़ानूनन”नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जा सकता था। किसी को भी मरणोपरांत नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित
नहीं किया गया है।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- गांधी और गांधीवाद
संदर्भ : यहाँ पर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 2 आक्टूबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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